मुम्बई। दो साल में महंगी कारों की बिक्री (Sales of Expensive Cars) सस्ती कारों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ी है। घरेलू क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिसर्च के मुताबिक, एंट्री लेवल कारों के मुकाबले 10 लाख रु. से ज्यादा कीमत वाली कारें तेजी से बिकने की मुख्य वजह दोनों सेगमेंट के ग्राहकों की आमदनी में अंतर है। 2021-22 में प्रीमियम सेगमेंट यानी 10 लाख रुपए से अधिक कीमत वाली कारें सस्ती कारों की तुलना में 5 गुना तेजी से बिकी।
रिपोर्ट बताती है कि प्रीमियम सेगमेंट की कारों की बिक्री सालाना 38 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। जबकि, सस्ती कारों की बिक्री सालाना 7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। इससे 2021-22 में प्रीमियम कारों का मार्केट शेयर 25 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गया। 2018-19 में मारुति की अल्टो, स्विफ्ट, बलेनो, विटारा ब्रेजा, सेलेरियो और डिजायर और हुंडई की आई10 और आई20 की कम कीमत वाली कारों की बिक्री में हिस्सेदारी 56 प्रतिशत थी।
बीते तीन साल इसमें तेजी से गिरावट आई। वर्ष 2015-16 में बाजार में कम कीमत वाले 54 मॉडल थे, जबकि 2021-22 में इसकी संख्या 39 रह गई। 2019-20 के बाद कम कीमत वाली कारों के सेगमेंट में नई कारें भी कम आई हैं। 2021-22 में इनकी हिस्सेदारी महज 15 प्रतिशत रही। महंगी कारों की बात करें तो 2018-19 में हुंडई की क्रेटा, मारुति की अर्टिगा, सियाज, महिंद्रा की बोलेरो, स्कॉर्पियो, होंडा सिटी, फोर्ड इकोस्पोर्ट और टोयोटा इनोवा की हिस्सेदारी 68 प्रतिशत थी। 2019 के बाद इसमें गिरावट आई, लेकिन इसकी भरपाई इस सेगमेंट में हुई नई लॉन्चिंग ने कर दी।
दोपहिया सेगमेंट की बात करें तो 5-6 साल में 70 हजार रुपए से अधिक कीमत वाली गाड़ियों की बिक्री (Sales of Expensive Cars) कम कीमत वाले स्कूटरों से अधिक रही। दोपहिया वाहन बनाने वाली कंपनियां अधिक कीमत वाले सेगमेंट पर ज्यादा फोकस कर रही हैं। 2014-15 में लोअर-प्राइस सेगमेंट में 29 मॉडल थे। अब इनकी संख्या 12 है। हायर-प्राइस सेगमेंट में दोपहिया मॉडलों की संख्या 2014-15 में 71 थी, जो अब बढ़कर 93 पर पहुंच गई है।
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