सेवा की पैसे से तुलना कभी मत करो
बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने यूटयूब चैनल पर लाइव आकर, फरमाया कि कईयों को सेवा के मूल्य का पता ही नहीं, माया रानी को ही सेवा समझते हैं। सेवा करूं बदले में ये मिलना चाहिए, सेवा करूं मेरे को तो वो मिलना चाहिए। ये कोई नई चीज नहीं है, पुराने समय में भी ऐसे होता रहा है। लेकिन जब आपने सेवा का मूल्य ले लिया, फिर सेवा का जो रूहानी, नुरानी फल आपको दैवीय फल जो परमात्मा ने आपको देना है, वो कैसे मिलेगा और किस तरह से मिलेगा? क्योंकि आपने सेवा को पैसे के पलड़े में तोल दिया। सेवा नि:स्वार्थ भावना से होती है और उस सेवा का फल समुन्द्र के रूप में ना मिले हम आपको लिखकर गारंटी दे सकते हैं। क्यों इतना कॉन्फिडेंस है? क्योंकि सार्इं दाता शाह मस्ताना जी ने, हमारे खसम शाह सतनाम जी दाता रहबर मालिक ने साफ तौर पर कहा है कि सेवा जो करते हैं सतगुरु की अँखियों के तारे होते हैं, भगत प्यारे होते हैं, दिल के टुकड़े सारे के सारे होते हैं।
अब सतगुरु की अँखियों का तारा जो हो गया, परमपिता परमात्मा का, तो उसे कमी कोई कैसे आ सकती है और किस तरह आ सकती है, हो ही नहीं सकता। हमने खुद आजमाया है, सेवा किया करते थे, जैसी भी सेवा आश्रम में मिलती, उस समय जब हम लोग आया करते थे तो गेहूँ वगैरहा काटना, गेहूँ की बोरियां उठाना, उनको कमरों में लगाना, आमतौर पर सेवा होती थी और सेवा करवाने वाला होता था, कई लोग उसको देखकर भाग लेते थे, आ गया ये पकड़कर कहेगा चल बिल्लू थोड़े से कट्टे लगा दो। हम लोग उसको ढूंढते थे कहाँ है? कोई सेवा पूछें। तो कहने का मतलब अपनी-अपनी भावना होती है, अपने-अपने ख्याल होते हैं और ये गारंटी से कहते हैं कि बेपरवाह जी ने ना कोई कमी छोड़ी थी किसी को, ना छोड़ी है और आगे तो छोड़नी क्या थी। तो सेवा का ज़ज्बा खत्म मत होने दो। सेवा को पैसों से मत तोलो।
अपने बुजुर्गों की सेवा से शुरू करो सेवा कार्य
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि पहली सेवा करो अपने बुजुर्ग माँ-बाप, दादा-दादी या जो भी हैं उनकी। उन्हें अनाथ वृद्ध आश्रम में मत भेजो। ये आपसे गुजारिश। लेकिन आजकल लोग ऐसा कर रहे हैं। तो साध-संगत हर सेवा कार्य बड़े जोर-शोर से करती है तो हमने एक सेवा शुरू करवाई थी, चिट्ठी में शायद आप लोगों ने पढ़ी थी, अनाथ मातृ-पितृ सेवा, जी बच्चे हाथ खड़ा कर रहे हैं कि हाँ, जी बेटा, बिल्कुल-बिल्कुल, आशीर्वाद, मालिक खुशियां दे।
सबने सुनी आपने चिट्ठियों में। तो क्यों ना साध-संगत ब्लॉकों में, जहां लगता है कि जरूरत है, गाँवों में तो हमें लगता नहीं कि इसकी जरूरत पड़ती होगी, गाँवों में कम है अभी भी शायद, जो हमें फिलिंग आती है, कि माँ-बाप को घर से निकालते होंगे, बहुत-बहुत कम रेश्यो होगी, शहरों में और ज्यादा और महानगरों में तो पूछा ना। तो अगर पॉसीबल हो, साध-संगत अनाथ वृद्ध आश्रम, जो हम पहले कहा करते थे, तो क्या वो सेवा करने को आप तैयार हैं, जी आप जोर से नारा (धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा) लगाएं और हाथ नीचे कर लें, बहुत-बहुत आशीर्वाद। तो ये भी जिम्मेवार लिख लेंगे कि एडम ब्लॉक के साथ मिलकर अनाथ वृद्ध आश्रम जिम्मेवार जरूर बनाएंगे। इसके लिए भी एक डिजाइन तैयार करेंगे और मोबाइल टॉयलेट का डिजाइन तैयार हो चुका है।
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