प्रधानमंत्री ने शहीद भगत सिंह के आदर्शों को किया याद
नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को शहीद भगत सिंह की जयंती के मौके पर उनके महान आदर्शों को याद किया तथा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। मोदी ने ट्वीट कर कहा, “आजादी के महान सेनानी शहीद भगत सिंह को उनकी जन्म-जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि। वीर भगत सिंह हर भारतीय के दिल में बसते हैं। उनके साहसी बलिदान ने अनगिनत लोगों में देशभक्ति की चिंगारी जलाई है। मैं उनकी जयंती पर उन्हें नमन करता हूं और उनके महान आदर्शों को याद करता हूं।”
उल्लेखनीय है कि शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 पंजाब के लायलपुर जिला के बंगा गांव (अब पाकिस्तान) में हुआ था। शहीद भगत सिंह को असेंबली में बम फेंकने के आरोप में शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव सहित 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गयी थी।
आजादी के महान सेनानी शहीद भगत सिंह को उनकी जन्म-जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।
The brave Bhagat Singh lives in the heart of every Indian. His courageous sacrifice ignited the spark of patriotism among countless people. I bow to him on his Jayanti and recall his noble ideals. pic.twitter.com/oN1tWvCg5u
— Narendra Modi (@narendramodi) September 28, 2021
जलियावाला बाग में नरसंहार ने भगत सिंह का बदला मन
भगत सिह को देश भक्ति विरासत मे मिली थी, क्योंकि उनके दादा अर्जुन सिंह, उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह गदर पार्टी के अभिन्न हिस्से थे। जब 13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग में नरसंहार हुआ, तो इसे देखकर भगत सिंह काफी व्यथित हुए थे और इसी के कारण अपना कॉलेज छोड़ वो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।
अमर शहीद भगत सिंह के जीवन की अनजानी बातें
14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्टर गांवों में छपने लगे। भगत सिंह पहले महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य थे। 1921 में जब चौरा-चौरा हत्याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गठित हुई गदर दल के हिस्सा बन गए।
उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था।
हम मरेंगे भी तो दुनिया में जिंदगी के लिए।
सबको जीना सीखा जायेंगे मरते मरते…
ये ना समझो भगत फाँसी पर लटकाया गया,
सैंकड़ों भगत बन जायेंगे मरते मरते…शहीद ए आज़म भगत सिंह की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।
इंकलाब जिंदाबाद! pic.twitter.com/sJDDjmISoY
— Manish Sisodia (@msisodia) September 28, 2021
भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था
काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो। वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे।
भगतसिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते। भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे।
8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे
भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे।
उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ दो अखबारों का संपादन भी किया।
जेल में अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’
जेल में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।
भारत माता के वीर सपूत, महान क्रांतिकारी शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जी की जन्म जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन।
ਭਾਰਤ ਮਾਂ ਦੇ ਵੀਰ ਸਪੂਤ, ਮਹਾਨ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਸ਼ਹੀਦ-ਏ-ਆਜ਼ਮ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਦਿਵਸ 'ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਣਾਮ। pic.twitter.com/oP885QMkAM
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 28, 2021
23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से पहले वे ‘बिस्मिल’ की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी। पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था।
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