प्रेम हरी राम सरसा से लिखते हैं कि सन् 1987 में एक दिन उसकी पत्नी ने सुबह-सुबह घर में चाय बनाई तो बच्चों ने चाय मांगी। अचानक वह कहने लगी, ‘‘यह चाय तो मैंने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के लिए बनाई है, आपको और बनाकर देती हूं।’’ बच्चों ने हैरान होते हुए पूछा, ‘‘पिता जी के आने का कोई प्रोग्राम ही नहीं तो चाय कैसे पिलाओगे?’’ लेकिन उसके मन में तड़प थी। वह दृढ़ता के साथ कहने लगी, ‘‘यह चाय तो मैंने परम पिता जी के लिए ही बनाई है। ‘‘इतने में गली में पूजनीय परम पिता जी के आने की खुशी का शोर सुनाई देने लगा। बाहर जाकर देखा तो टायर वाले की दुकान पर पूजनीय परम पिता जी गाड़ी के टायरों में हवा चैक करवाने के लिए रूके हुए थे। पूजनीय परम पिता जी मलोट सत्संग करने के लिए जा रहे थे। वे भी भागकर पूजनीय परम पिता जी के दर्शन करने के लिए चले गए। उसकी पत्नी ने उस समय जाकर पूजनीय परम पिता जी के सामने अर्ज की, पिता जी हमारे घर चाय पीकर जाओ जी। पूजनीय परम पिताजी ने उसकी विनती स्वीकार की व घर आकर चाय पी। इस प्रकार पूजनीय परम पिता जी ने श्रद्धालु के दिल की इच्छा को पूरा किया।
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