ममता ने गलत परिपाटी के बीज बो दिये

Saradha Chit Fund scam of West Bengal

पश्चिम बंगाल के चर्चित सारदा चिट फंड घोटाले की जांच को लेकर दो दिन चली सियासी खींचतान पर सर्वोच्च न्यायालय ने जो व्यवस्था दी उसे दोनों पक्ष अपनी-अपनी नैतिक विजय मानकर फूले नहीं समा रहे हैं। कोलकाता के जिन पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को लेकर सारा बवाल मचा उन्हें गिरफ्तारी से राहत दे दी गई और सीबीआई को उनसे पूछताछ की छूट। बीते रविवार को सीबीआई के लोगों के साथ कोलकाता पुलिस द्वारा किये गए सुलूक के विरुद्ध दायर अवमानना प्रकरण में सुनवाई की तारीख दे दी गई। राजीव कुमार द्वारा घोटाले के प्रमाण नष्ट किये जाने को लेकर सीबीआई द्वारा लगाये गए आरोप पर भी सुनवाई होगी लेकिन कुछ दिनों बाद। इस पूरे प्रकरण में जो कुछ भी हुआ उसने भारत के संघीय ढांचे को भारी चोट पहुंचाने का काम किया है।

सवाल दर सवाल यह है कि आखिर पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकतार्ओं ने जो तांडव किया वो सब क्या था? क्या एक कमिश्नर के बचाव में इस हद तक जाया जा सकता है? या पुलिस अधिकारी की कीमत देश की अखंडता से भी ज्यादा है? राजीव कुमार पहले आरोपी हैं और बाद में पुलिस कमिश्नर हैं। दरअसल ममता बनर्जी की यही राजनीतिक रणनीति रही है। ऐसे ही प्रदर्शन कर, धरने देकर या सड़कों पर लेटकर उन्होंने वाममोर्चे के 34 साला साम्राज्य को ध्वस्त किया था। चूंकि अब भाजपा बंगाल में ममता के लिए चुनौती बनती दिख रही है, तो उनका पुराना ‘यूएसपी’ सामने आ गया है। ममता लोकतंत्र को बचाने का दावा कर रही हैं, लेकिन लोकतंत्र की हत्या कौन कर रहा है? संविधान और संघीय व्यवस्था को चरमराने का काम किसने किया है? धरने के राजनीतिक मंच पर पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार मौजूद क्यों हैं? क्या उन्हें सेवा-नियमों और आचार संहिता की जानकारी नहीं है? क्या वह राजनेता बन गए हैं? हालात तो ऐसे हैं कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन चस्पां कर देना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया उस पर खुश होने के ममता बैनर्जी और भाजपा के अपने कारण होंगे लेकिन राजीव कुमार से पूछताछ के लिए दिल्ली और कोलकाता छोड़कर शिलांग का चयन एक अजीबोगरीब बात है। दरअसल सीबीआई राजीव को दिल्ली बुलाकर उनसे घोटाले की जांच संबंधी सवाल-जवाब करना चाहती थी जबकि वे चाहते थे कि कोलकाता में ये काम हो। रविवार की घटना से क्षुब्ध सीबीआई को वहां जाने से परहेज था। तब बीच का रास्ता निकालते हुए शिलांग में पूछताछ किये जाने की बात तय हुई, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की इस टिप्पणी के साथ कि शिलांग ठंडी जगह है इसलिए वहां दोनों पक्षों के दिमाग भी ठंडे रहेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने चूंकि निर्णय कर दिया इसलिए अब तो शिलांग में ही दोनों पक्ष जमा होंगे लेकिन इस तरह के फैसले से एक नई नजीर बनने का खतरा पैदा हो गया है।

उनकी देखासीखी अन्य राज्यों की सरकारें सीबीआई और आयकर विभाग के लोगों को अपने-अपने राज्य में घुसने न देने और वैधानिक कार्रवाई करने से रोकने लग जाएं तब कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है का नारा मजाक बनकर रह जायेगा। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने शिलांग को राजीव से पूछताछ हेतु तय कर दिया है तब उसे रद्द करना तो ठीक नहीं होगा किन्तु न्यायपालिका को इस बारे में सतर्क रहना चाहिए वरना आरोपी भी अपने लिए विशेषाधिकार के तौर पर इस तरह की मांग करने लगेंगे। यदि आईपीएस की जगह कोई पुलिसकर्मी होता तब क्या सर्वोच्च न्यायालय उसे भी इस तरह से अपनी मनपसंद जगह पर पूछताछ की सुविधा देता ?

ममता के सामने अब अपना ‘दुर्ग’ बचाने की चुनौती है। वह क्यों भूल रही हैं कि उनकी पार्टी के सांसद, नेता और उनकी सरकार के मंत्री तक और तृणमूल कांग्रेस के करीबी चेहरे ही ज्यादातर सारदा और रोज वैली चिटफंड घोटालों में जेल जा चुके हैं। कई अब भी जेल में हैं या जमानत पर हैं। सवाल है कि क्या घोटालों की ‘काली छाया’ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक भी पहुंच रही है? लिहाजा कमिश्नर को बचाने की कोशिश की गई है। क्या ममता राज में भ्रष्टाचार की जांच करना भी पाप और अपराध है? कोलकाता के इस प्रकरण ने प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा बनाम ममता बंधन के चुनावी समीकरण और भी स्पष्ट कर दिए हैं। अधिकतर विपक्षी नेता सीबीआई, ईडी या आयकर की जांच के मारे हैं।

देखा जाए तो पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की तब हत्या की गई है, जब 10 लाख से ज्यादा गरीब, भोली जनता की गाढ़ी कमाई ममता सरकार ने लुटने दी, जब जांच करने आए सीबीआई अफसरों को हिरासत में लिया और सीबीआई दफ्तर की घेराबंदी की गई, जब अपनी बात कहने गए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर उतरने की अनुमति नहीं दी गई, जब सरसंघचालक मोहन भागवत के प्रवेश पर पाबंदी थोप दी गई, जब हिंदू देवी-देवताओं के धार्मिक संस्कार नहीं किए जाने दिए। बंगाल भारत का एक राज्य है या कोई विदेश है, जो जाने के लिए वहां की सरकार से इजाजत लेनी पड़े?

सीबीआई पर राजनीतिक तौर पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं। विपक्षी नेता केन्द्र सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं। बेहतर होगा अगर सीबीआई अपनी गिरती प्रतिष्ठा को ध्यान में रखे और ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ काम करे। राज्यों की भी जिम्मेदारी है कि वह संघीय व्यवस्था को सीधे चुनौती देने से बचें। अगर केन्द्र की किसी कार्रवाई का एतराज है तो उचित फोरम पर अपनी बात रख सकते हैं।

वैसे केन्द्र और राज्यों के बीच रिश्ते जितने मधुर होंगे, लोकतंत्र उतना ही ज्यादा मजबूत होगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पश्चिम बंगाल में हुये सियासी हाई वोल्टेज ड्रामे ने सबको सकते में डालने का काम किया। सरकार लोगों के लिए सत्ता में आती है या शक में आने वाले अफसरों के लिए। ऐसा पहली बार नहीं है कि प. बंगाल की मुख्यमंत्री ने सीबीआई की जांच पर सवाल खड़े किए हों। कभी मुख्यमंत्री धरने का रास्ता अपनाती हैं और कई नेता अपने ब्लॉग में लिखकर सीबीआई की जांच पर सवाल खड़े करते हैं। सरकार को ऐसे अफसरों को अपनी राजनीति सत्ता की पनाह नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे घोटालों का अंत नहीं शुरूआत होगा।

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