सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि संत, पीर-फकीर इस संसार में हर किसी का भला करने के लिए आते हैं। दुनिया में ज्यादातर लोग अपने लिए, अपने गर्ज के लिए समय गुजारते हैं, परन्तु संत परमार्थ के लिए समय लगाते हैं। दूसरों का दु:ख अपना दु:ख बनाते हैं और अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब से दुआ करके उनके दु:ख दूर करने की कोशिश करते हैं। अगर जीव संतों के वचन मान ले तो उसके दु:ख दूर हो जाते हैं और वचन न माने तो उसे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संतों का काम शिक्षा देना है। जिस प्रकार टीचर, लेक्चरार कक्षा में जाकर विद्यार्थियों को लेक्चर देते हैं, अपने तरीके से सिखाते हैं। फिर विद्यार्थियों पर निर्भर होता है कि वो टीचर की बातों को कितना मानते हैं। जो बच्चे मानते हैं, सिखाए गए का अनुसरण करते हैं, उन्हें मेरिट हासिल होती है। कुछ फर्स्ट डिविजन में आते हैं और आगे तरक्की करते हैं। कुछ ऐसे विद्यार्थी होते हैं जो टीचर की बातों की तरफ ध्यान नहीं देते। वो सिर्फ टाइम पास करने के लिए स्कूल, कॉलेज में जाते हैं। तो वो नेचुरली फेल ही होंगे। इसी तरह संत, पीर-फकीर सभी को समझाते हैं। जो सुनकर अमल कर लेते हैं, वो दोनों जहान की खुशियों के काबिल बन जाता है। अगर पूरा अमल कर लेते हैं तो परमात्मा के दर्शन भी कर लेते हैं। जो थोड़ा अमल करते हैं, उन्हें भी कभी-कभार दर्श-दीदार हो जाते हैं।
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