दयालु सतगुरू बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम में पधारे हुए थे। वहां भंडारा मनाया जा रहा था। उस भंडारे में शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने पहले स्वयं लगभग एक-एक किलो की जलेबियां निकालकर दिखाई और फिर हलवाई को भी ऐसी बड़ी-बड़ी जलेबियां निकालने का हुक्म फरमाया। हलवाई श्रीराम अरोड़ा आप जी के हुक्मानुसार बड़ी-बड़ी जलेबिंया निकाल रहा था और हलवाई के पास ही एक बुजुर्ग लकड़ियां काट रहा था। उसका नाम मोमन लोहार था और वह महमदपुर रोही गांव का रहने वाला था। उसने बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पावन चरण कमलों में अर्ज की कि सांई जी! मेरे चार लड़कियां हैं पर लड़का नहीं है। उस समय उस बुजुर्ग की आयु 65 वर्ष की थी। शहनशाह जी ने वचन फरमाया, ‘‘अब तुम बुढ़े हो चुके हो। अब लड़के का क्या करना है।’’ मोमन ने कहा कि सांर्इं जी, मुझे लड़का चाहिए। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘चलो भाई!
सतगुरू जी से प्रार्थना करेंगे।’’ सतगुरू जी के वचनानुसार एक साल बाद उस बूढ़े के घर एक लड़के ने जन्म लिया। जब लड़का एक महीने पांच दिन का हुआ तो मोमन लोहार अपने परिवार सहित बच्चे का नाम रखवाने और शहनशाह जी को बधाई देने के लिए महमदपुर रोही दरबार में आ गया। उन दिनों शहनशाह जी सत्संग फरमाने के लिए महमदपुर रोही दरबार में पधारे हुए थे। शहनशाह जी ने उस लड़के का नाम ‘मुश्किल खुरशैद’ रख दिया। मुश्किल खुरशैद का अर्थ है कि बड़ी मुुश्किल से खुशी मिली। मोमन लोहार का परिवार वापिस जाने के लिए गेट पर पहुंचा तो वह लड़के का नाम भूल गया। फिर दोबारा आप जी के पास लड़के का नाम पूछने आए। और फिर नाम भूल गए। इस प्रकार उन्होंने पांच बार बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से नाम पूछा। फिर मोमन लोहार ने बेपरवाह शहनशाह जी के पावन चरण कमलों में अर्ज की कि सार्इं जी! सीधा सा नाम रखो जो हमारे याद रह जाए। इस पर बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने वचन फरमाया, ‘‘तुमको बहुुत खुशी हुई है ना, इसका नाम खुशिया रखते हैं।’’ इस प्रकार उस लड़के के जन्म की खुशी घर में ही नहीं सारे गांव में हुई।
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