राजनीतिक भ्रष्टाचार पर शिकंजा

political corruption

भ्रष्टाचार की जड़ें राजनीति में ही फलती-फूलती है। हर साल राजनेताओं की बढ़ रही जायदाद इसी बात का संकेत है कि व्यापार में मंदी के बावजूद नेता धनकुबेर बन रहे हैं। ताजा मामला तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की वर्षों सहेली रहीं शशिकला का है, जिसकी 1600 करोड़ की बेनामी जायदाद आयकर विभाग ने जब्त की है। आरोप इस कारण भी संगीन हैं कि नोटबन्दी के बाद 1500 करोड़ की जायदाद पुराने नोटों के साथ खरीदी गई। गुनाहगार केवल शशिकला ही नहीं बल्कि पूरी राजनीतिक व्यवस्था है, जिसकी बदौलत राजनीतिक पहुँच वाली एक महिला कानून की धज्जियां उड़ाकर गैर-कानूनी तरीके से जायदाद खरीदती रही।

भले ही नोटबन्दी के परिणाम जो भी हों, लेकिन आमजन का जज्बा काबिले-तारीफ था, जिन्होंने समस्याओं से जूझकर सारा दिन बैंकों व एटीएम के बाहर खड़े होकर सरकार का सहयोग किया था। इसे संवेदनहीनता ही कहा जाए कि एक तरफ लोग परेशान होकर नोटबंदी के चलते लाइनों में खड़े रहे और किसी एक भी बैंक कर्मी के साथ दुव्यर्वहार की कोई बड़ी घटना नहीं घटी और दूसरी तरफ शशिकला जैसी राजनीतिक नेता गैर-कानूनी काम में जुटी रही।

यह भी देखने वाली बात है कि आखिर तीन साल तक शशिकला का काला धंधा कैसे कानून की नजर से बचा रहा। देर आयद-दरुस्त आयद की तरह भ्रष्ट नेताओं की जायदाद जब्त होना अच्छी बात है, लेकिन इसे अभी शुरूआत ही समझा जाना चाहिए। कानून की नजर से दूर अभी कितने भ्रष्ट धन लोलुप बैठे हैं? इसका भी समय आने पर ही पता चल पाएगा। भले ही शशिकला के समर्थक इस कानूनी कार्रवाई को किसी भी बहाने बुरा भला कहें लेकिन इतने बड़े स्तर पर जायदाद की खरीद पर संदेह पैदा होना स्वाभाविक है।

केंद्र व राज्य सरकारें यदि पूरी निष्पक्षता व वचनबद्धता से भ्रष्ट नेताओं पर शिकंजा कसें तब भारत को सोने की चिड़िया बनने से कोई नहीं रोक सकता। भ्रष्टाचार हमारा सबसे बड़ा शत्रु है जिसकी रोकथाम देश की उन्नति व खुशहाली का रास्ता खोलेगी, केवल आवश्यकता इसी बात की है कि कानून, कानून की तरह लागू हो। कानून के भय से जहां बड़ी मछलियां फंसती है तब छोटे-मोटे जीव अपने आप सीधे चलते हैं।

 

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