लौटे जरूर लेकिन तिरंगे में लिपटकर

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…सच कहूँ शहादत को सलाम | Shahid Darbara Singh

सच कहूँ मंडे स्पेशल में आज पाठकों को मातृ भूमि के लिए हंसते-हंसते मर मिटे शहीद दरबारा सिंह (Shahid Darbara Singh) की बहादुरी से रूबरू करवाते हैं। असंध के गांव उपलाना में आज ही के दिन जन्मे दरबारा सिंह भारतीय सेना की 6 पैरा रेजिमेंट में तैनात थे। वर्ष 2001 में जम्मू-कश्मीर के सेक्टर पूंछ में दुश्मनों से लड़ते हुए दरबारा सिंह को छाती पर दो गोलियां और वो देश के लिए कुर्बान हो गए।

शहीद दरबारा सिंह ने शहादत से 10 दिन पहले परिजनों को चिट्ठी भेज दिया था घर लौटने का संदेश | Shahid Darbara Singh

सच कहूँ/राहुल इन्सां/असंध। यह सच है यदि आज हम अपने घरों में चैन की नींद सो रहे हैं तो वो सिर्फ सरहदों पर तैनात देश के जवानों की बदौलत। देश के लिए न जाने कितने जवानों ने अपने प्राणों को हंसते-हंसते कुर्बान कर दिया। ऐसे ही एक जवान थे शहीद दरबारा सिंह। जो 9 जुलाई 2001 को जम्मू-कश्मीर के सेक्टर पूंछ में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे।

वर्ष 2001 में दुश्मनों से लोहा लेते हुए पूंछ में छाती पर खाई थी गोलियां

शहीद दरबारा सिंह भारतीय सेना की 6 पैरा रैजिमैंट में तैनात थे व आतंकवादियों से लड़ते समय छाती में दो गोली लगने से शहीद हो गए थे। दरबारा सिंह के शहीद होने से करीब दस दिन पहले परिवार वालो कों एक चिट्ठी मिली थी जिसमें दरबारा सिंह ने शीघ्र ही घर आने की बात कही थी। उन्होंने लिखा था कि अतिशीघ्र ही उनकी यूनिट आगरा में आने वाली है।

आगरा आने के बाद ही उन्हें छुट्टी मिलेगी व तब वह घर वापिस आएगा। लेकिन वक्त को शायद कुछ ओर ही मंजूर था कि दस दिन बाद दरबार सिंह के शहीद होने का समाचार परिवार वालो को मिला।

बैंगलोर में ही हुई थी दरबार सिंह की पहली पोस्टिंग | Shahid Darbara Singh

अंसध के गांव उपलाना में 1976 में माता कुलदीप कौर की कोख से जन्मे एवं सरदार लखा सिंह के लाड़-प्यार मेें पले दरबारा सिंह में देश सेवा का जज्बा बचपन से ही था। दरबारा सिंह अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे उनसे छोटी उनकी बहन गुरप्रीत कौर व छोटे भाई गुरजंट सिंह है। दरबारा सिंह ने अपनी मैट्रिक तक की परीक्षा गांव के ही राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विधालय से ही प्राप्त की व सैकें डरी की परीक्षा असंध के राजकीय सीनियर सैकें डरी स्कूल से प्राप्त की थी।

वर्ष 1997 में करनाल में भर्ती आई व दरबारा सिंह ने भी जाकर अपना ट्रायल दिया व प्रथम ट्रायल में ही दरबारा सिंह का भारतीय सेना के लिए चयन हो गया था। उसके बाद ट्रेनिंग के लिए वह बैंगलोर चले। दरबार सिंह की पहली पोस्टिंग बैंगलोर में ही हुई। कुछ समय बाद उन्हें राजस्थान भेज दिया गया। वर्ष 2001 में जम्मू-कश्मीर के सेक टर पूंछ में दुश्मनों से लड़ते हुए दरबारा सिंह शहीद हो गए थे।

बेटे की शहादत पर मुझे गर्व: कुलदीप कौर

शहीद दरबारा सिंह ने मात्र 23 वर्ष की उम्र में ही देश की रक्षा के लिए अपने प्राण बलिदान कर दिए। दरबारा सिंह की माता कुलदीप कौर ने बताया कि उनके पुत्र ने देश की सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी यह उनके लिए गर्व की बात है। उन्होंने बताया कि बचपन से ही देश की सेवा करने का जज्बा रखने वाला उनका पुत्र दरबारा सिंह हर समय देश की सेवा करने की ही बातें किया करता था। उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं दरबारा सिंह की मां हूँ।

पिता बोले, हर साल कोई नहीं पहुंचता श्रद्धांजलि देने

शहीद दरबारा सिंह के पिता सरदार लखा सिंह ने नम आंखों से भावुक होते हुए कहा कि मेरे बेटे ने तो देश के लिए कुर्बान होकर अपना फर्ज अदा कर दिया लेकिन हर साल उनकी आंखों तब नम हो जाती है जब उनके शहीदी दिवस पर उनके बेटे को श्रद्धांजलि देने के लिए गांव से न तो ग्राम पंचायत पहुंचती है और न कोई प्रशासिनक अधिकारी। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि आज शहीदों और उनके परिवारों को जो सम्मान मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा। जिसके कारण हर शहीद के परिवार में सरकार के प्रति रोष है।

गांव में अपनी पैसों से स्थापित करवाई प्रतिमा

शहीद के परिजनों का कहना है कि सरकार ने तो उनके शहीद बेटे को कोई सम्मान देने की जहमत नहीं उठाई तो उन्होंने स्वय अपने पैसों पर गांव में शहीद दरबारा सिंह की प्रतिमा स्थापित की। ताकि प्रसानिक अधिकारी चाहे उनके बेटे को याद न करें लेकिन आने वाली युवा पीढ़ी उनके बेटे की बदादुरी को याद कर देश सेवा के लिए आगे आती रहे।

 

 

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