नामचर्चा: जरूरतमंद दिव्यांग को साध-संगत ने दी ट्राइसाइकिल
-
4 युगल डेरा सच्चा सौदा की मर्यादानुसार दिलजोड़ माला पहनाकर विवाह बंध में बंधे
सच कहूँ/सुनील वर्मा सरसा। पावन महारहमोकर्म माह के उपलक्ष्य में रविवार को शाह सतनाम जी धाम, सरसा में साप्ताहिक नामचर्चा का आयोजन किया गया। नामचर्चा में पहुंची साध-संगत ने कोरोना के मद्देनजर सरकार द्वारा निर्धारित सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क लगाना और सेनेटाइजेंशन सहित सभी नियमों का पूर्णत: पालन किया। इस अवसर ‘कुल का क्राउन’ मुहिम के तहत एक शादी हुई। इसके अलावा 4 युगल डेरा सच्चा सौदा की मर्यादानुसार दिलजोड़ माला पहनाकर विवाह बंधन में बंधे। वहीं एक दिव्यांग को साध-संगत की ओर से ट्राइसाइकिल दी गई। इस अवसर पर बड़ी स्क्रीन पर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रिकॉर्डिड अनमोल वचन चलाए गए।
रिकॉर्डिड वचनों में पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि सत्संग में जब इन्सान चलकर आता है तो काफी रूकावटें आती हैं, कई बार कुछ परेशानियां भी आ जाती हैं। रूकावटें मन की हैं और मनमते लोगों की हैं। मन कहता है कि क्या मिल जाएगा तुझे? आज तो तेरा फलां काम बाकी है, आज तो तेरा फलां कार्य करने वाला है। छुट्टी का दिन है, फलां-फलां काम करेंगे, इन्जॉय करेंगे इत्यादि-इत्यादि। फलां जगह पर नहीं गए तो यार, दोस्त उलाहना देंगे। फलां जगह पर नहीं गए तो लोग कहेंगे यार तूं आया क्यों नहीं।
सत्संग में नहीं जाएंगे तो कौन-सा किसी ने पूछना है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि भाई कहीं भी जाओ, कोई रोक टोक नहीं होती। लेकिन वहां सिवाय बर्बादी के कुछ हासिल नहीं होता। इन्जॉयमेंट कोई रोकता नहीं है। लेकिन चुगली करना, निंदा करना, दूसरों की बुराई गाना, नशे करना। ये समय की बर्बादी के साथ-साथ शरीर की भी बर्बादी है।
और दूसरी तरफ सत्संग हैं, यहां पर आकर जब आप प्यार से सुनते हो, मालिक की चर्चा होती है, अपने ओम, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड, खुदा, रब्ब से आपकी मोहब्बत, आपका प्यार बढ़ता है और ज्यों-ज्यों प्यार मोहब्बत बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों आपकी बीमारियां, परेशानियां, मुश्किलें पल में हल होती चली जाती हैं। जिन्दंगी जीने का मजा आने लगता है। सत्संग सबके भले के लिए होता है। सत्संग में आने से दिलो दिमाग पवित्र होता है और इन्सांन का एनर्जी लेवल बढ़ जाता है। सत्संग में आने से विल पावर (आत्मबल) बढ़ता है। अक्सर देखा जाता है कि विल पावर बढ़ाने के लिए लोग पूरी दुनिया का चक्कर लगाते रहते हैं कि हमें आत्मबल मिल जाए, विल पावर मिले, यहां से मिले, वहां से मिले, कहां से मिले।
