सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी धाम सरसा में आयोजित बुधवार को शाम की रूहानी मजलिस के दौरान फरमाया कि जैसा आपको पता है कि ये महीना शाह मस्ताना जी महाराज का पाक-पवित्र अवतार महीना है। साध-संगत इसे पूरी दुनिया में खुशी के साथ मनाती है। मानवता भलाई के कार्य करके, दीन-दुखियों की मदद करके हर कोई मुरीद अपने मुर्शिदे कामिल को तोहफा देता है खूनदान, शरीरदान जीते जी गुर्दा दान शायद ये दुनिया का सबसे बड़ा तोहफा है। ये बहुत बड़ी बात है। ये भगवान की कृपा है कि लोग इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ऐसे मुर्शिदे कामिल जिन्होंने सर्व धर्म संगम चलाया लोगों को दीनता नम्रता का पाठ पढ़ाया। बुराईयां छोड़कर कैसे मालिक का नाम लें? कैसे परमानंद की प्राप्ति करें। ये सारी बातें समझाई। ये सिखाया- इन्सानियत का मतलब दीन दुखियों की मदद करना है, सृष्टि की सेवा करना है, किसी के दुख दर्द में जाकर मददगार बनना है। किसी को दुखी देखकर ठहाके लगाना, किसी को दुख देना ये शैतानियत होती है। ये देखने में आता है कि आज पूरे छ: करोड़ साध-संगत इसमें बढ़चढ़कर हिस्सा लेती है। इन्सानियत के जज्बे पर चलती है। और ऐसे जज्बात जिनके अंदर हैं वाकई उनके मां-बाप धन्य हैं।
आप जी ने आगे फरमाया कि शाह मस्ताना जी महाराज का ये पाक पवित्र अवतार महीना खुशियों से मनाईए मर्यादा में रहिए। जिनके पास कपड़े नहीं हैं सर्दी के मौसम में कपड़े जरूर दीजिए। कहीं किसी को आसरा नहीं है तो आसरा खुद कीजिए या फिर गवर्नमेंट की तरफ से अगर कोइ जगह बनाई गई है तो वहां पर ले जाकर छोड़िए। तो ये कार्य जोर-शोर से करते रहिए लेकिन पूरा ध्यान भी रखना है क्योंकि ये देखने में आया कि कई जगह कम्बल दिए गए तो अगले दिन कम्बल बेच दिए पता चला कि वो नशा करते हैं तो ऐसे लोगों को कपड़ा दें, उन्हें सही आसरा दिलवाएं। ये बहुत बड़ी सेवा है- भूखे को खाना खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना। जितना आप मानवता भलाई के कार्य करते जाएंगे उतना ही खुशियों के हकदार आप बनते जाएंगे। तो सांंई मस्ताना जी दाता रहबर ने ये सच्चा सौदा सर्व धर्म संगम, इन्सानियत की सेवा का महाकुंभ चला रखा है। लगातार इसमें अपनी मेहनत नेकी भलाई की आहुति देते जाइए। जलती हुई मशाल को दुनिया तक लेकर जाईए ताकि पूरी दुनिया को ज्ञान का प्रकाश हर किसी को मिले। हर कोई सुखी रहे, परमानंद से जी सके।
मजलिस के दौरान साध-संगत ने ये प्रण किए
1. हमेशा अपनी औकात को याद रखेंगे और हमेशा सतगुरु का शुक्राना करेंगे।
2. नियमित रूप से यथा संभव सेवा-सिमरन किया करेंगे।
3. बात-बात पर नारा नहीं लगाएंगे अगर नारा लगाते हैं तो उस पर हमेशा कायम रहेंगे।