कुछ सीटों को छोड़कर चुनाव करीब-करीब पूरा हो चुका है। चुनावों से पहले नेताओं में ईवीएम मशीन के हैक हो जाने को लेकर तकरार रही है। आए दिन कोई न कोई पार्टी नेता यह दावा करते व उसमें विफल होते रहे हैं कि ईवीएम हैक कर किसी पार्टी या उम्मीदवार को मनचाहे वोट दिये जा सकते हैं, अब चुनाव लगभग संपन्न हो चुके हैं तब ईवीएम बदले जाने का शोर होने लगा है। डुमारियागंज लोकसभा क्षेत्र में स्ट्रांग रूम के बाहर लोगों ने ईवीएम से भरी दो गाड़ी पकड़े जाने का दावा किया। बसपा ने आरोप भी लगाया कि ईवीएम को बदले जाने के प्रयास हो रहे हैं। इधर हरियाणा में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष ने अपने समर्थकों को आह्वान किया है कि उन्हें अब किसी गाड़ी में ईवीएम मिलती है तो उन्हें आग लगा दी जाए। देश में करीब 70 वर्ष से चुनाव हो रहे हैं।
पहले धनबल व बाहुबल हावी रहा, फिर भ्रष्टाचार एवं सरकारी मशीनरी के प्रयोग से चुनाव को प्रभावित किया जाने लगा। इससे भी बढ़कर यह भी होने लगा कि जीत-हार के बाद सांसदों-विधायकों को खरीदा जाने लगा। रातों-रात सरकारों में बहुमत बदला जाने लगा। चुनाव आयोग ने समय-समय पर ऐसे बदलाव भी किए हैं कि लोकतंत्र मजबूत रहे, सुरक्षित रहे। मतदाताओं की खरीद-फरोख्त, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकने, दलबदल कानून लागू करवा जनप्रतिनिधियों की खरीद फरोख्त भी नियंत्रित की गई है। कम खर्च में शीघ्र पारदर्शी चुनावों के लिए सूचना तकनीक का सहारा लिया गया, बेल्ट पेपर्स की जगह ईवीएम मशीनें लगाई गई। परन्तु इन मशीनों पर भी विवाद बना हुआ है।
कभी कहा जाता है कि यह हैक हो जाती हैं, कभी कुछ-कभी कुछ। अब तो हद ही हो गई है। चुनाव होने के बाद ईवीएम मशीनें बदले जा सकने का भी डर खड़ा हो गया है जोकि वाजिब भी है। चुनाव आयोग के पास पूरा सरकारी तंत्र है। अत: आयोग का कर्तव्य है कि वह देशावासियों के भरोसे को सुरक्षित करे एवं इस बात को स्पष्ट भी करे कि यहां पर से मशीने बदले जाने की कोशिशें हुई या खबरें आई, चुनाव आयोग ने वहां क्या एक्शन लिया है। भारत जैसे विशाल आबादी देश में चुनाव करवाना निश्चय ही बहुत बड़ी चुनौती है परन्तु यहां का तंत्र भी बेहद मजबूत व चुस्त हो चुका है, फिर भी कई दफा तंत्र के अपने लोग ही देश की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश करते हैं। यदि भ्रष्ट लोगों की जरा सी भी कोशिश सफल हो जाती है तब यह अगले पांच साल के लिए एक भ्रष्ट सरकार देश के कंधों पर लाद सकती है।
चूंकि लोकतंत्र में ग्राम से लेकर संसद तक एक-एक वोट का बहुत ज्यादा महत्व है, 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज एक वोट से गिर गई थी इतना ही नहीं राजस्थान में कांग्रेस के एक नेता सीपी जोशी महज एक वोट से हार गए थे जिसके बाद यह माना गया कि महज एक वोट से वह अपना मुख्यमंत्री का पद या दावा खो बैठे। इतना ही नहीं झारखंड में मधु कोडा व एनस ईक्का ऐसे मुख्यमंत्री बने है जो निर्दलीय थे। अत: डुमरियागंज की घटना या अशोक तंवर की चिंता महज एक राजनीतिक ब्यान या दावा नहीं माना जाना चाहिए। ये देश की अगली संसद का आकार व सरकार तय करने वाली बाते हैं। अत: सुरक्षित ईवीएम ही अगली सरकार है।
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