सन् 1973 की बात है। हमारा सारा परिवार नाम लेने के लिए मासिक सत्संग पर आश्रम में पहुंचा तथा नाम-दान लिया। जब हम घर वापिस पहुुंचे तो देखकर घबरा गए क्योंकि घर के सभी ताले टूटे हुए थे। हमनें सोचा कि शायद चोरों ने अपना काम कर दिया है परंतु जब अंदर जाकर देखा तो सारा सामान सुरक्षित अपनी जगह पर पड़ा था। इतने में मेरा पड़ोसी आया और बोला कि भाई, जब बाहर जाओ तो कम से कम बाहर के दरवाजे पर तो ताला लगा जाया करो। मैंने गलती के लिए क्षमा मांगते हुए कहा कि आपने हमारे घर की रखवाली की उसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
उसने कहा, आप तो मकान को ताला लगाकर नहीं गए, परंतु आपके जाने के बाद मैंने बाहर वाले कमरे में सफेद वस्त्र धारण किए एक बुजुर्ग बाबा जी को बैठे देखा। उनका लम्बा कद था और सफेद दाढ़ी थी। उनके हाथ में लम्बी लाठी भी थी तथा वे इधर-उधर घूमते रहते थे। वे रात के समय में भी गैलरी में घूमते रहते। आपकी उनके साथ क्या रिश्तेदारी है? वह व्यक्ति पूजनीय परम पिता जी के बारे में नहीं जानता था। उपरोक्त सभी बातें सुनकर हमें पूर्ण विश्वास हो गया कि हमारी अनुपस्थिति में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने स्वयं हमारे घर की रखवाली की। मैंने उसे पूजनीय परम पिता जी के बारे में विस्तार से समझाया। हमें अपने सच्चे रहबर से नाम लेने और दर्शनों की इतनी तड़प थी कि हम घर पर ताला लगाना ही भूल गए थे। इस प्रकार पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने हमारे विश्वास को और भी दृढ़ कर दिया।
-श्री ईश्वर सिंह, एठ. जुलाना, जींद (हरियाणा)
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