Aloo Ki Kheti: आलू भारत में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। यह न केवल हमारे भोजन का प्रमुख हिस्सा है, बल्कि किसानों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत भी है। हालांकि, अधिक उपज प्राप्त करना केवल किस्मत पर निर्भर नहीं करता, बल्कि इसके लिए वैज्ञानिक विधियों और स्मार्ट प्रबंधन की आवश्यकता होती है। यदि आप भी आलू की खेती से अधिक उत्पादन और मुनाफा प्राप्त करना चाहते हैं, तो यहां बताए गए 7 वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर आप अपनी फसल को और अधिक सफल बना सकते हैं।
मिट्टी व जलवायु: आलू की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जल निकासी की अच्छी व्यवस्था फसल के विकास के लिए जरूरी है। 18-20 डिग्री सेल्सियस का तापमान कंदों के विकास के लिए सबसे उपयुक्त है। Aloo Ki Kheti
रोगमुक्त बीजों का उपयोग: आलू की खेती की सफलता का पहला कदम है उच्च गुणवत्ता वाले और प्रमाणित बीजों का उपयोग। रोगमुक्त बीज न केवल बेहतर उपज देते हैं, बल्कि बीमारी फैलने की संभावना को भी कम करते हैं। एक हेक्टेयर में लगभग 20-25 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को बोने से पहले 2% बाविस्टिन घोल में 10 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें।
समय पर बुवाई करें: आलू की खेती में बुवाई का सही समय पैदावार को काफी हद तक प्रभावित करता है। उत्तर भारत में आलू की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर तक की जाती है। बीजों को 6-8 सेमी गहराई पर और 20-25 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए। कतारों के बीच 60 सेमी की दूरी रखें।
उर्वरक प्रबंधन: संतुलित उर्वरक का उपयोग आलू की फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फॉस्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करें। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद और हरी खाद का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक है। उर्वरक का उपयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें। Aloo Ki Kheti
सिंचाई और जल प्रबंधन: आलू की फसल के लिए जल प्रबंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फसल की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें। बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई आवश्यक है। जलभराव से बचने के लिए उचित जल निकासी प्रणाली सुनिश्चित करें। Aloo Ki Kheti
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