सऊदी अरब की मासूम को मिला नया जीवन

liver transplant

गुरुग्राम में लीवर किया ट्रांसप्लांट, सांड की बोवाइन जग्युलर नस का किया इस्तेमाल (liver transplant)

  • दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त थी फातिमा

संजय मेहरा/सच कहूँ गुरुग्राम। विश्व में पहली बार लीवर ट्रांसप्लांट में सांड (बुल) बोवाइन जग्युलर नस का प्रयोग किया गया है। खास बात यह है कि यह अनोखी सर्जरी मात्र एक साल की बच्ची की हुई है। वह सऊदी अरब की रहने वाली है। गुरुग्राम में हुई अपने आप में विशेष तरह की यह सर्जरी चिकित्सा जगत के लिए बड़ी उपलब्धि है। यह सर्जरी 14 घंटे चली, तब जाकर चिकित्सकों को सफलता मिली।

बता दें कि सऊदी अरब के साराह और अहमद की तीसरी संतान एक साल (liver transplant) की बच्ची फातिमा (बदला हुआ नाम) जन्म के तीसरे महीने बाद से ही असामान्य रूप से लम्बे समय के लिए गंभीर जोंडिस की बीमारी से पीड़ित थी। सऊदी अरब के डॉक्टर्स ने फातिमा को बिलियरी एट्रेसिया नामक एक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित पाया, जो कि हर 16000 में से एक नवजात शिशु में होती है। ऐसे बच्चों का समग्र विकास विकास नहीं हो पाता।

  • फातिमा की भारत आने से पहले सऊदी अरब के एक अस्पताल में बिलियरी बाईपास सर्जरी की गई थी।
  • बिलियरी बाईपास सर्जरी की असफलता के कारण सऊदी अरब के डॉक्टर्स ने फातिमा के लिए लिवर ट्रांसप्लांटेशन की राय दी थीा।
  • लेकिन उसकी कमजोर शारीरिक स्थिति और 5.2 किलोग्राम के वजन को देखकर वहां के चिकित्सकों ने रिस्क नहीं लिया।
  • उसे उपचार के लिए भारत आने की सलाह दी।

सांड (बुल) की लगाई गई नस

गुरुग्राम में हुए इस लिवर ट्रांसप्लांट के लिए विश्व में पहली बार बोवाइन जग्युलर नस (पाशविक नस) का प्रयोग हुआ है, क्योंकि बच्ची बाइल डक्ट्स के बिना पैदा हुई थी। उसके पोटल नस अविकसित थे। यह नस नए लिवर में रक्त पहुंचाने का काम करती है। सांड (बुल) की बोवाइन जग्युलर नस (वेन) बच्ची को लगाई गई है।

बच्ची की माँ द्वारा डोनेट लीवर था बड़ा

यहां के आर्टेमिस अस्पताल में बच्ची को लाया गया। लीवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. गिरिराज बोरा के मुताबिक छह किलो से कम वजन के बच्चों में ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया बेहद जटिल होती है। इस सर्जरी के लिए बच्ची की माँ द्वारा डोनेट किया गया बायां लेटरल लोब भी बच्चे की तुलना में काफी बड़े आकार का था। दूसरी बड़ी चुनौती नए लिवर में रक्त प्रवाहित करना बच्ची के शरीर में पोर्टल वेन (लिवर में रक्त संचार के लिए मुख्य नस) नहीं थी।फातिका की मोनोसेगमेंट (सेगमेंट 3) लिवर ग्राफ्ट ट्रांसप्लांट नामक एक 14 घंटे की लंबी असाधारण सर्जरी की।फातिमा का एक अत्यंत दुर्लभ लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट (मोनोसेगमेंट) किया गया। जहां लीवर के आठ में से केवल एक भाग का उपयोग कर बच्ची को नया लीवर प्रदान किया गया।

  • बच्ची के परिजनों के मुताबिक सऊदी अरब में डॉक्टरों द्वारा सर्जरी के मना किये जाने के बाद तो हमने सारी उम्मीदें छोड़ दी थी।
  • हम खुशकिस्मत थे कि हमें उस मुश्किल वक्त में भारत में होने वाली लीवर ट्रांसप्लांटेशन के बारे में पता चल पाया।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।