जगमगा रही है रूहानियत की लौ
- परमपिता शाह सतनाम जी महाराज की मीठी यादें
जिनका नूर-ए-जलाल सृष्टि के कण-कण में समाया है, जिनके जलाल से जर्रा-जर्रा रोशन है, खुदा की खुदाई जिनके ईशारों पर कार्यरत है। जिनके हुक्म में दोनों जहां हैं, पृथ्वी, आकाश, पाताल, दसों दिशाएं। खण्ड-ब्रह्मंड जिनके सहारे टिके हैं, सारी कायनात जिनके नूर से रौशन है। ऐसे रूहानियत के सच्चे रहबर परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के पूर्णत: गुणगान गाए ही नहीं जा सकते। परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने समूची कायनात में संपूर्ण मानव जगत को केवल और केवल सच्चाई, नेकी, भलाई, सदकर्मों व इंसानियत का पाठ पढ़ाया।
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दुनिया में ऐसी कोई कलम नहीं जो आपजी के सृष्टि पर किए गए उपकारों का लिखकर बखान कर सके। समस्त धरा का कागज बना लिया जाए, दुनिया के सारे समंदरों के पानी की स्याही हो और लिखने वाले स्वंय पवनदेव हों तो स्याही खत्म हो सकती है, कलमें घिस सकती हैं, पवन लिखारी भी तौबा-तौबा करने लगेगा लेकिन गुरू-मुर्शिद कामिल शाह सतनाम दाता रहबर के गुण फिर भी पूर्णत: लिखे नहीं जा सकेंगे। गुणों, परोपकारों के भंडार सतगुरु पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के रहमो-कर्म अवर्णननीय हैं।
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को हरियाणा के सरसा जिले के गांव श्री जलालआणा साहिब में पूज्य पिता सरदार वरियाम सिंह जी जैलदार के घर पूजनीय माता आसकौर जी की पवित्र कोख से अवतार लिया। आप जी का बचपन का नाम श्री हरबंस सिंह जी था। लेकिन आप जी जब बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पास डेरा सच्चा सौदा में आए तो मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम बदल कर सतनाम रख दिया और आप जी के बारे में वचन किए कि ये वो ही सतनाम है जिसे मुद्दतों से दुनिया जपती है। देखा है कभी किसी ने ? जो इनके दर्शन कर लेगा वो भी नर्को में नहीं जाएगा सतनाम कुल मालिक का नाम है।
शाह सतनाम जी महाराज का बहुत ऊंचा व नेक दिल घराना, धन धान्य आदि जहां किसी भी दुनियावी वस्तु की कमी नहीं थी, चिंता थी तो केवल संतान की। एक बार गांव में एक फकीर का आगमन हुआ। पूज्य माता-पिता जी ने कई दिनों तक उस फकीर की दिल से सेवा की जिससे उस फकीर ने खुश होकर कहा-भक्तो आपकी सच्ची-सेवा से हम बहुत खुश हैं। आप की सेवा भगवान को मंजूर है। वह आपकी संतान प्राप्ति की कामना को अवश्य पूरी करेगा। आपके घर कोई महापुरुष जन्म लेगा। इस तरह उस सच्चे फकीर की दुआ से पूज्य माता-पिता की 18 वर्ष की प्रबल तड़प उस समय पूरी हुई जब पूज्य परम पिता जी ने 25 जनवरी 1919 को उनके यहां अवतार लिया।
बचपन से ही दयालुता के समुद्र आप जी शुरू से ही घरेलू कार्यों की बजाए परमार्थी कार्यों में अधिक रूचि लेते और लोगों का हर सम्भव भला करते। आप जी के दिल में बचपन से ही परमपिता परमात्मा के प्रति असीम लगाम व बेइंतहा तड़प के कारण आप जी अनेक साधु-महात्माओं के सानिध्य में गए लेकिन आपके मन को कहीं भी तसल्ली नहीं मिली। अंत में आप जी पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज की शरण में आ गए। 1954 में आप जी घुक्कांवाली आश्रम में पहली बार शहनशाह मस्ताना जी महाराज की पावन-दृष्टि में आए, पहले दिन से ही शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को अपना भावी उत्तराधिकारी मान लिया था और उसी दिन से ही आप जी को अपने रूहानी नजरिए से देखना आरंभ कर दिया था।
पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को अपने मूढ़े के पास आकर बैठने के पावन वचन फरमाए और साथ ही फरमाया कि ‘आपसे कोई विशेष काम लेना है, आपको जिंदाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।’ जब समय आया,पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने परमपिता जी को दुनिया के सामने जाहिर कर दिया। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने गुरगद्दी की रसम से पूर्व आप जी की कड़ी परीक्षा लेकर दुनिया को दिखाया कि गुरू शिष्य का प्रेम क्या होता है ? पूज्य मस्ताना जी महाराज ने आप जी को अपनी बड़ी हवेली गिराकर उसका सारा सामान आश्रम में लाने के वचन फरमाए तो पूज्य शाह सतनाम जी महाराज अपने सतगुर का हुक्म मानते हुए अपना सारा सामान लेकर डेरे आ गए। परीक्षा अभी और भी कठिन थी।
