इंग्लैंड व अमेरिका में भारत विरोधी ताकतें एक बार फिर सिर उठाती नजर आ रही हैं। ताजा दो घटनाओं में इन संगठनों के साथ जुड़े वर्करों के हौसले बढ़े हुए नजर आ रहे हैं। लंदन में कांग्रेस के राष्टÑीय अध्यक्ष राहुल गांधी की रैली से कुछ पहले खालिस्तानी वर्करों ने नारेबाजी की। इसी तरह अमेरिका में दिल्ली के एक नेता पर पिछले कुछ दिनों में दो बार हमले हुए हैं। इंग्लैंड में विगत दिनों अलगाववादियों का एक समारोह भी ंआयोजित किया गया। भले ही इंग्लैंड सरकार ने अपने आप को इस समारोह से अलग कर लिया परंतु सरकार ने न तो उस समारोह का समर्थन किया व न ही विरोध। हालांकि भारत सरकार द्वारा ऐसी सरगर्मियों के खिलाफ दर्ज अपनी आपत्ति दर्ज करवाई गई। 1980 के दशक में अमेरिका व इंग्लैंड में भारत विरोधी अलगाववादी ताकतों की सरगर्मियां शिखर पर थी, जिसका खामियाजा पंजाब सहित भारत के कई राज्यों को भुगतना पड़ा था। पंजाब के लोगों ने अमन-चैन, भाईचारे की देश विरोधी ताकतों की कोशिशों को नाकाम कर दिया था। पंजाब के अधिकारों की बात अगर उठती है तब वह संविधान के तहत ही की जाती है। पंजाबी अमन-चैन चाहते हैं। फिर भी बाहर के देशों में बस रहे लोगों की अगर कोई मांग है या विचारधारा है तब वह करोड़ों पंजाबियों पर नहीं थोप सकते। हिंसा किसी भी मसले का हल नहीं व खासकर पंजाबी हिंसा से बुरी तरह से परेशान हो चुके हैं। हिंसा ने पंजाब का बेहद आर्थिक, सामाजिक नुक्सान किया है। हिंसा किसी भी विचारधारा में स्वीकार्य नहीं। पंजाबियों की बात पंजाब में रहने वाले लोग ज्यादा महसूस कर सकते हैं। पंजाब को अगर इस समय जरूरत है तो वह है आधुनिक तकनीक, रोजगार व नशा मुक्त समाज की। पंजाबियों का संकल्प धर्माें की संकीर्णताओं से ऊपर है। पंजाबियों की बेहतरी के बारे में पंजाब में रह रहे पंजाबियों से ज्यादा कोई सोच नहीं सकता। पंजाब तरक्की के मामले में अन्य राज्यों से बहुत आगे है। अब जरूरत है इस तरक्की की रफ्तार को बढ़ाने के लिए और अधिक मेहनत करने की, खून खराबा तरक्की में रूकावट है।
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