बरनावा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां गत रविवार को आदरणीय साहिबजादी बहन हनीप्रीत इन्सां के साथ अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर करोड़ों साध-संगत से लाइव रूहानी रूबरू हुए। इस दौरान रूहानी बहन हनीप्रीत इन्सां ने साध-संगत द्वारा भेजे गए सवालों को पढ़ा, जिनका पूज्य गुरु जी ने जवाब देकर साध-संगत की जिज्ञासा को शांत किया।
सवाल : पिता जी आपको जंक फूड पसंद है या क्या खाना पसंद है?
पूज्य गुरु जी : बेटा हम लोग तो देसी लोग हैं। चटनी खाने वाले और साथ में मक्खन वगैरहा तो जरूर खाते थे। घी, मक्खन या मट्ठियां, गुलगुले ये चीजें बनना या प्याज के पकौड़े वगैरहा बना लिया करते थे घरों में। और सबसे बढ़िया दिन होता था जब हलवा बना करता था, कि यार कमाल हो गी, या खीर बन गई या सेवर्इंया बन गई, ये डिश होती थी मीठी। ज्यादा ही कई बार होता था कि काम धंधा करके थक जाते थे तो गुड़ खाया, दूध पीया और एक दम से फ्रैशनैस आ जाती थी। तो ये चीजें हम लोग ज्यादा खाया करते थे। तो वो ही चीजें आज भी वैसी की वैसी पसंद हैं। जंक फूड ये कभी ही खाते हैं।
सवाल। गुरु जी मैं बहुत भौतिकतावाद में फंसा हुआ हूँ, सतगुरु जी कृपा करें जी।
पूज्य गुरु जी : बेटा, आप सुमिरन कीजिये। रूहानियतवाद में आइए, सूफियतवाद में आइए, आत्मिक ज्ञान हासिल कीजिये सुमिरन के द्वारा। तो यकीनन भौतिकतावाद से आप थोड़ा बाहर आ पाएंगे और अच्छाई के क्षेत्र में आगे बढ़ पाएंगे।
सवाल : गुरु जी हमारे बच्चे नशे में फंसे हुए हैं। आप आकर उन्हें इस बर्बादी से बाहर निकालें?
पूज्य गुरु जी : भई, हम तो पूरी कोशिश कर रहे हैं बेटा कि हर बच्चे को नशे से दूर करें। बाकी जैसे रामजी चाहेंगे, उसी के अनुसार होगा। वा करन करावणहार है।
सवाल : निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत कैसे करें जी? जैसे सही निर्णय एकदम से कैसे लें?
पूज्य गुरु जी : कई बार ऐसा होता है कि आदमी डबल मार्इंड हो जाता है, कि ये निर्णय ये है और एक ये है। तो उसके लिए जरूरी है बेस बनाना। आप पहले से आत्मबल हासिल कीजिये सुमिरन के द्वारा, वो एक ही तरीका है मैथड़ आॅफ मेडिटेशन कह लो, गुरुमंत्र, नाम शब्द या कलमा, उसका अभ्यास कीजिये तो आपकी बॉडी का एक ग्राउंड बन जाएगा, आत्मा का, फिर आप डिसीजन लेंगे तो आपको पता चलेगा कि ये वाला सही और ये वाला गलत है। ये अनुभव करना पड़ता है और जो करना सीख लेते हैं, वो इससे डिसीजन ले पाते हैं।
सवाल : गुरु जी बच्चे हमारी नहीं सुनते हैं, लेकिन आपकी सुनते हैं? पिछले वक्त में हमें काफी परेशानी आई?
