Sand Mafia: नदियों से निकाली जा रही रेत सोने से कम नहीं है। रेत की मांग बढ़ती जा रही है तथा जो इसकी लूट कर रहे हैं वे रातों रात करोड़पति बनते जा रहे हैं। निर्माण कार्यों में इसकी जरूरत होती है। Sand Mafia
उत्तर और मध्य भारत की अधिकांश नदियों का उथला होते जाना और थोड़ी सी बरसात में उफन जाना, तटों के कटाव के कारण बाढ़ आना और नदियों में जीव-जंतु कम होने के कारण पानी में आॅक्सीजन की मात्र कम होने से पानी में बदबू आना, ऐसे ही कई कारण हैं जो मनमाने रेत उत्खनन से जल निधियों के अस्तित्व पर संकट की तरह मंडरा रहे हैं।
आज हालात यह है कि कई नदियों में ना तो जल प्रवाह बच रहा है और ना ही रेत। देश भर से नदियों और समुद्र तटों से रेत की लूट की खबरें मिल रही हैं। यह समस्या इतनी गंभीर है कि पर्यावरणविदों ने सरकार से रेत का विकल्प ढूंढ़ने के लिए अनुसंधान करने की बात कही है। देश में संगठित रेत माफिया बिल्डरों और निर्माण कंपनियों के लिए अवैध रेत खनन में संलिप्त है। अवैध रेत खनन से बिल्डर खूब लाभ कमा रहे हैं। Sand Mafia
सत्ता और पैसे के लालच में कई राजनेताओं ने माफियाओं के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण को नजरअंदाज किया है। देश के प्रत्येक राज्य में यह स्थिति है। महाराष्टÑ में अवैध रेत खनन को मकोका के अन्तर्गत अपराध माना गया है। इसके बावजूद राज्य के तटवर्ती क्षेत्रों में अवैध रेत खनन जारी है। किंतु आज तक किसी भी रेत माफिया को नहीं पकड़ा गया है। Sand Mafia
विशेषज्ञों के अनुसार निर्बाध रेत खनन से नदियों और धाराओं की तलहटी तथा तटों को नुकसान पहुंचा है। इसके कारण नदियों के तट कट रहे हैं तथा टूट रहे हैं। नदियों के पास की भूमि और ढ़ांचों को नुकसान पहुंच रहा है। नदियों के प्रवाह मार्ग में भूस्खलन हो रहा है तथा प्रवाह मार्ग में निचली और अधिक गाद भर रही है।
डेÑजर जैसे भारी उपकरणों से खनन के कारण नदी की तलहटी की परतों में कंपन होता है तथा उसके आसपास की वनस्पति साफ की जाती है और वह तलहटी में जमा होती है। इसका पारिस्थितिकी पर प्रभाव पड़ता है जिसके कारण नदियों में जीवन पर प्रभाव पड़ता है। नदी में जीवों का भोजन नष्ट होता है और नदी जैव विविधता प्रभावित होती है। तेल की लीकेज को रोकने में विफलता, नदियों में प्रदूषणकारी तत्वों को फैंकने से जलजीवन नष्ट हो रहे हैं तथा जल विषैला हो रहा है। Sand Mafia
नदियों में से अत्यधिक रेत के खनन से नदी प्रवाह क्षेत्र में भूजल स्तर भी गिर रहा है। केरल, आंध्र और अन्य राज्यों में ऐसा देखने को मिला है तथा यमुना, हिंडन और गंगा में भी ऐसा हो सकता है जिसके कारण कृषि को नुकसान हो रहा है और इन क्षेत्रों में लोगों की आजीविका पर संकट आ रहा है।
आज जरूरत इस बात की है कि पूरे देश में जिला स्तर पर व्यापक अध्ययन किया जाए कि प्रत्येक छोटी-बड़ी नदी में सालाना रेत आगम की क्षमता कितनी है और इसमें से कितनी को बगैर किसी नुकसान के उत्खनित किया जा सकता है। फिर उसी अनुसार निर्माण कार्य की नीति बनाई जाए। उसी के अनुरूप राज्य सरकारें उस जिले में रेत के ठेके दें। इंजीनियरों को रेत के विकल्प खोजने पर भी काम करना चाहिए। आज यह भी जरूरी है कि मशीनों से रेत निकालने, नदी के किस हिस्से में रेत खनन पर पूरी तरह पांबदी हो, परिवहन में किस तरह के मार्ग का इस्तेमाल हो, ऐसे मुद्दों पर व्यापक अध्ययन होना चाहिए। साथ ही नदी तट के बाशिंदों को रेत-उत्खनन के कुप्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाने का प्रयास भी होना चाहिए। Sand Mafia
अभिषेक कुमार (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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