‘‘सरदार सतनाम सिंह जी बहुत बहादुर हैं। सरदार सतनाम सिंह जी ने मस्ताना गरीब के लिए बहुत बड़ी कुर्बानी की है। इन्होंने मस्ताना गरीब के हरेक हुक्म की पालना की है। इनकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।’’ ये वचन पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के बेमिसाल त्याग, प्रबल प्यार, नि:स्वार्थ महान सेवा, सच्चा ईश्वरीय प्यार और राम-नाम के लिए जबरदस्त कुर्बानी पर खुश होकर भरी संगत में फरमाये, सार्इं जी ने संगत में सरेआम फरमाया कि इससे पहले क्या किसी ने सतनाम की फोटो कहीं देखी है? हालांकि सभी की फोटो हैं, परन्तु सतनाम की फोटो कहीं भी पहले नहीं देखी है।
ये गरीब मस्ताना सतनाम को अर्शों से ढूँढ कर लाया है। ये हैं वो सतनाम, जिसे दुनिया जपदी-जपदी मर गई, पर किसी ने आज तक उसे देखा नहीं! असी इन्हें अर्शों से लेकर आए हैं। जो भी कोई इनका नाम लेकर याद करेगा (इनके नाम का चिंतन करेगा) उसका उद्धार ये अपनी रहमत से करेंगे। पक्षी, परिन्दा भी कोई अगर ऊपर से गुजरा वह भी नरकों में नहीं जायेगा। और इस प्रकार पूज्य सांर्इं मस्ताना जी महाराज ने अपनी अपार रहमतें बख्श कर पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज को डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह अपना उत्तराधिकारी बनाकर गुरगद्दी पर विराजमान किया।’’
संक्षिप्त जीवन परिचय:- पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को पूज्य पिता जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी सिद्धू के घर, परम पूजनीय माता आसक ौर जी की पवित्र कोख से अवतार धारण किया।
आप जी गांव श्री जलालआणा साहिब तहसील मंडी डबवाली जिला सरसा (हरियाणा) के रहने वाले थे। प्रभु-परमेश्वर की भक्ति की सच्ची लगन आपजी के अंदर पूज्य माता-पिता जी के पवित्र संस्कारों के फल स्वरूप बचपन से ही थी। जैसे-जैसे आप जी बड़े होते गए, उस परम सच (मालिक) को देखने और सब गम-फिक्रों को मिटाने वाली ईश्वरीय सच्ची वाणी को पाने की तड़प आप जी के अंतर्मन में निरंतर बढ़ती गई।
आप जी, अपनी जिम्मेवारियों (परिवार के प्रति, अपने बहुत बड़े जमींदारा- कार्यों के प्रति और गांव के समाज -भलाई के कार्यों के प्रति) को निभाते हुए उस सच्ची वाणी, उस परम सच की खोज में लग गए। इस वाणी दौरान आप जी ने अनेक साधु-महात्माओं को सुना, उन्हें देखा, परखा।
एक बार आप जी डेरा सच्चा सौदा सरसा के पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के सत्संग में आए। पूज्य बेपरवाह जी के ईलाही वचनों में आपजी ने असल सच को रू-ब-रू देखा। इसी की ही आप जी को तलाश थी। आप जी ने उसी दिन से ही सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज को अपने सतगुरु, अल्लाह, राम, परमेश्वर के रूप में हमेशा के लिए अपने दिल में बसा लिया। आप जी लगातार तीन साल सार्इं मस्ताना जी महाराज का सत्संग करते रहे। इसी दौरान आपजी ने नाम-शब्द, गुरुमंत्र लेने की भी बहुत बार कोशिश की, जबकि आप जी ने अपने साथियों, अपने गांव के बहुत लोगों को साईं जी से नाम-शब्द पहले ही दिलवा दिया था, लेकिन बेपरवाह साईं जी आप जी को यह कहकर नाम लेने वालों में से उठा दिया करते कि आप को अभी नाम लेने का हुक्म नहीं है। और एक बार तो पूज्य सार्इं जी ने स्पष्ट ही वचन कर दिया, जब समय आया आप को खुद बुलाकर, आवाज देकर नाम-शब्द देंगे, आप सत्संग करते रहो। जब कि सार्इं जी ने नए नाम लेवा जीवों का आप जी को ही जमानती बनाया। आप जी ने विनती भी की सार्इं जी, आप जी ने ही इन्हें नाम शब्द देना है और आप जी ने ही पार ले जाना है। साई जी ने वचन किया, ‘‘नहीं वरी, आप ही इनके जिम्मेवार हैं। अगले जहान के जिम्मेवार भी आप ही है’’।
