पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत
जीवां बाई फाजिल्का जिले के नुकेरिया गांव की रहने वाली थी। वह उन दिनों अपनी शादीशुदा बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित थी क्योंकि जीवां बाई की बेटी जट्टो बाई के चार लड़किया थीं कोई पुत्र नहीं था। इसलिए जीवा बाई के दामाद बलवंत सिंह के सगे-संबंधी बलवंत पर दूसरी शादी के लिए दवाब बना रहे थे। हालांकि बलवंत सिंह खुद नेक ख्यालों वाला व्यक्ति था लेकिन घर वालों के पुत्र-मोह के कारण वह भी दूसरी शादी करने के लिए मजबूर था। जीवां बाई व उसकी बेटी को यह चिंता घुन की तरह खाए जा रही थी। इसी दौरान जीवां बाई ने अपनी इस परेशानी के बारे में अपनी बहन को बताया जो सरसा जिले के गांव सुचान कोटली में ब्याही थी और डेरा सच्चा सौदा में श्रद्धा रखती थी।
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उसने अपनी बहन की परेशानी सुनकर उसे सरसा डेरे चलने की सलाह दी और कहा कि सच्चे सौदे वाले पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज तेरी इस समस्या को अवश्य हल कर देंगे। यह सुनकर जीवां बाई डेरा सच्चा सौदा में आने के लिए बेचैन हो उठी और शीघ्र ही अपनी बहन के साथ आश्रम में आ गई। बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज उस समय डेरा सच्चा सौदा की तेरावास के प्रांगण में थोड़ी सी साध-संगत के सम्मुख मूढ़े पर विराजमान थे। हृदय में बेटी के लिए लड़के की इच्छा लिए जीवां बाई अपनी बहन के साथ साध-संगत के पीछे ही बैठ गई। बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने उस समय साध-संगत के लिए वचन फरमाया, ‘‘सारे भेद इन्सान के अंदर है।
अंदर कारीगर बैठा है जो तेरे शरीर का सारा इंतजाम करता है। लेकिन तुझे उसकी मेहर का पता नहीं कि उसने तेरा इंतजाम तेरे पैदा होने से पहले ही कर रखा है। जब सतगुरू की कृपा द्वारा इन्सान अपने अंदर देखता है तो वह अपने आप का आशिक हो जाता है पर तूने अपने राम का शुक्राना नहीं किया। तेरा फर्ज है कि सुबह उठकर रोज इस दुनिया के मालिक को याद किया कर।’’ कुछ देर बाद पूजनीय बेपरवाह जी ने अपने पवित्र मुखारबिंद से फरमाया, ‘‘यहां फाजिल्का से जो बहन आई है वह आगे आ जाए।’’ यह बात सुनकर जीवां बाई आश्चर्यचकित रह गई और सोचने लगी कि इन्हें कैसे ज्ञात हुआ कि मैं फाजिल्का से आई हूं। उसने सोचा कि बाबा जी तो सचमुच ही अन्तर्यामी हैं।
उसका विश्वास और भी दृढ़ हो गया। जीवां बाई ने उठकर आप जी की पावन हजूरी में अपनी सारी परेशानी ब्यान कर दी।जीवां बाई की सारी बात सुनने के बाद आप जी ने पास ही रखी टोकरी में से एक केला तथा एक सेब उठाया और उसकी झोली में डालते हुए पावन वचन फरमाया,‘‘ये फल जाकर अपनी लड़की को खिला देना, मालिक मेहर करेगा।’’ फलों का प्रसाद लेकर जीवां बाई तुरंत अपनी बेटी के पास पहुंची और उसे वह प्रसाद खिला दिया। प्यारे सतगुरू जी की मेहर हुई और करीब एक साल बाद उसके घर पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह उनके जीवन में आया पतझड़ का मौसम एकाएक बसंत में बदल गया। आप जी की दया मेहर रहमत से जीवां बाई का दामाद व उसका परिवार नाम-दान प्राप्त कर सत्संगी बन गया।
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