यह बात नवम्बर, 1972 की है। हम सत्संग सुनने तथा पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के दर्शन करने के लिए सरसा आश्रम में आए हुए थे। हमारे साथ गांव खुईयां मलकाना की एक बहन राम प्यारी भी आई हुई थी। उसका लगभग डेढ़ वर्ष का लड़का जो काफी समय से बीमार था। इस समय वह अचेत अवस्था में था व जिसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। वह उसे पूजनीय परम पिता जी से आशीर्वाद दिलाने के लिए अपने साथ लेकर आई थी।
पूजनीय परम पिता जी स्टेज पर विराजमान थे। शब्दवाणी चल रही थी। सत्संग समाप्ति के बाद वह बहन अपने बीमार बच्चे के बारे में अर्ज करने के लिए पूजनीय परम पिता जी के पास गई और बच्चे की इस हालत को देखकर फूट-फूट कर रोने लगी। पूजनीय परम पिता जी ने मां की ममता और बच्चे की चिंताजनक हालत को देखते हुए फरमाया, ‘‘बेटा, सुमिरन करो और सतगुरू पर विश्वास रखो।’’
“सतगुरू जी की अनोखी लीला को अपनी आंखों से देखा”
उस बहन ने फिर रोते हुए अर्ज की, ‘‘हमारे तो केवल आप जी ही हो, हमें आप जी का ही सहारा है।’’ तत्पश्चात पूजनीय परम पिता जी ने कुछ चीनी के दाने मंगवाए और उस बच्चे के मुंह में डाल दिए। उस समय सारी साध-संगत से प्यारे सतगुरू जी की इस अनोखी लीला को अपनी आंखों से देखा। चीनी का तो एक बहाना ही था, वास्तव में यह प्यारे सतगुरू जी की रहमत ही थी। वह बच्चा जो बिल्कुल अचेत पड़ा था, होश में आ गया। यह देखकर सारी साध-संगत खुशी से नाचने लगी।
संतोष कुमारी, सरसा (हरियाणा)
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