बिछा दो फूल सड़कों पे, लगादो स्वागत द्वार।
पधार रही है मौज इलाही, खत्म हुआ इन्तजार।
तैयार रखो घी के दीप, करलो बुक हलवाई।
काश! कोई कह दे, आ रहा है मेरा सोहणा मुर्शिद साईं।
ऑनलाइन गुरुकुल वाली लगेगी फिर से क्लास।
रूबरू नाईट जैसा होगा हर दिन का अहसास।
हर ब्लॉक में नाम मिलेगा, जोड़ लो वाई फाई।
काश! कोई कह दे, आ रहा है मेरा सोहणा मुर्शिद साईं।
बाप-बेटी की जोड़ी फिर से धूम मचाने आई है।
क्या इंस्टा, क्या यूट्यूब सब जगह ये छाई है।
सच का सूरज उग आया, हो गई रोशनाई।
काश! कोई कह दे, आ रहा है मेरा सोहणा मुर्शिद साईं।
उठाले ‘दुग्गल’ कलम अपनी, निकाल अपनी डायरी।
सुनकर मुर्शिद ख़ुश हो जाए, लिख ले ऐसी शायरी।
हजूर की पावन हजूरी में तुझको करनी है कविताई।
काश! कोई कह दे, आ रहा है मेरा सोहणा मुर्शिद साईं।
✍️ त्रिदेव दुग्गल इंसा
युवा कवि एवं गीतकार
गांव मुंढाल (हरियाणा)
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