‘‘हमनें तो पहले ही कहा था कि भक्त को कहीं सांप न खा जाए। इसलिए तेरे पास आए हैं, तेरा सतगुरू साथ है।’’
एक बार खेतों में दो सेवादारों के साथ पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज जी पैदल दूर तक निकल गए। एक सेवादार ने बाबा जी से कहा कि सांई जी, हम काफी दूर आ गए हैं। अब वापिस चलना चाहिए। इस पर दयालु दातार ने फरमाया, ‘‘नाहर सिंह आगे लकड़ियां लेने गया है, कहीं उसे सांप न काट खाए, कौन जिम्मेदार होगा।’’ थोड़ी देर बाद सामने से भक्त नाहर सिंह लंगर के लिए लकड़ियों की गठरी बांधे अपने सिर पर रखकर लाता हुआ मिला। उस गठरी में लकड़ियों में एक सांप लिपटा हुआ था। जब सांप की पूंछ उसने लटकती देखी तो गठरी नीचे फैंक दी और आप जी से कहा कि सांई जी, इसमें तो सांप है। सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘‘हमनें तो पहले ही कहा था कि भक्त को कहीं सांप न खा जाए। इसलिए तेरे पास आए हैं, तेरा सतगुरू साथ है।’’ फिर उस सांप को छोड़ दिया गया।
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