आए दिन साइबर ठगों द्वारा किसी न किसी शख्स को ठगने का समाचार मिल जाता है। ठगी के इन मामलों को अंजाम देने वाले अपराधी तक पहुंचना और लूटे गए पैसे को अपराधी से वसूल कर पाना दूर की कौड़ी है। इसका मुख्य कारण है आर्थिक साइबर अपराधों से निपटने का तंत्र दुरुस्त नहीं है। मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग की आबादी में गिने-चुने लोग ही ऐसे हैं, जिनके पास मोबाइल फोन नहीं है और जिनके पास हैं, उनमें से बहुत कम ऐसे लोग होंगे, जिन तक पहुंचने की कोशिश साइबर अपराधियों ने न की हो। इन्हीं में से कुछ न कुछ इन अपराधियों की चालों का शिकार हो जाते हैं। विगत करीब एक दशक में अपराधों की दुनिया में साइबर अपराधों की एक नई दुनिया खड़ी हो गई है। दुनिया की बात तो अलग, अकेले भारत में ही रोजाना हजारों लोग साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं। अपने घर में बैठे हम सबसे अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं, पर साइबर अपराधी सुरक्षा के इस आश्वासन को झुठलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
निस्संदेह मोबाइल फोन एक बहुपयोगी साधन के रूप में आज हर हाथ में है, पर इसे लेकर थोड़ी-सी भी असावधानी हमें खतरे में डाल देती है। किसी के फोन पर एक संदेश आता है या घंटी बजती है, लिखित या मौखिक संवाद शुरू होता है और फिर पता चलता है कि उसके बैंक खाते से पैसे निकल गए। ऐसी धोखाधड़ी की ऐसी घटनाएं डेस्कटाप या लैपटाप पर भी हो जाती हैं। हालत यह है कि देश-दुनिया में तेजी से बढ़ रहे साइबर अपराधों ने सबकी नींद उड़ा दी है। बैंक ग्राहकों को साइबर धोखाधड़ी से बचाने के मकसद से ही बैंकों ने ‘अपने ग्राहक को जानने’ की कवायद शुरू की थी जो केवाईसी के नाम से प्रचलित है। केवाईसी बैंकों और उनके ग्राहकों दोनों के भले के लिए है। पर साइबर ठगों ने यहां भी तोड़ निकाल लिया और केवाईसी अद्यतन करने को ठगी का जरिया बना लिया।
बैंक का प्रतिनिधि बन कर ये ठग लोगों को फोन कर बताते हैं कि केवाईसी अद्यतन नहीं होने के कारण उनका खाता अथवा कार्ड बंद होने जा रहा है, ग्राहक की मन:स्थिति को भांपते हुए ये खाते अथवा कार्ड का ब्योरा लेकर उसका पैसा उड़ा लेते हैं। अब तो फेसबुक के जरिए भी आर्थिक साइबर धोखाधड़ी जोरों पर है। यहां प्रोफाइल चुन कर लोगों को दोस्ती या शादी के प्रस्ताव भेजे जाते हैं। साइबर अपराधों के तेजी से बढ़ते ग्राफ को देखते हुए साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की मांग लगातार बढ़ रही है। प्राइस वाटर हाउस कूपर्स के 2022 के लिए डिजिटल ट्रस्ट इनसाइट सर्वेक्षण में शामिल 82 प्रतिशत कंपनियों ने अगले वर्ष साइबर सुरक्षा पर अधिक धन खर्च करने की बात कही है।
ये सब अच्छे संकेत हैं, पर इन सबके साथ आम आदमी के लिए साइबर सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की बहुत जरूरत है। हमारे पुलिस बल का बहुत छोटा हिस्सा ही साइबर अपराधों से निपटने के लिए सक्षम है। साइबर ठगी की रिपोर्ट कराने जाने पर शिकायत दर्ज करने की बजाय पीड़ित व्यक्ति को अक्सर बैंक, कार्ड कंपनी आदि से संपर्क करने की सलाह दी जाती है। गिने-चुने मामलों में ही लुटे हुए धन को पुलिस की तत्परता से वापस पाया जा सका है। जाहिर है, साइबर ठगी से खुद को बचाना जिम्मेदारी हमारी ही है। हमें ही सजग और चौकन्ने रहना है।
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