प्रेमी कंवलजीत सिंह इन्सां सुपुत्र श्री कुलजीत सिंह इन्सां निवासी बंबीहा भाई ब्लॉक मल्ल के तहसील बाघा पुराना जिला मोगा और वर्तमान में जो कुवैत देश के जलीन नामक शहर/राज्य में रहता है। प्रेमी कंवलजीत लिखता है कि यह सन् 1992 की बात है। एक दिन मुझे स्कूल में अचानक बुखार हो गया। मैं स्कूल से छुट्टी लेकर घर आ गया। उस समय भी मेरा शरीर तेज बुखार से बुरी तरह तप रहा था। मेरे पापा जी मुझे एक डॉक्टर के पास ले गए। उन्होंने बुखार आदि चैक करके मुझे एक इंजेक्शन और कुछ थोड़ी-बहुत दवाई देकर कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है, लड़का जल्दी ठीक हो जाएगा। उस दिन रात को मुझे सोए हुए बहुत ही डरावना सपना आया। सपने में मुझे दो आदमी दिखाई दिए। वह दोनों मरे पड़े थे। वह दोनों वही व्यक्ति थे, जो कुछ साल पहले हमारे स्कूल के नजदीक हुई आपसी लड़ाई में मारे गए थे।
सपना देखकर मैं बहुत ही घबरा गया और मुझे बहुत ही डर लगा। उसी घबराहट में मैं उठकर बैठ गया। अगले दिन पड़ोसन चाची हमारे घर आई और मेरे मम्मी-पापा को कहने लगी कि तुम्हारे कंवलजीत को तो ‘ओपरी हवा’ (भूत-प्रेत का साया) है। उसकी यह बात सुनकर वे भी बहुत ही घबरा गए। वह मुझे वहीं नजदीक के एक गांव में एक स्याने(ओझा) के पास ले गए। चेले ने आगे हमें और भी ज्यादा फ्रिक में डाल दिया। उसने बताया तुम्हारे लड़के को दो भूत चिंबड़े हैं। उसकी यह बात सुनकर मेरे मम्मी-पापा दोनों के होश उड़ गए। मेरी मां ने कहा, बाबा, फिर इह मुंडे दा खैहिड़ा किवें छड्डणगे? बाबा ने कहा, सब भगा देगें। आप फिक्र न करो। आपको एक काला मुर्गा और एक बोतल शराब किसी नहर या चलते नाले के पास रखना होगा। उस समय हमें नाम-दान नहीं मिला था। मेरे पापा जी शराब की एक बोतल और एक काला मुर्गा मोल लेकर चेलों के द्वारा बताई गई जगह पर रख आए। परंतु ऐसा करने से भी मेरी उस बीमारी में जरा भी फर्क नजर नहीं आया।
कुछ दिनों बाद जैसे ही मेरी दादी को पता चला तो वह भटिंडा से हमारे घर आई। उसने पूछा कि कंवलजीत, क्या हो गया है तेरे को? मैंने कहा दादी, मुझे नहीं पता कि मुझे क्या हो गया है, पर रात को मुझे भयानक सपने बहुत ही आते हैं, बार-बार वही दो आदमी दिखाई देते हैं। वह मुझे कहते हैं कि चल हम तुझे लेने आए हैं! और मुझे बहुत ही डर लगता है। मेरी दादी जी ने कहा कि तु चल मेरे साथ भठिंडे, वहां नजदीक के गांव कोटशमीर में एक स्याना है, वह भूत-प्रेत निकालने का माहिर है, उसके पास तेरे को लेकर चलेंगे। अगले दिन मेरे पापा जी मुझे दादी के साथ भठिंडा से कोटशमीर में उस बाबा के पास ले गए। उसने अपना जंत्र-मंत्र किया और पांच पुड़ियां राख की बनाकर दे दी और कहा कि घबराओ ना, लड़का ठीक हो जाएगा। परंतु उस बाबा के जंत्र-मंत्र और उन पुड़ियों से भी मेरी बीमारी में कोई सुधार नहीं हुआ। मेरे दादा जी डेरा सच्चा सौदा के प्रेमी थे। अगले दिन भठिंडा में साध-संगत की नामचर्चा थी। वह हर नामचर्चा में जाया करते थे।
वह मुझे भी अपने साथ ले गए। साध-संगत में बैठकर और नामचर्चा में शब्दवाणी सुनकर मुझे बहुत ही आनंद आया। मुझे विश्वास हो गया कि डेरा सच्चा सौदा वाले बाबा जी सच्चे सतगुरू हैं। अगले दिन मैं अपने गांव वापिस आ गया। रात को मुझे पूरे चैन की नींद आ गई और सपने में पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के रूप में दर्शन दिए। बिल्कुल सफेद लिबास, ऊंचा-लम्बा कद, बहुत ही सुंदर मनमोहना स्वरूप, हाथ में लम्बी शाही सुंदर सोटी। पूज्य पिता ने यह कहकर यमदूतों से मुझे छुड़ा लिया कि ‘यह तो हमारी रूह है।’ सतगुरू, दाता-प्यारे की सुंदर नूरी झलक देखकर मैं फूला नहीं समा रहा था और वह सुंदर-मनमोहक दृश्य मेरी आंखों में सुरमें की तरह बस गया।
अगले दिन मैंने अपने मम्मी-पापा को कहा मैं तो सरसा दरबार में सत्संग में जाना है और गुरू जी से नाम-शब्द भी लेकर आऊंगा। जब सत्संग का दिन आया, मैं गांव के उस समय के भंंगीदास के साथ दरबार में सत्संग पर पहुंच गया। सत्संग सुना और पूज्य गुरू जी से नाम-शब्द प्राप्त किया। उस दिन पूज्य पिता जी ने लगभग पूरा सत्संग मुझ पर ही किया। भूत-प्रेतों पाखंडों के बारे में पूज्य गुरू जी ने ठोस उदाहरणों सहित विस्तार से सत्संग किया। पूज्य पिता जी ने अपनी रहमत से मेरी आंखों व दिमाग पर पड़े भूत-प्रेतों व पाखंडों के बारे में वहम-भ्रमों के सारे पर्दे ही उठा दिए। नाम-शब्द लेने के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे शरीर में भार ही न हो, हौला फूल की तरह मैं हो गया।
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