सरसा (सकब)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (Pujya Guru Ji) फरमाते हैं कि सेवा और सुमिरन दो ऐसे गहने हंै जो भी मनुष्य इन्हें पहन लेता है, जीते-जी उसके सभी गम, चिंता, परेशानियां दूर हो जाती हंै, और मरणोपरांत आवागमन का चक्कर जड़ से खत्म हो जाता है। सेवा में सबसे जरूरी बात यह होती है कि अगर इन्सान पूरी तरह से तंदरुस्त है तो वह खुद की सेवा कम करवाए। वह सबसे पहले सेवा अपने घर से शुरुआत करे। अपनी मां, अपने बुजुर्ग बाप, दादा, परदादा कोई भी है अगर वे असमर्थ हैं तो उनकी मदद करे। यदि आपका तालमेल नहीं बैठता, आपस में लड़ाई-झगड़ा रहता है तथा वे अलग हो जाते हैं तो उनकी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि अगर इन्सान अपने परिवार से अलग हो जाए व उनके आपस में विचार नहीं मिलते तो आप सुमिरन करते रहिए क्योंकि वे आपके जन्मदाता हैं, उनका ऋण इन्सान कभी नहीं उतार सकता। इसलिए इन्सान को उनकी बुराइयों को नहीं देखना चाहिए। अगर आप अपने मां-बाप की बुराइयों को गाते हैं तो आप कैसे भले इन्सान बन जाएंगे
और जो मां-बाप हैं वे भी अपनी संतान की बुराइयों को मत गाएं, क्योंकि वो भी आपका ही खून है, वह कहीं बाहर से तो आया नहीं। ऐसा करने से आप भी तो बुरे बन जाएंगे, क्योंकि वो भी तो आपका ही खून है। इसलिए सबका सत्कार करना सीखें। इन्सान को कभी भी बड़ी-बड़ी बातें करके बड़बोला नहीं बनना चाहिए। उसको कई बार इसके लिए लेने के देने भी पड़ जाते हैं। इसलिए इन्सान को नेक कर्म करते रहने चाहिए।
लेकिन उसको इस बारे में कुछ बताने की जरुरत नहीं, क्योंकि अगर इन्सान कर्म अच्छे करेगा तो वो ऊपर बैठा राम सब कुछ देख रहा है, उसे इसका फल जरूर मिलेगा। पूरी दुनिया में अच्छे कर्म वाले इन्सान को सभी नमस्कार जरूर करते हैं। इसलिए जीव को जितना संभव हो सके यही सेवा करनी चाहिए।