आईये जानें, कैसे बना श्री जलालआणा साहिब में ‘मौज मस्तपुरा धाम’

अाज पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के अवतार माह की खुशी में सच कहूँ आपको रूबरू करवा रहा है, पावन धरा श्री जलालआना साहिब के गौरवशाली इतिहास से, जिसके चलते करोड़ों लोगों के जीवन में खुशियां छाई। आईए जानें कैसे पड़ी डेरा सच्चा सौदा, ‘मौज मस्तपुरा धाम’ की नींव। अगस्त 1956 की बात है। गांव के कुछ मुख्य भक्तों ने स. हरबंस सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) के साथ आकर पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी से गांव में डेरा बनाने के लिए प्रार्थना की।

आप जी ने प्रसत्र होते हुए हुक्म फरमाया कि आपका डेरा मंजूर है। जमीन बताओं, कहां बनाओगे? सभी ने गांव के बिल्कुल नजदीक 2 एकड़ 16 मरले जमीन का नक्शा दिखाया। जो गांव के उत्तरी-पश्चमी दिशा में स्थित है। ये वो जमीन है जहां पर अब दरबार (डेरा सच्चा सौदा, मौज मस्तपुरा धाम) स्थित है और रजबाहा (पानी का छोटा नाला) भी पास से गुजरता है।

पूज्य बेपरवाह जी ने स्वीकृति प्रदान करते हुए हुक्म फरमाया, ‘वरी! ये जमीन ठीक है। कच्ची र्इंटें निकालकर डेरा बनाना शुरू कर दें।

  • र्इंट खुद अपने हाथों से निकालनी हैं।
  • इस प्रकार अपने प्यारे मुर्शिद दाता जी के हुक्मानुसार गांव की साध-संगत में बहुत जबरदस्त खुशी पाई गई।
  • पूजनीय परम पिता अपने घर से एक थाल भरकर गुड़ ले आए।
  • उसी शाम निशान लगाकर गुफा की नींव खोद दी गई।
  • सब को गुड़ का प्रसाद बांटा गया।
  • अपने प्यारे सतगुरु जी के हुक्मानुसार आश्रम की सेवा शुरू कर दी गई।
  • दिन के समय र्इंट निकाली जातीं और रात को सारी संगत नींव की खुदाई करती।
  • सारे गांव मेंं इस बात का प्रबल उत्साह था।
  • पूजनीय परम पिता जी भी साध-संगत के साथ बराबर र्इंटें निकालते रहे।

इस प्रकार साध-संगत के प्रबल उत्साह से आश्रम में एक शहनशाही गुफा, उसके आगे बरामदा, एक छोटा चौबारा, मुख्य द्वार तथा कच्ची चार-दीवारी बनवाई।

जब साईं जी ने परम पिता जी को किए वचन | Shah Satnam Ji Maharaj

बेपरवाह सांई मस्ताना जी महाराज ने श्री जलालआणा साहिब में पहला सत्संग फरमाया। रात को सत्संग के बाद पूज्य शहनशाह जी ने पूज्य परम पिता जी के घर में ही नाम की इलाही दात प्रदान की। बेपरवाह जी ने पूजनीय परम पिता जी की तरफ इशारा करते हुए वचन फरमाया, ‘सरदार हरबंस सिंह (पूजनीय परम पिता जी) आप इन सबके जमानती हो। इस पर परम पिता जी ने अर्ज की, ‘‘सांर्इं जी, आप जी ने इन्हें नाम देना है और आप जी ने स्वयं ही इन्हें संसार सागर से पार लांघाना है फिर हम जिम्मेवार कैसे हुए? बेपरवाह जी ने वचन फरमाया, ‘नहीं वरी! आप ही इनके जिम्मेवार हैं। अगले जहान के जिम्मेवार भी आप हैं। इनके लिए यहां के जिम्मेवार भी आप ही हैं।

 

 

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