लो साध-संगत जी सोहने सतगुरु जी के कर लो दर्शन, नए अंदाज में आए गुरु जी
बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने इंस्ट्राग्राम पर एक नई रील अपलोड की है। वीडियो में पूज्य गुरु जी रंग बिरंगी गोभी के साथ देखा जा सकता है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ये रंग बिरंगी गोभी है। इसमें ब्रोकली भी है और कहते हैं कि ये रंग बिरंगी खाने में, खासकर अच्छी चीज खाने में बहुत तंदरूस्ती आती है। ये हम खेत से तोड़कर लाए है। आॅर्गेनिक है और सेहतमंद है। वीडियो देखने के लिए इस पर क्लिक करें।
- भी मिलकर चले और समाज में व्याप्त बुराईयों को करें समाप्त
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया कि किसी चीज का गुलाम मत बनो, बल्कि चीजें आपकी गुलाम हों, कि भई आप अपनी इच्छानुसार स्वयं को बदल सकते हैं। यकीन मानिये जब छोटी उम्र में आप ये शुरू कर देंगे करना तो पूरी लाइफ में मजे लेंगे, खुश रहेंगे। तो आदमी को कभी भी अपने जमीर की आवाज को मारना नहीं चाहिए। कई बार जमीर की आवाज को लोग खत्म कर देते हैं। झूठ बोलना, कूफर तोलना, बातों का गलत मतलब निकालना, और उसका कारण क्या होता है? माया रानी। बुरा ना मनाना, अदरवाइज जमीर कहां मर गया इन्सान का? वो सच बोलने से डरता क्यों है? किस लिए?
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हर आदमी का कार्म करने का तरीका होता है। आप बच्चे हैं, पढ़ते-लिखते हैं, स्कूल-कॉलेज जाते हैं। दुकानदार हैं, वो क्या करेगा? दुकानदारी का काम। अब जमींदार हैं, किसान हैं, वो खेतों में जाकर अपना काम करेंगे। बिजनेसमैन, व्यापारी अपने व्यापार में जाएगा। तो अपने घर से इस तरह से हर कोई काम करने जाता है। क्योंकि वो घर का मुखिया है, उस पर सारे घर के खर्चे टिके हुए हैं, सारे घर की आमदन टिकी हुई है। दूसरे शब्दों में, सारे परिवार की रोजी-रोटी का सवाल है जी। जो बिजनेस-व्यापार बड़े हो जाते हैं। बच्चों का तो एक मकसद होता है, पढ़ाई अच्छी करनी है और पढ़ाई अच्छी करके, अच्छे आॅफिसर रैंक तक जाना है, नहीं बच्चो! एक बात और याद रखना, सिर्फ यहीं बस ना करना, आपका फ़र्ज है कि पढ़-लिखकर सबसे पहले इन्सानियत को बुलंद करना, जो मरती जा रही है। इन्सानियत ना मरने पाए।
क्या है इन्सानियत?
आपजी ने फरमाया कि इन्सानियत कहते किसे हैं? किसी को भी दु:ख-दर्द में तड़पता देखकर, किसी को मतलब पशु, पक्षी, परिंदा, आदमी। किसी को भी दु:ख-दर्द में तड़पता देखकर उसके दु:ख-दर्द में शामिल होना और अपने तरीकों से उसके दु:ख-दर्द को दूर करने की कोशिश करना, ये ही सच्ची इन्सानियत है। प्रभु का नाम भी लेना। तो इन्सानियत के ज़ज्बे को कभी खत्म ना होने देना।
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