पूज्य बेपरवाह जी ने आधी रात को शाह सतनाम जी महाराज को अपना सारा सामान लेकर बाहर जाने के वचन फरमाए। पूज्य शाह सतनाम जी महाराज अपने मुर्शिद का हुक्म सर माथे लिया और कड़ाके की ठंड व बूंदाबांदी के बीच ही आश्रम के बाहर बैठ गए। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने अगले दिन सुबह सारा सामान साध-संगत को लुटवा दिया। यह दिन था 28 फरवरी 1960 का। इस तरह कड़ी परीक्षा के बाद पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने पूज्य शाह सतनाम जी महाराज को गुरगद्दी की बख्शिश की और स्पष्ट कि या कि पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज स्वयं परमपिता परमात्मा का स्वरूप कुल मालिक हैं।
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने 31 वर्ष तक साध-संगत व इस पावन दरबार को अपने रहमो-कर्म के अमृत से बड़े ही प्रेम-प्यार से सींचा। अपने सच्चे मुर्शिदे कामिल बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की सर्व धर्म शिक्षा को अपने रूहानी सत्संगों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया। आपजी ने बिना किसी भेद-भाव के दुनिया को मालिक की सच्ची राह दिखायी, उस पर चलने के लिए दुनिया को प्रेरित किया। आपजी के रूहानी सत्संगों के उज्जवल प्रकाश से रोशन हो 11 लाख से भी ज्यादा लोगों ने नाम, गुरूमंत्र धारण कर अपना जीवन सफल किया।
परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने 23 सितम्बर 1990 को पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दुनिया के सामने अपना ईश्वरीय स्वरूप जाहिर किया। आप जी ने सारी साध-संगत में स्पष्ट किया कि ‘ ये(पूज्य गुरू जी) हमारा ही रूप है। साध-संगत ने जो भी कोई बात करनी है (सत्संग, नाम, दरबार की, रूहानियत की या जो भी) इनसे ही करें, हमारा इसमें अब कोई काम नहीं। हम तो अब मस्त फकीर हो गए हैं। दो फुल्के छक लिया करेंगे और गुरू-गुरू करेंगे। गुरूगद्दी बख्शीश के बाद पंद्रह महीने आपजी ने स्वयं बॉडी रूप में पूज्य हजूर पिता जी के साथ रहकर रूहानियत, सूफीयत के इतिहास में एक अनूठी मिसाल कायम की। और वचन फरमाए ‘हम थे,हम हैं और हम ही रहेंगे’।
संत खंडो ब्रहमण्डों के मालिक होते हैं जो जीवों को गुरूमंत्र प्रदान कर जन्म-मरण से आजाद तो करते ही हैं और परमात्मा द्वारा निर्धारित नियमों को भी बनाए रखते हैं। विधी के विधान अनुसार उन्हें भी शरीर त्यागना पड़ता है। इसी प्रकार पूज्य परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने 13 दिसंबर 1991 को चोला बदलकर अपने आपको पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में प्रकट किया। आज आप जी के ही रूप पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणाओं से छह करोड़ लोग नशे इत्यादि बुराईयां छोड़कर सद्कर्म के मार्ग पर चल रहे हैं। पूज्य गुरू जी की पावन प्रेरणाओं का ही नतीजा है कि डेरा सच्चा सौदा की करोड़ों की साध-संगत आज दुनियाभर में मानवता भलाई के 127 कार्यों में जोर-शोर से लगी है।
अत: पूज्य परमपिता शाह सतनाम जी महाराज की पावन याद हर दिल में समाई है। उनकी पवित्र याद में डेरा सच्चा सौदा में 11 से 15 दिसंबर तक 25वां याद-ए-मुर्शिद फ्री नेत्र जांच शिविर लगाया जा रहा है जिसमें हजारों अंधेरी जिंदगियों को रोशनी मिलेगी। परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज द्वारा प्रज्जवलित रूहानियत की लौ जिसे परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने और जगमगाया, आज पूज्य हजूर पिता जी के पावन सानिध्य में पूरी दुनिया को रोशन कर रही है।
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