दिल्ली में प्रदूषण बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। ठंड की दस्तक के साथ ही वायु प्रदूषण ने अपना कहर ढहाना शुरू कर दिया। वायु प्रदूषण अधिक बढ़ने से लोगों की सांसे थमने लगी हैं। यह मसला साल-दर-साल का है, लेकिन दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए किसी ठोस नीति पर अमल नहीं हुआ। सुप्रीमकोर्ट अक्सर वायु प्रदूषण को लेकर तल्ख और गंभीर टिप्पणी करती है, लेकिन बात जहां की तहां रह जाती है। दिल्ली दुनिया के 10 प्रदूषित शहरों में सबसे अधिक प्रदूषित है। मुंबई और कोलकाता भी इसमें शुमार है। लेकिन दिल्ली जैसे हालात देश के अन्य शहरों के नहीं हैं। प्रदूषण की लड़ाई को राजनीतिक रंग दे दिया गया है। दिल्ली में यमुना की गंदगी, पराली और वायु प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे भी राजनीति के शिकार हैं, जिसकी वजह से कोई ठोसनीति नहीं बन पा रहीं है।
केंद्र और न ही राज्य सरकारों के पास प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ठोस नीति बनानी होगी। वायु प्रदूषण में पराली की सहभागिता तो 35 फीसदी तक पहुंच गई है। पराली जलाने के हर दिन कई मामले दर्ज किए जा रहे हैं। दिल्ली में प्रदूषण का मामला पंजाब, हरियाणा और दिल्ली सरकारों के बीच राजनीति का मुद्दा बन गया है। पंजाब में सामने चुनाव है इस हालात में सरकार किसानों पर कड़े कदम नहीं उठा सकती है। कोई भी सरकार किसानों को नाराज कर जोखिम नहीं लेना चाहती है। वायु प्रदूषण पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के मुताबित दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली का हिस्सा सिर्फ पांच फीसदी है। इसके बावजूद राजधानी में कोहरा छाया हुआ है।
दिल्ली की आबोहवा दमघोंटू हो चुकी है। सांस लेना भी मुश्किल हो चला है। कुछ साल पूर्व एक सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया था कि प्रदूषण की वजह से 40 फीसदी लोग दिल्ली में रहना नहीं चाहते। जहरीली होती दिल्ली सेहत के लिए बड़ा खतरा बन गई है। धुएं का मेल जनमानस को निगल जाएगा। प्रदूषण को हमने कभी गम्भीरता से नहीं लिया। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त फैसले लेने होंगे। तभी इसका समाधान निकलेगा। हमें नये विकल्प की तलाश करनी होगी। वाहनों में डीजल पेट्रोल की खपत कम करनी होगी। डीजल-पेट्रोल का वैकल्पिक उपाय निकालना होगा। जिसकी वजह से कार्बन उत्सर्जन कम होगा।
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