जाहिर किया कुल मालिक :-
आप जी अपने पूज्य सतगुरु साईं मस्ताना जी महाराज के वचनानुसार लगातार तीन साल तक सत्संग में आते रहे। पूज्य सार्इं जी ने दिनांक 14 मार्च 1954 को डेरा सच्चा सौदा अनामी धाम घूकांवाली में सत्संग फरमाया। सत्संग की समाप्ति के बाद पूज्य सार्इं जी ने ऊंचे चबूतरे (जहां सत्संग लगाया था) पर खड़े होकर आप जी को आवाज लगाई, ‘सरदार हरबन्स सिंह जी, आज आप जी को भी नाम-शब्द लेने का हुक्म हुआ है।’ आप अंदर जाकर हमारे मूढ़े के पास बैठो, हम भी आते हैं! मूढ़े के पास जगह न होने के कारण आप जी पीछे ही उन नाम लेने वाले भाईयों में आकर बैठ गए। पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को अपने मूढ़े के पास बिठाया और वचन फरमाया, ‘‘आप को इसलिए पास बिठाकर नाम देते हैं कि आपसे कोई काम लेना है। आप को रूहानियत (जिन्दाराम) का लीडर बनाएंगे, जो दुनिया में नाम जपाएगा।’’
रब्ब की पैड़:- एक दिन पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने रेत पर पड़े पैरों के एक निशान पर अपनी डंगोरी से गोल घेरा बनाकर अपने साथ आ रहे सेवादारों से फरमाया, ‘‘आओ भई वरी, तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं।’’ संत-सतगुरु, सच्चे पूर्ण फकीर की रमज़ दुनिया के मन-बुद्धि, सोच-समझ से परे की बातें हैं। उन सेवादारों में एक भाई ने कहा; जी ये तो (इतने लम्बे पांव के निशान) श्री जलालआणा साहिब के सरदार हरबन्स सिंह जी के पांव के निशान हैं! इस पर सच्चे रहबर, सर्वसामर्थ सतगुरु जी ने अपने उन्हीं वचनों पर जोर देते हुए फरमाया, ‘‘असीं और किसी को नहीं जानते! इतना जानते हैं कि ये रब्ब की पैड़ है।’’
सख्त परीक्षा:-
पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महराज ने एक से एक बढ़कर सख्त परीक्षाएं आप जी के लिए रखीं लेकिन आप जी के प्रबल मुर्शिद-प्रेम को कोई भी डुला नहीं सका, क्योंकि आप जी ने तो अपने सच्चे रहबर शाह मस्ताना जी महाराज को पहले दिन से ही अपना भगवान और सबकुछ मान लिया था। जनवरी 1958 की बात है। श्री जलालआणा साहिब में डेरा सच्चा सौदा मस्तपुरा धाम बन कर तैयार हो गया था। पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज साध-संगत के अनुरोध पर डेरे के उद्घाटन के लिए श्री जलालआणा साहिब में पधारे। पूजनीय परम पिता जी के मार्ग-दर्शन में गांव की साध-संगत ने पूज्य सार्इं जी का धूम-धाम से स्वागत किया।
साध-संगत का ऐसा प्रबल प्रेम देखकर पूज्य सार्इं जी बहुत खुश थे। वचन फरमाया, ‘‘मुल्ख माही दा वस्से, कोई रोवे ते कोई हस्से।’’ गदराना में डेरा सच्चा सौदा आनन्दपुरा धाम स्वयं सार्इं जी के हुक्म द्वारा गिरवाया जा रहा था, जिससे वहां की संगत मायूस (निराश) थी। उसी दिन पूज्य शहनशाह जी ने
मस्तपुरा धाम श्री जलालआणा साहिब का अपने पवित्र कर-कमलों से उद्घाटन किया था और संगत में विराजमान होकर उनमें अपना प्यार और खुशियां बांट रहे थे। अर्थात् ‘आनन्दपुरा रोवे ते मस्तपुरा हस्से।’ उन दिनों पूज्य साईं जी लगातार 18 दिन तक मस्तपुरा धाम (श्री जलालआणा साहिब) में ठहरे थे। उसी दौरान बेपरवाह जी ने आप जी के सामने आए दिन कड़ी से कड़ी परीक्षाएं रखी।
