सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जो इन्सान इस दुनिया से चले गए आप उनको कितना याद करते हैं? यह याद सिर्फ सपना सा बनकर रह जाती है। जो हर समय दिलो-दिमाग में छाया रहता है, ऐसा तो सिर्फ वो सच्चा मुर्शिदे-कामिल होता है। तमाम दुनिया के लोग, चाहे वो गुरु, पीर-फकीर से न मिले हों, फिर भी उनके दिलो-दिमाग में गुरु, पीर-फकीर के लिए सत्कार, इज्जत की भावना भर जाती है।
जब वो पढ़ते हैं कि कोई पीरो, मुर्शिदे-कामिल, मालिक स्वरूप इस दुनिया में आया, इस दुनिया को सीधी राह दिखाई, हजारों साल गुजर गए, फिर भी उन पीर-पैगम्बर, ऋषि-मुनियों की याद आज भी हमारे दिलो-दिमाग में ताजा है और ताजा ही रहेगी। इसी तरह बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने यह डेरा सच्चा सौदा बनाया क्योंकि लोग धर्म, अल्लाह, वाहेगुरु, राम को भूलकर मन-इंद्रियों के गुलाम बन गए।
भौतिकतावाद में पागल हो गए और इंसानियत, रूहानियत से कोसों दूर हो गए। रूहानियत, इन्सानियत जब खत्म होने लगती है तो परमात्मा अपना नूर धरती पर भेजते हैं जोकि मरती हुई इन्सानियत को पुन: जीवित करते हैं। इसी तरह साईं जी ने राम-नाम की संजीवनी दी, जिसकी वजह से आज इंसानियत जिंदा ही नहीं है बल्कि संसार में दूसरों के लिए उदाहरण बनती जा रही है।