सरसा (सकब)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं (Saint Dr. MSG) कि सच्चे मुर्शिदे-कामिल जिन्होंने इन्सानों को हैवान, शैतान से इन्सान और इन्सान से भगवान तक का सफर तय करवाया, ऐसे मुर्शिदे-कामिल शाह सतनाम सिंह जी महाराज का यह जन्म महीना दुनिया के कोने-कोने में मनाया जा रहा है। शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां साध-संगत न हो और सतगुरु मुर्शिदे-कामिल के गुणगान न गाए जा रहे हों।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि सच्ची खुशियां तभी मिलती हैं जब आदमी अपने जमीर को बदल डाले। जमीर पर से मन के लेप को उतार दे। यहां बड़ा स्वार्थी है। आदमी अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है, क्योंकि कलियुग का समय है और यहां झूठ का बोलबाला है। चारों तरफ लोग झूठ बोलते नजर आते हैं, दूसरे के लिए ऐसे-ऐसे चक्रव्यूह बुनते हैं और एक दिन खुद ही उस चक्रव्यूह में फंसकर मकड़ी की तरह तड़प-तड़प कर मर जाते हैं जबकि हासिल कुछ भी नहीं होता। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि मुर्शिदे-कामिल को सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में या दूसरे शब्दों में जन्म की खुशी के रूप में अगर आप कोई तोहफा देना चाहते हैं तो आप अपने अवगुण छोड़ दो,गुणों को ग्रहण कर लो, ताकि आप दोनों जहान की खुशियों के हकदार इस मृतलोक में बन सको।
वरना भौतिकतावाद, दुनियावी साजो-सामान के लिए सभी ही पागल हैं, उस राम, अल्लाह, मालिक के लिए जो परमानन्द की खान है, उसके लिए कोई-कोई तड़पता है और जो सच्चे दिल से तड़पता है, मालिक उसकी झोलियां भी दया-मेहर, रहमत से जरूर भर देते हैं। आप जी ने फरमाया कि इंसान अपने जमीर को जगाए, जो काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया में छुप गया है। इससे बचने का एकमात्र उपाए सेवा और सुमिरन है। चलते, बैठते, लेटते, काम-धन्धा करते हुए सुमिरन करते रहें, मालिक का नाम जपते रहें, तो मालिक की दया-मेहर, रहमत के काबिल बना जा सकता है।
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि जब तक आदमी मालिक की भक्ति-इबादत नहीं करता, उसकी दया-मेहर, रहमत के काबिल नहीं बनता तो इन्सान खुशियां हासिल नहीं कर सकता। इसलिए अगर आप परमपिता परमात्मा की खुशियां हासिल करना चाहते हो, तो दिखावे को छोड़कर अपने अंदर की भावना को शुद्ध करो। दिखावा करने से वो मालिक, कोई संत, पीर-फकीर खुश नहीं होता। आप अच्छे कर्म करें तो कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। अल्लाह, वाहेगुरु दया-मेहर, रहमत से नाज देते हैं।
इन्सान को विचारों का खोटा (बुरा) नहीं बनना चाहिए
आप जी ने आगे फरमाया कि इन्सान को विचारों का खोटा (बुरा) नहीं बनना चाहिए। आज इस कलियुग में दिखावटी तौर पर लोग सीधे-साधे जैंटलमैन नजर आते हैं, लेकिन उनके अंदर इतना छल-कपट, पाप भरा होता है जो कहने-सुनने से परे है। लोग ऐसा सिर्फ दौलत के लिए करते हैं। अगर आप सिर्फ दौलत के लिए पाप, ठगी, बेइमानी, धोखाधड़ी, टांग खिंचाई करते हैं तो ठीक है आपको दौलत मिल जाएगी, लेकिन मालिक न करे कि कोई ऐसा रोग लग जाए जो सारी उम्र न हटे, तो क्या उस दौलत से उस रोग को हटा पाओगे? रोग को डॉक्टर लाइलाज बता दे, तो आप तड़पते हुए बेचैन रहोगे। इसलिए राम का नाम जपें।
अंदर-बाहर से मालामाल
यह ऐसी दौलत है जो दोनों जहान में साथ रहते हुए अंदर-बाहर से मालामाल करती रहती है, यानी आत्मिक शांति, आत्मबल बना रहता है और दुनिया के अच्छे, नेक कार्य में सफलता जरूर हासिल होती है। इसलिए इन बुरे कामों को छोड़कर बुरी सोच को बदल दो। यह न हो कि जिस पैसे के लिए आप अपना जमीर, दीन-इमान बेच रहे हैं कहीं वही पैसा आपको हाटे-हाट न बिका दे, जन्म-मरण के चक्कर में डाले और जीते-जी कोई भयानक रोग लगा दे। इसलिए कभी ऐसा बुरा कार्य नेक इन्सान के साथ न करो, अगर करोगे तो भरना जरूर पड़ता है। सच्चे मुर्शिदे-कामिल के जन्म माह में इन वचनों पर अमल करें, तो यकीनन आप पर रहमो-कर्म बरसेगा ही बरसेगा।
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