पूज्य साई जी ने आप जी को गदराना डेरे का सामान र्इंटें आदि मलबा उठवां कर लाने का आदेश दिया। बेपरवाही हुक्म सर माथे, सत्वचन कहकर आप जी ऊंट-गाड़ियां तथा अपना ट्रैक्टर ट्राली आदि साधन लेकर उसी समय गदराना को चले गए। उधर तो गदराना डेरे के मलबा की ढोआ-ढुआई रात-भर चलती रही और इधर करीब आधी रात को पूज्य सार्इं जी ने वहां पर मौजूद 7-8 प्रेमी-सेवादारों को चोरमार वाला डेरा गिराने व डेरे का सारा सामान (मलबा) मस्तपुरा धाम में उठा लाने का वचन कर दिया। चोरमार में डेरे की र्इंटों का तो एक बड़ा चबूतरा-सा बनाकर उसपे एक झंडा गड़वा दिया और बाकी सारा सामान मस्तपुरा धाम में इकट्ठा कर लिया गया।
गदराना डेरे का मलबा अभी भी ढोया जा रहा था और आपजी तब तक वहीं गदराना में मौजूद रहे जब तक वहां से सारा सामान ढो नहीं लिया गया था। इधर पूज्य शहनशाह जी ने एक और अनोखा खेल रचाया, सार्इं जी ने घूकांवाली गांव की संगत को बुलवाकर, आप जी के पीछे से मस्तपुरा धाम में एकत्रित सारा सामान घूकांवाली के लिए उठवा दिया और गदराना डेरे का बाकी सामान गदराना में डेरा दौबारा बनवाने के लिए वहां की साध-संगत को ले जाने का हुक्म दे दिया। वर्णनीय है कि गदराना में डेरा गिराये जाने पर गांव की कुछ बीबियां (माता-बहनें) पुरुषों का लिबास पहन कर, सिर पर पगड़ियां बांधकर गदराना में डेरा दौबारा मंजूर करवा कर ले गई थी, जोकि इतिहास बना कि प्रेमी पुरुष तो चूड़ियां पहन (दुबक कर) घरों में बैठ गए और बीबियां मर्द बनकर पूज्य सार्इं जी से गांव में डेरा मंजूर करवा कर लाई हैं। और सारा कार्य, ये सारी उथल-पुथल, इधर से ले आओ और उधर वाले ले जाओं, आप जी के पीछे से ही हो गया। आप जी ने जब आकर सामान की उथल-पुथल देखी तो आप जी आपने गांव की संगत, जिम्मेवार सेवादारों से थोड़ा नाराज हुए कि अपने द्वारा यहां लाया गया सामान क्यों किसी को उठाने दिया है? क्यों नहीं रोका गया? पूज्य बेपरवाह जी वहीं पास ही खड़े मुस्कुरा रहे थे, जब उनमें से किसी ने कहा कि स्वयं सार्इं जी ने ही उन्हें बुलवाकर उठवाया है।
आप जी तो सत्वचन कहकर चुप रहे लेकिन सार्इं जी ने खुद अपनी सफाई में बोल दिया कि ‘इन्होंने हमें सामान उठवाने से नहीं रोका। ’ अब सेवादारों में प्रेम-निशानियां बांटी जानी थी, जिन्होंने श्री जलालआणा साहिब में डेरा मस्तपुरा धाम बनाने की तन-मन-धन से सेवा की थी। पूज्य सार्इं जी ने आप जी से सेवादारों की लिस्ट बना कर देने क ो कहा। आप जी ने अपनी संगत में राय-मशविरा किया। सारी संगत आप जी के साथ एकमत थी। उपरान्त आप जी अपनी संगत के साथ पूज्य बेपरवाह जी की पावन हजूरी में पहुंचे। आप जी ने अपनी झोली फैलाकर विनती की, ‘सार्इं जी, हमें तो आप जी का प्रेम चाहिए।’ सार्इं जी बहुत खुश हुए, ‘‘बल्ले-बल्ले! जलालआणा का प्रेम देखो भई! ऐसी चीज आजतक किसी ने नहीं मांगी। जाओ, वरी! ये सेवा दरगाह में मंजूर है।’’ सार्इं जी ने सारी संगत को अपने पवित्र कर-कमलों से प्रसाद प्रदान कर अपार खुशियां बख्शी।