जवाब : तो अच्छी बात है वो अपने पीर-फकीर की बात तो सुन रहे हैं। तो बच्चों जो भी हमारी बात सुन रहे हो आप तो अपने माँ-बाप की भी जो भी जायज बातें हैं वो सुन लिया करो और अगर लगता है कि नाजायज बात है तो चुप हो जाया करो, आगे से बहस ना किया करो, आखिर आपके जन्मदाता हैं। आपको पाल पोस कर बड़ा किया है। हमारी ये संस्कृति है कि जो सिखाती है कि अपने बड़ों की इज्जत करनी चाहिए, सत्कार करना चाहिए।
सवाल : पिता जी मैं बहुत सेंसेटिव हूँ। छोटी सी बात से स्ट्रैस में आ जाती हूँ, सिर में दर्द हो जाता है, रहमत करो।
पूज्य गुरु जी : सेंसेटिव होने से कई बार बड़ा मुश्किल हो जाता है। तो आप बेटा कोई भी बात सुनकर एकदम से रिएक्ट ना किया करो। बात वहीं घूमकर आ जाती है कि आपके अंदर आत्मबल की बहुत कमी है, तो उसके लिए सुमिरन, सेवा ही एक तरीका है कि भक्ति करो और दीन-दु:खियों की सेवा करो और ज्यादा अपनी सोचो में मत रहो, आप समाज में थोड़ा घुल मिलकर रहने की कोशिश करो। तो यकीनन ये चीजें दूर हो जाएंगी।
सवाल : 142वें मानवता भलाई के अंतर्गत साध-संगत ने अपने घरों में तिरंगा स्थापित कर दिया है जी।
पूज्य गुरु जी : बड़ी खुशी की बात है, जिन्होंने घरों में तिरंगा स्थापित कर लिया है। क्योंकि देश भक्ति का ज़ज्बा होना बहुत जरूरी है। और उन सबको बहुत आशीर्वाद, जिन्होंने तिरंगे को एक ऊँची जगह पर लगाया है, ताकि उसे सेल्यूट किया जा सके। हमारा भी सेल्यूट सब बच्चों को और तिरंगे को।
सवाल : प्रेम घोड़े पर चढ़कर लज्जत बहुत आती है, पर उतरने को दिल नहीं करता। प्रेम घोड़े पर हमेशा सवार रहने के लिए क्या करें?
पूज्य गुरु जी : राम-नाम का जो प्यार है, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का जो इश्क है, उसके घोड़े पर जो सवार हो जाते हैं, बिल्कुल सही कहा उतरने को दिल नहीं करता। लेकिन आप समाज में रह रहे हैं, आप घर-परिवार वाले हैं तो हमेशा उस पर चढ़े रहोगे तो दूसरे कामों से ध्यान हट जाएगा। लेकिन उससे जुड़े रहोगे ये लाजमी है। इसके लिए आप सुमिरन भी करते रहें और साथ में दिनचर्या का कार्य भी करते रहें। और सुबह-शाम जब समय मिलता है तो उसमें भक्ति करें, इबादत करें तो फिर से प्रेम घोड़े पर सवार हो जाया करेंगे। तो जुड़े भी रहेंगे और खुशी भी आती रहेगी और दुनियावी कार्य में भी सफल हो पाएंगे।
सवाल : पिता जी संतों पर इल्जाम क्यों लगाए जाते हैं? इतिहास में पहले भी ऐसा हुआ है, लेकिन आपने जो दुनिया के लिए सेक्रीफाइस किया है, उसके लिए बिलियंस आॅफ सेल्यूट यू।
पूज्य गुरु जी : जी, बुराई और अच्छाई दो ताकतें हमेशा से चली आई हैं जबसे दुनिया साजी है। अच्छाई करने वालों को रोका जाता है और बुराई करने वाला आगे रहता है, हमेशा ऐसा नहीं रहता। अच्छाई करना जरूरी है, क्योंकि अच्छाई हमेशा जिंदा रहती है और बुराई की उम्र लंबी नहीं होती है। तो संत, पीर-फकीर अच्छाई करते हैं। जैसे हमने अभी-अभी जवाब दिया था कि संत-महापुरुषों का नाम करोड़ों दिलों के अंदर आज भी जगमगा रहा है, सत्कार के रूप में आज भी उनके दिलो दिमाग में वो बैठा हुआ है जबकि जो बुराई हुई उनके साथ उस समय उनकी उम्र उतनी ही रही, उसी समय उन लोगों को याद किया गया, एक आध को छोड़कर अदरवाइज बुराई का नाम याद नहीं रखा जाता। आज रावण को बुराई के प्रतीक के रूप में और रामजी को अच्छाई के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
सवाल : पिता जी शादी के बाद जीवन में बहुत से बदलाव आ जाते हैं। एक दम से पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ जाती है। ये डर लगता है कि इनमें फंसकर सेवा सुमिरन से दूर न हो जाएं?
