विचित्र है जीवन के रंग, कब वरदान अभिशाप बन जाए और अभिशाप वरदान, नहीं कहा जा सकता। कुछ महीने पहले एक परिचित की मृत्यु हुई, रात दिन शराब के नशे में धुत रहते थे, अच्छी भली नौकरी थी मगर काम पर नहीं जाते थे, जाते थे तो करने की हालत में ही नहीं होते थे, नशे की लत को पूरा करने के लिये यहां वहां जहां तहां से कर्ज ले लिया था, घर में फाके होते थे, पत्नी और बच्चों के साथ गाली गलौच मारपीट रोज की बात थी, सबका जीवन नरक बना रखा था।
अधिक पीने से मृत्यु हुई, दफ्तर से इकट्ठा पैसा मिला, पत्नी को पेंशन तथा पुत्र को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली, परिवार के दिन फेर गये है, पत्नी और बच्चों को एक सहमे सहमे घुटन भरे जीवन से जैसे निजात मिली है। उनके चेहरों पर रौनक आ गई है, घर का नक्शा ही बदल गया है, पति-पिता की कमी बजाय अभिशाप के एक वरदान बन गई है।
-ओम प्रकाश बजाज
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