श्री जलालआणा साहिब में प्रवास के दौरान पूज्य बेपरवाह जी सेवादारों में बैठकर आप जी की ऊंची शख्सियत के बारे आम चर्चा किया करते। एक दिन पे्रमी मक्खण सिंह जी (ओढ़ निभा गए सत ब्रह्मचारी सेवादार शेर सिंह जी) से वचन किया, ‘सरदार हरबन्स सिंह जी को सतगुरु बनाएंगे।’ (ऐसी राजभरी बातें अक्सर तब होती जब आप जी कहीं और सेवा में लगे होते) मक्खण सिंह जी की शंका की निवृति करते हुए सार्इं जी ने फिर फरमाया, ‘‘वो सतगुरु के नाम पर अपना सबकुछ लुटा देंगे।’’ ‘‘अरे, देखो वरी! (आप जी को आता देखकर सार्इं जी ने वहां पर मौजूद सेवादारों से फरमाया) इतना लम्बा और इतना सुन्दर नौजवान सारे हिन्दुस्तान में नहीं मिलेगा। ’’
ऐसे अपने निराले अलौकिक खेल रचकर सार्इं मस्ताना जी महाराज ने यहां का अपना निश्चित कार्य उन अठारह दिनों मेंं ही पूरा कर लिया था। पूज्य सार्इं जी बहुत, ज्यादा खुश थे। और अपनी मौज में आकर यहां के डेरे का नाम मस्तपुरा धाम से मौज मस्तपुरा धाम रख दिया अर्थात मौज यहां पूज्य परम पिता जी के अपार प्रेम, ढृढ़-विश्वास, अनथक सेवा से खुश है। सार्इं जी ने आप जी को बुलवा कर जब श्री जलालआणा साहिब से सरसा के लिए चलने लगे तो फरमाया, ‘सरदार हरबन्स सिंह जी, हमने तुम्हारी परीक्षा ली, पर तुम्हें पता तक भी नहीं चलने दिया।’ और इसके साथ ही सार्इं जी ने ‘सरदार चन्द सिंह जी की ड्यूटी मौज मस्तपुरा धाम (दरबार) में लगाते हुए फरमाया, सरदार चन्द सिंह जी आज से डेरा सच्चा सौदा मौज मस्तपुरा धाम की सेवा-संभाल तुमने करनी है, और यह भी फरमाया कि ‘‘सरदार हरबन्स सिंह जी तो हुक्म में हो गए हैं।’ इनको सतगुरु बनाएंगे।’’
सतगुरु जी ने जो कहा, किया, लुटा दिया खुद के हाथों से सब कुछ :-
परम पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की तरफ से जैसे ही मकान तोड़ने तथा घर का सारा सामान डेरे में लाने का हुक्म आप जी को मिला, पल भी देरी नहीं की। उसी समय कुदाल, फावड़ा हथौड़ा आदि लेकर अपनी हवेली पर चढ़ गए और स्वयं अपने हाथों तोड़ना शुरू कर दिया। गांव वाले, भाईचारे के लोग चाहे कुछ भी बोलते रहे, ध्यान तक भी नहीं दिया और लगे रहे अपनी धुन में। इतना ऊंचा खानदान, इतना बड़ा परिवार तो सामान घर का कितना हो सकता है, खुद ही अंदाजा लगाएं। ट्रक, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर सब कुछ लाकर डेरा सच्चा सौदा सरसा के प्रांगण में रख दिया।
सामान का पहाड़ जितना ऊंचा ढेर! सार्इं जी जैसे देर रात्रि बाहर आए तो पूछा, भई ये किसका सामान है और यहां पर क्यों रखा है? बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘गोरमेंट तो हमें पहले ही नहीं छोड़ती। अगर कोई हमसे पूछे कि तुम किसका घर पट के लाए हो, तो हम क्या जवाब देंगे? जिसका भी ये सामान है डेरे से बाहर रखें या शहर में कहीं भी और सामान की खुद रखवाली करें।’ हालांकि सब कुछ स्वयं सार्इं जी के हुक्म द्वारा ही हुआ था, परन्तु दुनिया को दिखाना होता है, गुरुमुखता क्या होती है। गुरु व शिष्य का नाता कैसा होना चाहिए! आप जी के दिल में जरा भी किसी चीज का मलाल नहीं था! सत्वचन कहकर आपजी ने सारा सामान उसी समय डेरे के बाहर आम आवा-जाई के उस कच्चे रास्ते पर रख दिया और वचनानुसार बतौर रखवाली करने बैठ गए अपने सामान के पास गुरु-ध्यान में। सर्दी का मौसम, कड़ाके की ठंड, ऊपर से बूंदा-बांदी और शीत लहर से मौसम और भी अधिक ठंडा था। अगले दिन आप जी ने (मुर्शिद प्यारे के हुक्मानुसार) मोटरसाइकिल समेत घर का सारा सामान एक-एक करके सत्संग पर पहुंची साध-संगत में स्वयं अपने हाथों से बांट दिया और अपने मुर्शिद-कामिल की अपार खुशियां हासिल की।