आपजी ने फरमाया कि लोगों के पास धन-दौलत, जमीन-जायदाद, एशो आराम के सब साधन होते हैं। लेकिन एक चीज नहीं होती है और वो है आत्मिक शांति। जब आत्मि शांति नहीं होती, बाकी सब चीजें फिजूल की लगती हैं। कहते हैं ना बरसात सुहानी होती है, लेकिन अगर अंदर गम चिंता हो तो बरसात रूलाती भी है। वही मौसम जो बहार का होता है, जब अंदर गम चिंता हो तो वहीं पतझड़ बन जाया करता है। सबसे जरूरी है आत्मिक शांति। दिलो दिमाग में शांति हो। सत्संग में ऐसा टॉनिक मिलता है, जो आपको रिचार्ज कर देता है। वो राम, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड के नाम का, जिससे आपकी शक्ति आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कौन इन्सान नहीं चाहता कि तरक्की हो, कौन इन्सान नहीं चाहता कि वो सफलता की सीढ़िया चढ़ता चला जाए, कौन इन्सान नहीं चाहता कि उसका परिवार सुखी रहे, तन्दुरूस्त रहे। हर इन्सान की इच्छा होती है कि खुद तन्दुरूस्त रहे और परिवार तन्दुरूस्त रहे। खुद को कोई कमी ना हो और परिवार को भी कोई कमी ना आए। इसलिए तो दौड़ते रहते हैं।
आपजी ने फरमाया कि राजस्थान में जब गर्मी का मौसम होता था, बरसात आने वाली होती थी तो धरती का तापमान बढ़ जाता था, या यूं कहें चीटियों के पर (पंख) निकल आते थे, धरती में छोटा सा बिल होता था उनका और उसमें से वो बहुत तेज प्रेशर से बाहर निकलती थी। तो उसे देखते रहते कि ये कितने प्रेशर से बाहर जा रही हैं। अब अगर धरती में रहने वाले के पर (पंख) निकल आएं तो फिर पूछिए मत। शायद इसलिए उनको जल्दबाजी रहती होगी। लेकिन कहते हैं कि चींटी के पर (पंख) निकलते हैं और उसकी मौत हो जाती है।
आज इन्सान का भी यही तो हाल है। कहीं भी देख लो सुबह के टाइम में हर जगह जाम लगे होते हैं, क्योंकि चीटियां दाना चुगने जा रही होती हैं। क्यों? खुद तन्दुरूस्त रहूं, परिवार तन्दुरूस्त रहे, खुद को कमी न रहे, परिवार को कमी ना रहे। तो कमाना तो पड़ता है ना। दफ्तरों में जाना गलत नहीं है। पर हम दोनों के नजरिए से देखते हैं वैसा ही कुछ नजर आता है। अपना काम-धंधा करना गलत नहीं है, लेकिन जब इन्सान उड़ने लगता है। ठग्गी, बेईमानी पाप, जल्मों सितम ये आदमी के पर (पंख) निकलने की निशानी होती है। और जब ये वाले पर (पंख) निकलते हैं तो समझ लिजिए उसका खात्मा नजदीक है। उसके सुखों का खात्मा और दु:खों का शुरू हो जाता है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जब इन्सान के पास धन-दौलत होता है, जमीन-जायदाद होती है, मखमल के गद्दे होते हैं, लेकिन उस पर नींद ना आए तो क्या फायदा। सब कुछ होते हुए भी अब कोई सोने की रोटी तो कोई नहीं खा सकता ना। खाएंगे तो गेहूं, ज्वार, बाजरे, जौं की रोटी ही। वो रोटी फिर स्वाद नहीं लगती, हज़म नहीं होती। दूसरी ओर दिहाड़ी-मजदूरी करके गुजारा करने वाले पेट भर खाते हैं और सुबह तक पता ही नहीं चलता कि किधर गया। तुलना करके देखो कि सुखी कौन है। एक ओर मखमल के गद्दों पर करवटें बदलते-बदलते सारी रात निकल जाती है, करवटें बदलते-बदलते मस्सल पूल हो जाते हैं, किसी की बाजू में दर्द, किसी को कहीं दर्द, किसी की गर्दन अकड़ गई, क्योंकि मस्सल को जितना रिलेक्स रखोगे वो उतनी ही नरम हो जाती है, जितना पावर फुल बनाओगे उतना पावरफुल हो जाती है।
