एक किसान के सात पुत्र थे। सभी अव्वल दर्जे के मूर्ख, धूर्त एवं आलसी थे। कोई भी काम करके खुश नहीं था। मेहनत करना उनकी आदत नहीं थी। सारा दिन बेकार घूमने-फिरने में बिता देते थे। उनमें से एक भी स्कूल नहीं गया। सभी अनपढ़ रह गए। खाने को बढ़िया स्वादिष्ट भोजन, आराम करने को आरामदायक बिस्तर चाहिए था उन्हें। कठिन मेहनत के विचार करने भर से ही उनके हाथ-पांव फूल जाते थे।
उनका बाप बूढ़ा हो चुका था, वह अब चलने फिरने से लाचार हो गया था। वह अगर आलसी, मूर्ख बेटों को काम करने को कहता तो वे सभी बाप को ही खरी-खोटी सुनाकर खामोश करा देते। किसान अपने नालायक, मूर्ख बेटों के सामने बेबस हो जाता। सभी बेटे बाप के नियंत्रण से बाहर हो चुके थे। अपने से बड़ों की नेक सलाह वे नहीं मानते थे। किसान की पत्नी मर चुकी थी। उसका बुढ़ापा बड़ी कष्टदायक स्थिति से गुजर रहा था।
एक बार उसके पड़ोस में किसी किसान के घर भैंस ब्याई। उसने मानवता के नाते किसान के मूर्ख बेटों को बहुत सा दूध दिया ताकि वे खीर बनाकर खा सकें। अब दूध तो मिल गया पर मूर्खों को खीर बनानी नहीं आती थी। सभी नालायक भाई बाप के पीछे पड़ गए कि खीर बना कर दे।
किसान बीमार था फिर भी पुत्रों का मन रखने के लिए वह लड़खड़ाते हुए उठा और खीर बनाकर बेटों को दे दी। सातों के सात बेटे खीर खाने को बेताब थे। एक ने खीर चखी तो उसमें शक्कर नहीं थी। बड़े भाई ने छोटे से कहा, ‘दुकान पर जाओ और एक आने की शक्कर ले आओ, तब तक खीर ठंडी भी हो जाएगी। जल्दी जाओ।’
छोटे वाला बिदकर गरजा, ‘मैं क्यों जाऊं? दूसरे को बोलो न, मेरे से नहीं जाया जाता।’ उसने कोरा जवाब दिया तो उसने भी छोटे भाई से शक्कर लाने को कहा, तो वह दहाड़ उठा, ‘मेरे से नहीं जाया जाता दुकान पर छोटे से कहो, वह ले आएगा शक्कर। मेरे तो पैरों में दर्द है।’ उसने स्पष्ट इनकार कर दिया। इस तरह सातों आलसी मूर्ख भाई एक दूसरे से शक्कर लाने को कहते रहे मगर दुकान पर एक भी नहीं गया। तब उन्होनें फैसला किया कि सारे भाई खामोश होकर बैठ जाते हैं, जो पहले बोल पड़ा वही शक्कर लेकर आएगा।
इस तरह सारे भाई खामोश होकर बैठ गए। सामने भाप छोड़ती गरमा-गरम खीर का पतीला रखा था। काफी देर तक सभी चुप बैठे रहे। उन्हें इंतजार था कि कौन गलती से बोले तो उसे शक्कर लाने को कहें। मगर सातों के सात भाई अपनी धुन के पक्के थे। एक भी नहीं बोला, खीर ठंडी हो गई थी- रात के दो पहर गुजरने को थे। सब एक दूसरे को देख रहे थे। किससे गलती हो और उसे दुकान पर भेजा जाए।
काफी समय गुजर गया, तभी घर का दरवाजा खुला देखकर दो आवारा कुत्ते अंदर घुस आए। धीरे-धीरे सहमे-सहमे वे खीर के पतीले के पास आ गए। किसी ने भी भगाया नहीं, कुत्ते ताजा खुशबूदार खीर देखकर अपने आपको रोक नहीं पाए। बुत बने सातों भाइयों को नजर भर देखा, फिर डरते हुए मुंह खीर की पतीली में डाल दिया।
इतना सब होने के बाद भी कोई भी कुछ नहीं बोला, सभी पत्थर की मूर्तियां बने रहे। कुत्तों के हौसले बढ़ गए। जल्दी-जल्दी खीर खाने के लगे। दो कुत्ते तो खा ही रहे थे। तीन-चार आवारा कुत्ते और आ गए। सब के सब खाए जा रहे थे। आज तो मूर्खों की वजह से कुत्तों के भाग्य खुल गए थे, भला आवारा कुत्तों को खालिस दूध की खीर कहां खाने को मिलती है।
सब भाइयों के सामने उन्हीं की खीर कुत्ते खा रहे हैं, फिर भी वे खामोश हैं, कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा, कहीं दुकान पर शक्कर लेने न जाना पड़ जाए। उनके देखते ही देखते सारा पतीला खाली हो गया। कुत्तों का पेट भर गया। अब वे खिसकने लगे। उनमें से एक शरारती कुत्ता भी था। जाते-जाते मूर्ख के मुंह को चाटने लगा। वह अनुमान लगाना चाहता था कि ये सातों भाई जिंदा हैं या पत्थर के बन गए हैं। उसने जैसे ही उसका मुंह चाटना आरंभ किया तो वह बड़ी जोर से चीखा..।
ऐसा करते ही सभी कुत्ते भाग गए। बड़ा मूर्ख बोला, ‘छोटा हार गया छोटा हार गया। अब दुकान से जाकर शक्कर लाओ।’ बड़े भाई का कहना छोटे ने नहीं माना, उसके सामने खीर का पतीला पड़ा था और सभी उसे शक्कर लाने को मजबूर कर रहे थे। सातों भाइयों का विवाद सुनकर उनका बाप जाग गया। उसने जब सारी बात सुनी तो अपना सिर ही पीट लिया। आगे बढ़ा, बड़े मूर्ख बेटे को जोर से थप्पड़ मारा। बड़ा बेटा थप्पड़ खाते ही अपना गाल सहलाते हुए बाप को क्रोधित नजरों से घूरने लगा।
‘मैंने तुम्हें थप्पड़ क्यों मारा, बात समझ में आई?’ बाप ने गंभीरता भरे स्वर में पूछा।
‘मुझे क्या पता? थप्पड़ आपने मारा है- आपको पता होगा?’ बुरा सा मुंह बनाते हुए उसने जवाब दिया। ‘मैंने तुम्हें थप्पड़ इसलिए मारा क्योंकि तू सब भाइयों से बड़ा है। अगर तू आलस्य त्यागकर स्वयं शक्कर लेने चला जाता तो छोटे भाई तेरा एहसान मानते, तेरी इज्जत करते। खीर का भरा पतीला तुम्हारे पेट में होता। तुम सारे भाई बड़े प्रेम प्यार से मजे की नींद ले रहे होते। मगर तुम्हारी मूर्खता और आलस्य की वजह से तुम्हारा भोजन कुत्ते खा गए। तुम्हें मार पड़ी और तुम भाइयों में द्वेष, नफरत एवं नाराजगी के भाव पैदा हुए। ये सारा नुकसान तुम्हारा हुआ- मूर्खता और आलस्य की वजह से।’ पिता उसे समझाता रहा। बाप के समझाने से सभी को अपनी-अपनी गलतियों को एहसास हो गया और उन्होंने भविष्य में सुधरने का निश्चय कर लिया।
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