सतनाम-कुल मालिक का नाम:-
परान्त पूज्य बेपरवाह जी ने दरबार के पाठी सेवादार से पोथी (ग्रन्थ) लाने वा उसमें दर्ज श्री कृष्ण जी महाराज के समय का प्रसंग पढ़ने के लिए फरमाया। उसमें लिखा है श्री कृष्ण जी बृज की बाल-बालिकाओं (गोपियों) को संबोधित करते हुए कहते हैं- ‘तुमने लोहे के समान अपने अटूट बंधनों को तोड़कर मुझसे उत्तम दर्जे की प्रीत लगाई है और इसके बदले में मैंने तुम्हें जो राम-नाम का रस प्रदान किया है, वह बहुत कम है। इसलिए मैं क्षमा का प्रार्थी हूँ, मुझे क्षमा कर देना।’ इसी संदर्भ में पूज्य बेपरवाह जी ने साध-संगत, सेवादारों में फरमाया कि उन गोपियों की तरह सरदार हरबन्स सिंह जी ने अपने सतगुरु के नाम पर जो इतनी बड़ी कुर्बानी दी है और इसके बदले में हमने इन्हें जो राम-नाम का रस दिया है, वह बहुत ही कम है। हम भी माफी के अधिकारी हैं। शहनशाह जी ने सरेआम डंके की चोट पर आप जी को संबोधित करते हुए फरमाया, ‘‘सरदार हरबन्स सिंह जी , आप को आपकी कुर्बानी के बदले सच देते हैं! तुम्हें ‘सतनाम’ करते हैं!’’ उपरान्त शहनशाह जी ने साध-संगत को भी संबोधित करते हुए फरमाया, हमने सरदार सतनाम सिंह जी को (उसी दिन से पूज्य परम पिता जी का नाम सरदार हरबन्स सिंह जी से सरदार सतनाम सिंह जी (परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) हो गया), सतगुरु, कुल-मालिक बना दिया है। सतनाम अर्थात खण्ड-ब्रह्मण्डों का मालिक! सारे खण्ड-ब्रह्मण्ड जिनके सहारे खड़े हैं।
गुरगद्दीनशीनी-28 फरवरी 1960:-
पूज्य बेपरवाह जी के निर्देशनुसार पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली आदि दूर-दूर स्थानों से साध-संगत हुम-हुमाकर डेरा सच्चा सौदा में आ गई थी। आप जी के सौ-सौ के नए-नए नोटों के लम्बे-लम्बे (सिर से पैरों तक) हार पहनाए गए। बिना छत वाली एक ओपन जीप-गाड़ी जिसे विशेष तौर पर सजाया गया था और जिसमें खूबसूरत कुर्सी भी सजाई गई थी, पूज्य सार्इं जी ने आप जी को उस कुर्सी पर विराजमान किया। उपरान्त साध-संगत को संबोधित करते हुए आदेश फरमाया, ‘सरदार सतनाम सिंह जी बहुत ही बहादुर हैं। इन्होेंने इस ‘मस्ताना’ गरीब के हर हुक्म को माना है और बहुत बड़ी कुर्बानी दी है। इनकी जितनी तारीफ की जाए, उतनी ही कम है। आज से हमने इन्हें अपना वारिस, खुद-खुदा, कुल-मालिक, अपना स्वरूप बना लिया है।’
ईलाही जुलूस शोभा यात्रा
पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने साध-संगत को अपने पावन दिशा-निर्देश प्रदान करते हुए फरमाया कि सरसा शहर की हर गली, हर मुहल्लें में शोभा यात्रा निकालनी है। सभी साध-संगत ने इस ईलाही शोभा यात्रा में शामिल होना हे। पूरे जोर-शोर से ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ के नारों के साथ दुनिया को बताना है कि हमने (शाह मस्ताना जी महाराज ने ) अपने रहबर सार्इं सावण शाह जी के हुक्म से श्री जलालआणा साहिब के सरदार सतनाम सिंह जी को आज डेरा सच्चा सौदा को ‘अपना उत्तराधिकारी बना दिया है।’
