‘‘पूर्ण सतगुरू अपने मुरीदों का साथ कभी नहीं छोड़ता’’

यह बात 18 जुलाई 1970 की है। उस समय मेरा परिवार गांव किला निहाल सिंह वाली(बठिंडा) में रहता था। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज वहां सत्संग फरमाने आए हुए थे। सत्संग का कार्यक्रम हमारे घर में ही था। कविराज भाई भजन बोल रहे थे। अचानक मेरे घर से रोने-चीखने की आवाजें आने लगी। अंदर जाकर देखा तो मेरे पांच वर्षीय भतीजे को दिल का दौरा पड़ा हुआ था और उसकी हालत चिंताजनक हो गई। देखते ही देखते उसने तड़पते हुुए अपने प्राण त्याग दिए। परिवारजन और साध-संगत की खुशियां गम में तबदील हो गई थी। मैं हौसला करके उठा और पूजनीय परम पिता जी के रात्रि विश्राम स्थल की ओर भागा। वहां पहुंचकर मैंने सच्चे रहबर की हजूरी में सारी दुखद घटना का वर्णन किया। पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा, हिम्मत रख। वह लड़का तो सत्संग सुनेगा।’’

पूजनीय परम पिता जी सत्संग पंडाल में साध-संगत को दर्शन देकर उस तरफ निकले जहां सेवादार बचन सिंह उस लड़के को गोद में लेकर बैठा था। सारी साध-संगत भी बच्चे के लिए अरदास कर रही थी। पूजनीय परम पिता जी उस बच्चे के पास जाकर रूके और अपनी पावन दृष्टि बच्चे पर डाली। उसी समय बच्चे के शरीर में हरकत सी हुई और देखते ही देखते बच्चे ने आंखें खोल ली और बेजान शरीर में प्राणों का संचार शुरू हो गया। वह अपने हाथ पांव हिलाने लगा। अपनी कृपा दृष्टि डालने के बाद पूजनीय परम पिता जी स्टेज पर विराजमान हो गए। थोड़ी ही देर में बच्चा इस प्रकार उठकर बैठ गया जैसे कि सो कर उठा हो। पूजनीय परम पिता जी की यह प्रत्यक्ष रहमत देखकर सारी साध-संगत ने खुशी मनाई। सारी साध-संगत अपने सतगुरू को धन्य-धन्य कह उठी। पूजनीय परम पिता जी के वचनानुसार फिर उस बच्चे ने पंडाल में बैठकर सत्संग सुना।

                                                                     -श्री साधु सिंह, 4 बीएलडी, श्री गंगानगर (राजस्थान)

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।