आपजी ने फरमाया कि हमने दोनों जिदंगी देखी हैं बिल्कुल नजदीक से। पूरी मेहनत से काम करके खेतों में कहीं भी लेट गए, मखमल छोड़िए, यूं लगता है जैसे आसमां में किसी ने झूला बांध दिया हो, सुबह होने पर पता चलता कि अच्छा इतना टाइम हो भी गया। कहते हैं ना कि घोड़े बेचकर सो गए। अब आप बताइए जिन्दगी किसकी अच्छी है। गाड़ियां हैं, जहाज हैं, सोना चारों तरफ पड़ा है, सबकुछ है। लेकिन नींद नहीं आ रही, खाना अच्छा नहीं लग रहा।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि दूसरी तरफ मेहनतकश इन्सान ऐसी परेशानियों से बचा रहता है। इसलिए मेहनत (हार्डवर्क) करने में जो मजा आता है और बॉडी जितनी तन्दुरूस्त रहती है, आराम परस्ती में उतना ही दुखदायी हो जाता है सब कुछ। हम ये नहीं कहते कि आराम ना करो। हाँ, लेकिन इतना आराम भी ना करो कि वो हराम बन जाए। कमाई करो, लेकिन इतनी ठग्गी बेईमानी ना करो कि उसकी वजह से बीमार हो जाओ, परेशानियां इकट्ठी हो जाएं।
क्योंकि कबीर जी ने कहा है कि ‘‘माया होई नागनी, जगत रही ढहकाय, जो इसकी सेवा करे, उसको ही ये खाय।’’ कितना पहले कबीर जी ने लिख दिया था कि ये नागनी है, डस लेगी, लोगों के समझ नहीं आया था, लेकिन अब आ रहा है ना सबको सटाक से। तो कमाई करो। जीने के लिए कमाना गलत नहीं, कमाने के लिए जीना गलत है। अपने परिवार, बाल-बच्चों के लिए आपका फर्ज है, उनके लिए बनाओ, पर उनको खिलाते-खिलाते कहीं ऐसा ना हो कि दूसरों के मुँह का निवाला छीनकर अपने बच्चों को खिलाओ, वो जहर बन जाएगा। इसलिए ठगी, बेईमानी, भ्रष्टाचार से मत कमाओ। मेहनत की करके खाओ। नामचर्चा के बाद आई हुई साध-संगत को कुछ ही मिनटों में लंगर भोजन खिला दिया गया।
एक और बेटी बनी ‘कुल का क्राऊन’
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा बेटी से वंश चलाने के लिए शुरू की गई मुहिम ‘कुल का क्राऊन’ के तहत पावन महा रहमोकर्म माह की नामचर्चा में कुल का क्राऊन जसप्रीत कौर इन्सां पुत्री सुखदेव कौर व नायब सिंह इन्सां निवासी कोटफत्ता (भटिंडा), भक्त मर्द गाजी शमशेर सिंह इन्सां पुत्र अमनजीत कौर इन्सां व जगजीत सिंह निवासी फूल (भटिंडा) के साथ विवाह बंधन में बंधी। बता दें कि यह मुहिम पूज्य गुरु जी ने उन परिवारों की व्यथा को समझते हुए शुरू की थी, जिनके परिवार में सिर्फ एक बेटी ही है। इसके तहत बेटी यानि कुल का क्राऊन, दूल्हे यानि भक्त मर्द गाजी को ब्याह कर अपने घर ले जाती हैं। यानि लड़की दूल्हे को ब्याह कर घर ले जाती है और इस तरह बेटी से परिवार का वंश चलता है। वहीं दूल्हा अपने माता-पिता की तरह अपने सास-ससुर की सेवा करता है। बता दें कि इस मुहिम के तहत ये 25वीं शादी है।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।