सुकून भरा और प्रकृति के पास रहने का अनुभव दे रहा जीवंतिका
- विदेश की नौकरी छोड़ गाँव में बस गया दंपत्ति
उज्जैन। ज्यादा लोगों के आईआईटी में सलेक्शन पाना बेहद मुश्किल कार्य है। लेकिन साक्षी भाटिया और अर्पित माहेश्वरी आपसे इतर राय रखते हैं। आईआईटी टॉपर इस दंपत्ति के लिए तो मध्य प्रदेश के उज्जैन से 50 किमी. दूर बड़नगर में एक मिट्टी का घर बनाना, अब तक का सबसे चुनौती भरा और मुश्किल काम रहा है। इस दम्पति ने भारत में बसने के लिए, अमेरिका में अपनी अच्छी खासी नौकरी को छोड़ दी। इसके बाद, उन्होंने भारत में एक नेचुरल फार्म, ‘जीवंतिका’ की शुरूआत की, जो आज उनके साथ-साथ कई और लोगों को एक सुकून भरा और प्रकृति के पास रहने का अनुभव दे रहा है। साक्षी कहती हैं, ‘हम इस डेढ़ एकड़ के फार्म पर अपनी जरूरत की 85 प्रतिशत चीजें उगा रहे हैं। फिलहाल, हम दूसरे फार्म से केवल तेल ही खरीद रहे हैं, क्योंकि हमारे पास तेल निकालने की मशीन नहीं है।
साक्षी और अर्पित दोनों ने ही कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है। उन्होंने साल 2013 में शादी की, जिसके बाद वे दोनों मिलकर खूब यात्राएं किया करते थे। अर्पित कहते हैं, ‘हम दोनों ही घूमने के शौकीन हैं और हमें अलग-अलग लोगों से मिलना, उन्हें समझना, उनकी स्थानीय संस्कृति को करीब से देखना बहुत अच्छा लगता है। हमने अपने घूमने के शौक के कारण ही साल 2015 में साउथ अमेरिका की एक लम्बी ट्रिप पर जाने का फैसला किया।
यात्रा से ही मिली प्रकृति के पास रहने की प्रेरणा
उनका यह ट्रिप उनके जीवन का टर्निंग पॉइन्ट साबित हुआ। अर्पित ने बताया कि उन दोनों ने ही इस यात्रा के पहले अपने जरूरी सामान को बेचकर एक मिनिमल जीवन को अपनाने का फैसला कर लिया था। उन्होंने अपने जीवन की अब तक की कमाई को ही अपनी जमा पूंजी बना लिया। उन्होंने साउथ अमेरिका में काफी समय कुछ बच्चों को पढ़ाने और खुद भी जीवन के अलग-अलग अनुभव लेने में बिताया।
दुनिया के कई हिस्सों में घूमे
साक्षी कहती हैं, ‘दुनिया घूमते हुए ही हमने एक समय पर भारत वापस आने के बारे में सोचा और पुडुचेरी के आॅरोविल में एक इकोविलेज में समय बिताने का फैसला किया, जहां हमने सामुदायिक जीवन, कृषि जीवन और पर्यावरण के साथ जीवन बिताना सीखा। यहीं पर हमने प्राकृतिक खेती के बारे में भी सीखा।’
यही वह समय था, जब दोनों ने ऐसा ही एक सामुदाय बनाने का सपना भी देखा। लेकिन दक्षिण भारत में भाषा की दिक्कत के कारण स्थानीय लोगों से बात करना मुश्किल था, इसलिए उन्होंने तय किया कि वे मध्य भारत में रहेंगे। क्योंकि मध्यप्रदेश में रहते हुए वे दोनों अपने-अपने परिवार के करीब भी रह सकते थे। साक्षी दिल्ली में पली हैं, जबकि अर्पित राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं।
प्रोजेक्ट्स और फ्रीलान्स में कर रहे थे काम