इस प्रकार पूज्य सार्इं जी के हुक्मानुसार सारे सरसा शहर में राम-नाम का डंका बजा, डेरा सच्चा सौदा की जय-जयकार हुई सार्इं जी के इस अदभुत ईलाही कार्य की खूब चर्चा हुई। शोभा यात्रा की वापसी पर पूज्य सार्इं जी ने डेरे के मुख्य द्वार पर खड़े होकर स्वयं स्वागत किया। सार्इं जी ने फरमाया, ‘सरदार सतनाम सिंह जी को आज आत्मा से परमात्मा कर दिया है।’ उस दिन सार्इं जी ने जुलूस में शामिल सारी संगत को पंक्तियों में बिठा कर खुद अपने पवित्र कर-कमलों से प्रसाद प्रदान किया और अपनी अपार खुशियां दी। इस तरह पूरी हुई गुरगद्दीनशीनी की रस्म:- उस दिन 28 फरवरी 1960 को पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज आश्रम में खूबसूरत सजी स्टेज पर विराजमान हुए और अनामी गोल गुफा से आप जी को बुलाकर लाने के लिए सेवादारों को हुक्म दिया। हुक्म पाकर दो सेवादार गोल गुफा की तरफ दौड़े, यह देखकर पूज्य सार्इं जी ने उन्हें रोककर फरमाया, ‘नहीं भाई, ऐसे नहीं! दस सेवादार पे्रमी इकट्ठे होकर जाओ और सरदार सिंह जी को पूरे सम्मान (आदर-सत्कार) के साथ स्टेज पर लेकर आओं।’
पूज्य सार्इं जी ने आप जी को बहुत ही प्यार व सम्मान से अपने साथ स्टेज पर बिठाते हुए, आप जी को नोटों के हार पहनाए उपरान्त साध-संगत को संबोधित करते हुए पवित्र मुख से फरमाया, ‘दुनिया सतनाम-सतनाम-जपदी मर गई, देखा है भई किसी ने! बोलोे! बोलोे!’ जिस सतनाम को दुनिया जपदी-जपदी मर गई पर वो सतनाम नहीं मिला। वो सतनाम (आप जी की तरफ पवित्र इंशारा करते हुए) ये है। ये वोही सतनाम है जिसके सहारे सारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं। असीं इन्हें दाता सावण शाह साई जी के हुक्म द्वारा मालिक से मंजूर करवाया है और अर्शों से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है।
गुरगद्दी बख्शिश के लगभग दो महीने बाद यानि 18 अप्रैल 1960 को पूज्य बेपरवाह जी जोति-जोत समा गए। परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत के मनोबल को इतना बुलंद किया कि डेरा सच्चा सौदा लोगों की श्रद्धा का केन्द्र बन गया है। आप जी ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी आदि प्रदेशों में दूर-दूर तक गांवों, शहरों, कस्बों में दिन-रात करके हजारों सत्संग किए और लाखों लोगों (11 लाख से भी ज्यादा) को परमपिता परमात्मा के नाम-शब्द के साथ जोड़कर नशा आदि बुराइयों, पाखण्डों तथा सामाजिक कुरीतियों से उनका पीछा छुड़वाया। आप जी के पवित्र वचन, (भजनों-शब्दों, वार्तिक रूप में), लोगों का मार्ग दर्शन करते हैं।
आप जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूज्य मौजूद गुरु जी संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं अपने पवित्र कर-कमलों से, अपनी पावन हजूरी में हर अवश्य कानूनी प्रक्रिया पूरी करवा कर डेरा सच्चा सौदा में बतौर अपना उत्तराधिकारी तीसरे पातशाह के रूप में गद्दीनशीन किया। आप जी ने साध-संगत पर अपना यह महान रहमो करम फरमाया है। बाकि आप जी लगभग पन्द्रह महीने बराबर साथ भी रहे। गुरगद्दी के बारे क्यों, किन्तु, परन्तु आदि किसी तरह की भी शंका की कोई गुंजाईश नहीं रखी थी। ऐसे महान परोपकारी सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के परोपकारों को साध-संगत कभी भी भुला नही सकती। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महराज का ये गुरुगद्दीनशीनी दिवस 28 फरवरी को साध-संगत हर साल डेरा सच्चा सौदा में महा रहमो-करम दिवस के नाम से भण्डारे के रूप में मनाती है। इस पावन दिवस की सारी साध-संगत को कोटिन-कोटि बधाई हो जी।
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