परहित सेवा

फारस देश का बादशाह नौशेरवां न्यायप्रियता के लिए विख्यात था। एक दिन वह अपने मंत्रियों के साथ भ्रमण पर निकला। उसने दखा कि एक बगीचे में एक बुजुर्ग माली अखरोट का पौधा लगा रहा है।

बादशाह माली के समीप गया और पूछा, ‘‘तुम यहां नौकर हो या यह तुम्हारा ही बगीचा है?’’

‘‘माई-बाप मैं नौकरी नहीं करता। यह बगीचा मेरे ही बाप-दादों का लगाया है।’’ बुजुर्ग माली ने बताया।
बादशाह ने पूछा, ‘‘तुम अखरोट के पेड़ लगा रहे हो। क्या तुम समझते हो कि इनके फल खाने के लिए तुम जीवित रहोगे?’’ जग जाहिर है कि अखरोट का पेड़ लगाने के बीस वर्ष बाद फलता है।
बुजुर्ग ने बादशाह को जवाब दिया, ‘‘मैं अब तक दूसरों के लगाए पेड़ों के बहुत फल खा चुका हूँ। इसलिए मुझे भी दूसरों के लिए पेड़ लगाने चाहिए। स्वयं फल खाने की आशा से ही पेड़ लगाना तो स्वार्थपरता है।’’ बादशाह उस बुजुर्ग माली का जवाब सुनकर बेहद प्रसन्न हुआ और उसे दो अशर्फियां बतौर पुरस्कार भेंट की।

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