चार साल पहले, जैविक खेती की शुरूआत करने के लिए उन्होंने उज्जैन के पास एक डेढ़ एकड़ का फार्म खरीदा। जहां उन्होंने जैविक तरीके से खेती करना शुरू कर दिया। अर्पित कहते हैं, शुरूआत में गाँव वाले हमें समझ नहीं पाते थे। हालांकि, आज भी हम गाँव वालों के लिए बाहर वाले ही हैं, लेकिन हमें उम्मीद है कि समय के साथ वह हमें अपना मानने लगेंगे। हालांकि वे, इस जगह पर कमर्शियल खेती करने नहीं आए थे। वह यहां खुद के शौक के लिए खेती कर रहे थे। ताकि वह फसलों को बेचने के बजाय खुद का उगाया भोजन करने पर ज्यादा ध्यान दे सकें। लेकिन इस दौरान अपनी पढ़ाई का फायदा उठाते हुए, वे जरूरी प्रोजेक्ट्स और फ्रीलान्स काम कर रहे थे। ताकि पैसों से जुड़ी कोई दिक्कत न हो।
अद्भुत है खेत में रहने का अनुभव
बड़े शहरों में रहते हुए आॅर्डर करके खाना, खाना और मशीनों के बीच रहना एक आम बात होती है। लेकिन खेत में रहते हुए उन्हें जीवन के सबसे अच्छे अनुभव मिले। हाँ, शुरूआत में यह सबकुछ थोड़ा मुश्किल जरूर था, लेकिन आज ये दोनों ही एक किसान का जीवन बखूबी जी रहे हैं। साक्षी कहती हैं, ‘यहाँ हमारा दिन सुबह पांच बजे शुरू हो जाता है। खेतों में काम करना फिर खुद के लिए ताजी सब्जियां तोड़कर उससे खाना बनाना, मिट्टी में हाथ गंदे करना आदि हमें अब काफी खुशी देता है। हम सबकुछ फ्रेश खाते हैं, यहां हमारे पास फ्रिज भी नहीं है, जहां खाना स्टोर कर सकें। उन्होंने अपने फार्म पर कई फलों के पेड़, मौसमी सब्जियां, दाल, चावल सहित कुछ जंगली पौधे भी लगाए हैं, जिससे ईको-सिस्टम को बैलेंस करने में मदद मिलती है।
तीन माह की मेहनत के बाद बना मिट्टी का घर
अपनी खेती के लिए वे पर्माकल्चर पद्धति से का इस्तेमाल करते हैं, जिसके लिए साक्षी ने हैदराबाद में एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में भाग लिया था। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम से ही उन्हें खेतों में अपने लिए मिट्टी का घर बनाने की प्रेरणा भी मिली। यह मिट्टी का घर उन्हें एक थकान भरे दिन में भी शांति का एहसास दिलाता है। साक्षी और अर्पित ने करीब तीन महीने की मेहनत के बाद खुद से यह मिट्टी का घर बनाया है। अर्पित कहते हैं, ‘मिट्टी का घर बनाना मेरे जीवन का सबसे कठिन काम था और सबसे अच्छा भी।’
उनके खेत में बिजली नहीं है, बावजूद इसके तपती गर्मी में भी उनका यह मिट्टी का घर बिल्कुल ठंडा रहता है। उन्होंने अपने इस फार्म को ‘जीवंतिका’ नाम दिया है। पहले, उनके फार्म पर मिट्टी के घर में रहने और खेती का अनुभव लेने के लिए सिर्फ दोस्त और रिश्तेदार ही आते थे। लेकिन पिछले एक साल से वे अपने इस मॉडल को एकदिवसीय फार्म स्टे के तर्ज पर विकसित कर रहे हैं। यहां आम आदमी आकर प्रकृति के पास रहने का अनुभव ले सकता है।
एक सुखद अहसास देता है जीवंतिका : शशांक
आईआईटी कानपूर के 21 वर्षीय स्टूडेंट शशांक कटियार ने कुछ समय जीवंतिका में गुजारा है। शशांक कहते हैं, ‘एक सस्टेनेबल जीवन का सही अर्थ मुझे यहां आकर ही पता चला। जब मैं यहां आया था, तब मुझे जीवंतिका के बारे में ज्यादा पता नहीं था। इसलिए मुझे ज्यादा उम्मीद भी नहीं थी, लेकिन मैंने यहां से जीवन के बारे में उम्मीद से कहीं ज्यादा सीखा है।’ जीवंतिका आने वाला हर इंसान अपने साथ ऐसे ही सुखद अनुभव लेकर लौटता है।
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