कैसे ना देखे बार-बार नुरानी मुखड़े को…

तूने अपने हुश्न पर पहरा लगा रखा है।
रूहों को ब्याहने आया है सेहरा लगा रखा है।

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कैसे ना देखे बार-बार शक्ल तुम्हारी को…
इलाही सूरत पर इन्सानी चेहरा लगा रखा है।


दर्द-ए-दिल की दवा भी पास तुम्हारे है।
और तुमने ही ये घाव गहरा लगा रखा है।

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मेरे और तेरे दरमियां दीवार बने हैं जो
‘बघियाड़’ चीख ले खूब शख्स हर भहरा लगा रखा है।

संजय बघियाड़

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