सुमिरन से ही मोक्ष-मुक्ति संभव

Salvation is possible only through Sumiran
सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि परम पिता परमात्मा, सतगुरु मौला ने मनुष्य शरीर सर्वोत्तम शरीर दिया है, ऐसा शरीर जिसकी तुलना किसी ओर से नहीं की जा सकती। इस शरीर में रहते हुए जीवात्मा अगर परम पिता परमात्मा का नाम जपे, सुमिरन करे, तो आवागमन से मोक्ष-मुक्ति मिल सकती है और वो तमाम खुशियां हासिल कर सकती है, जो मनुष्य शरीर के लिए मालिक ने मुकर्रर की हैं।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि व्यक्ति चाहे तो इन्सान से भगवान तक का सफर तय कर सकता है पर यह तभी संभव है यदि इन्सान अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम जपे। मालिक का नाम जपना किसी ओर जोनि के लिए संभव नहीं है। 84 लाख जोनियां हैं, जिनमें रहते हुए जीवात्मा केवल काल-महाकाल की भक्ति इबादत कर सकती है। आपजी ने फरमाते हैं कि जिसने ब्रह्मा जी, विष्णु जी, महेश जी को बनाया, सभी देव फरिश्तों को बनाया है, उस सुप्रीम पावर, अल्लाह, वाहेगुरु, खुदा, रब्ब को सिर्फ मनुष्य ही देख सकता है, मनुष्य ही उसकी भक्ति कर सकता है और किसी जोनि के लिए यह संभव नहीं है। जीवात्मा किसी भी शरीर में रहते हुए पिछले जन्मों में अगर भक्ति करती है, चाहे वो त्रिलोकीनाथ की ही क्यों न हो, लेकिन वो जीवात्मा तो यही सोच कर करती है कि मेरा मालिक है। सभी पशु, पक्षी, पेड़-पौधों में ऐसा नहीं पाया जाता। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि उन जोनियों में रहती हुई आत्मा मालिक की भक्ति करती है, चाहे वो काल-महाकाल की ही क्यों न हो, उस भक्ति का अच्छा फल उसके संस्कारों में लिख दिया जाता है। जन्मों-जन्मों में की गई भक्ति ही अच्छे संस्कार कहलाते हैं और वो जीवात्मा मालिक के अति करीब पहुंचती है। इस जहान में और उस जहान में परमानंद, लज्जत, खुशियां लेती रहती है।
आप जी ने फरमाते हैं कि प्रभु का नाम लेना वाला व्यक्ति भी कई बार भटक जाता है, इतना दूर चला जाता है कि सत्संग में नहीं आता। लोगों को चमत्कार बताने वाला भी भगवान को तुच्छ समझने लगता है। ऐसे लोगों के भी संचित कर्म होते हैं और इस जन्म के भी कर्म होते हैं। संचित कर्म का मतलब उन शरीरों में रहते हुए वो पाप कर्म में लगे रहते हैं, कोई भक्ति नहीं करना, समय गुजारते जाना, पक्षियों की जोनि में कीड़े मकोड़े खत्म कर दिए, किसी के अंड़े फोड़ दिए, क्योंकि पशु, पक्षियों में भी ईर्ष्या पाई जाती है। तो जोनि में ऐसे बुरे संचित कर्म जुड़ जाते हैं। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि मनुष्य शरीर में इन्सान से भगवान का रूप बना जा सकता है और मनुष्य शरीर में ही अगर बुरे कर्म करने लग जाए तो शैतान से भी आदमी आगे निकल जाता है। इसलिए अपने दिमाग को मालिक के सुमिरन में लगाकर रखो, भक्ति-इबादत में लगाकर रखो। आप जी फरमाते हैं कि भगवान के वचनों की वजह से इन्सान खुद मुख्तयार है, चाहे अच्छे कर्म बना ले, चाहे बुरे कर्म बना ले।

 

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