पूज्य गुरु जी : नहीं, ऐसा तो नहीं होता। आप खाना बनाते समय सुमिरन करें, चलते-फिरते सुमिरन करें, काम-धंधा करते वक्त सुमिरन करें तो परिवार में एडजस्ट हुआ जा सकता है। माना कि एक नई सी जिंदगी हो जाती है। जन्म कहीं हुआ और बिटिया हमारी जाती कहीं और है, तो आप सच कह रहे हैं कि बड़ा मुश्किल होता है एडजस्ट कर पाना। लेकिन आप सुमिरन करते रहेंगे और शांत चित्त होकर संयम के साथ वहां रहने की कोशिश करेंगे तो उनके स्वभाव को आप पढ़ पाएंगे, फिर उसके अनुसार थोड़ा चलने की कोशिश कीजिये। हाँ, बुराई नहीं करनी, लेकिन अच्छाई के साथ उनका दिलों को जीता जा सकता है।
सवाल : मेरी शक्ल देखकर बचपन से ही मेरा बहुत अपमान किया जाता है, क्या करूं?
पूज्य गुरु जी : बेटा, शक्ल से अपमान का कोई लेना-देना नहीं है। पर आप सोचें ना, तंगदिल मत बनो। आप ये सोचो मेरी शक्ल बढ़िया है। राम जी ने जो शक्ल दे दी वो बहुत ही अच्छी है, अपने अंदर कॉन्फिडेंस रखो, अपने अंदर हीन भावना मत भरो। फिर यकीनन, कोई अपमान करेगा भी तो आपको लगेगा ही नहीं। आप अपने आप के ऊपर ये लाएं मत, चाहे कोई कुछ बोलता रहे आप सोचें ना और ऐसी बातों को इग्नोर कर दें और सुमिरन करते रहें तो ऐसा करने वाला खुद ही चिंता में पड़ जाएगा।
सवाल : कुछ लोग अच्छे बनकर फायदा उठाते हैं? ऐसे लोगों की पहचान कैसे करें?
पूज्य गुरु जी : अच्छाई और बुराई की पहचान तभी हो सकती है जब आपके अंदर आत्मबल होगा, आत्मज्ञान होगा और ये तभी संभव है जब आप सेवा और सुमिरन करते हों। एक कहावत भी है कि हर चीज सोना नहीं होती। तो उसी के अनुसार जो दिखते हैं, कई बार वो अच्छे नहीं होते। और जो नहीं दिखते वो कई बार अच्छे हो जाते हैं। हर काले बादल बरसा नहीं करते। और जो बरसते हैं वो गरजते नहीं और गरजने वाले कभी-कभी ही बरसते हैं। सो कहने का मतलब अगर किसी की पहचान आप करना चाहते हो तो उनके साथ कुछ ऐसा व्यवहार रखिए कि आपका लॉस ना हो और आप उनको पढ़ भी पाएं। यकीन तो करना पड़ता है समाज में, लेकिन एकदम से किसी पर 100 पर्सेंट यकीन मत कीजिये, सिवाय राम, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु के, उसके किसी संत, पीर-फकीर के। अन्यथा आप धोखा खा सकते हैं।
सवाल। पापा जी गुस्सा हो जाता हूँ, फिर बोले बिना रहा भी नहीं जाता और वे लोग फायदा उठाते हैं, क्या करूं?
पूज्य गुरु जी : तो गुस्सा ही ना हुआ कर बेटा। किसने बोला है गुस्सा होने के लिए। आप कंट्रोल करें अपने आप पर। फिर बोले बिना रहा नहीं जाता ये तो इन्सानियत है। जो गुस्सा करके बाद में जल्दी मान जाते हैं, उनके अंदर इन्सानियत ज्यादा होती है, या भावुकता होती है। तो आप गुस्सा ही ना हों। बाद में जल्दी बोलना ही है तो क्या फायदा गुस्सा होने का। इसलिए शांत चित्त रहो सुमिरन के साथ।
सवाल : पिताजी अगर कोई आत्मा बिना नाम के चली जाए तो उसके लिए क्या करें?
पूज्य गुरु जी : सुमिरन करें, मालिक से दुआ करें ताकि भगवान उस आत्मा का भला करे।
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