सन्तों के सत्संग में एक अनोखा खिंचाव होता है। जो जीव को अपनी तरफ प्रभावित करता है। सन्तों के बोल-चाल इशारों, दिल, दिमाग व उनके व्यक्तित्व के असर से सत्संग का सारे का सारा वातावरण भरपूर हो जाता है जो कि सब सुनने वालों के ऊपर अमिट प्रभाव डालता है। सन्तों के आध्यात्मिक सत्संग में से आध्यात्मिक शक्ति व ताज़गी को पाकर जीव धीरे-धीरे अपने दुर्गुणों का त्याग करता हुआ एक दिन नेक व पवित्र इन्सान बन जाता है। सत्संग में से दैवी गुणों को धारण करके वह देवता, महात्मा व मालिक की पदवी पर पहुँच जाता है। यह सन्तों के सत्संग की महिमा है जो कि आम जीव को कतरे से समुद्र व राई से पर्वत बना देता है। अर्थात् मालिक का ही रूप बना देता है।
सचखण्ड दा सन्देशा भाग-2 के एक शब्द द्वारा सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए बताया गया है कि सत्संग में आने व सन्त-महात्माओं के वचनों को मानने से जीव सदा की खुशी व आनन्द को प्राप्त होता है। सत्संग के सरोवर में स्नान करने से जन्म-जन्म के पाप उतर जाते हैं और मन निर्मल हो जाता है। सन्तों का सत्संग दुनिया की क्रोधाग्नि (जलती भट्ठी) में जल रहे जीवों का आधार है और उन्हें ठण्डक व शान्ति दायक असर प्रदान करता है। प्रभु के मिलने के लिए सन्तों का सत्संग ही सबसे बड़ा साधन है। चोर, ठग, राक्षस आदि जो भी सत्संग का सहारा लेते हैं सत्संग सबको भवसागर से पार कर देता है। जीव अपना बुरा तथा भ्रष्ट जीवन त्याग कर नेक व पवित्र जीवन गुजारने लग जाते हैं, क्योंकि सत्संग हर जीव को अपना असर प्रदान करता है।
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