व्यंग्य: वक्त की हेराफेरी

Sarcasm Time's rigging
6 नवंबर 1913 को महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और दमनकारियों नीतियों के खिलाफ विरोध जारी रखते हुए, ‘द ग्रेट मार्च’ का नेतृत्व किया। इस दौरान 2,000 भारतीय खदान कर्मियों ने न्यूकासल से नेटाल तक की पदयात्रा की। महात्मा गांधी को उनके समर्थकों के साथ गिरफ्तार किया गया था। 1906 में ट्रांसवैल सरकार ने दक्षिण अफ्रीका की भारतीय जनता के पंजीकरण के लिए विशेष रूप से अपमानजनक अध्यादेश जारी किया। भारतीयों ने सितंबर 1906 में जोहानिसबर्ग में महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक जनसभा का आयोजन किया और इस अध्यादेश के उल्लंघन और सजा के तौर पर दंड भुगतने की शपथ ली।
इस प्रकार सत्याग्रह का जन्म हुआ, जो पलटवार के बजाए अहिंसक ढंग से उसका मुकाबला करने की नई शैली थी। दक्षिण अफ्रीका में सात साल से अधिक समय तक संघर्ष चला। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहे, लेकिन गांधी के नेतृत्व में भारतीय अल्पसंख्यकों के छोटे से समुदाय ने अपने शक्तिशाली विरोधियों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। सैकड़ों भारतीयों ने अपनी अन्तरात्मा और स्वाभिमान को चोट पहुंचाने वाले कानून के सामने झुकने के बजाए अपने रोजगार और स्वतंत्रता को बलि चढ़ाना ज्यादा पसंद किया। 1913 में आंदोलन के आखिरी चरण में महिलाओं समेत सैकड़ों भारतीयों ने जेल की सजा भुगती और खदानों में काम बंद करके हड़ताल कर रहे हजारों भारतीय मजदूरों ने कोड़ों की मार, जेल की सजा और यहां तक की गोली मारने के आदेश का भी साहस के साथ सामना किया।
भारतीयों के लिए यह घोर यातना थी। लेकिन दक्षिण अफ्रीका की अंग्रेज सरकार की इससे खासी बदनामी हुई। उसने भारतीय सरकार और ब्रिटिश सरकार के दबाव के तहत एक समझौते को स्वीकार किया। इस पर एक ओर से गांधी और दूसरी ओर से दक्षिण अफ्रीकी सरकार के प्रतिनिधि जनरल जॉन क्रिश्चियन स्मेट्स ने बातचीत की थी। आखिरकार समझौता हुआ और भारतीय राहत विधेयक पास हुआ।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।