डेरा सच्चा सौदा सतलोक पुर धाम नेजिया खेड़ा आश्रम सरसा से चौपटा सड़क पर स्थित है। जो इस गांव की शान है। एक बार की बात है। उन दिनों सरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा आश्रम का मुख्य दरवाजा पूर्व दिशा की ओर से जाती पुरानी सड़क पर था। एक दिन पूजनीय बेपरवाह सांई शाह मस्ताना जी महाराज आश्रम के अंदर मुख्य द्वार के साथ की एक दीवार के पास धूप में विराजमान थे। लोगों के आने जाने का रास्ता भी उसी ओर ही था। वहां से इसी गांव नेजिया खेड़ा के कुछ व्यक्ति ऊंटों पर सवार होकर वहां से गुजरते समय अज्ञानतावश आपस में पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज के बारे में कुछ अनाप-शनाप बातेें करते हुए जा रहे थे जैसे ये सच्चे सौदे वाला कोई जासूस है, यह पाखण्ड करते होंगे, पता नहीं इनके पास इनता धन कहां से आता है जो लोगों में बांटते रहते हैं इत्यादि। Shah Mastana Ji
साईं जी ने उनकी ये बातें साफ-साफ सुन ली और उन सबको बुलवाने के लिए एक सेवादार को भेज दिया। उनके आने पर उनसे पूछा कि वे सच्चा सौदा के बारे में क्या कह रह थे? पहले तो वो लोग डर गए कि उन्होंने बिना जांच पड़ताल के पूज्य गुरू जी के बारे में काफी कुछ बोल दिया। लेकिन पूजनीय बेपरवाह जी उनके साथ बड़े ही सहजता के साथ बातें करने लगे। आप जी ने उनका हौसला बढ़ाया और बेशुमार प्यार दिया। फिर उन्होंने सारी बातें ज्यों की त्यों दोहरा दीं। वे बहुत ही शर्मिंदा हुए।
पूजनीय बेपरवाह जी ने उनसे पूछा कि आप कभी सच्चा सौदा आए हैं? या कभी सत्संग सुना है? वे कहने लगे कि हम आज यहां पर पहली बार ही आएं हैं। पूज्य बेपरवाह जी ने बड़े ही प्यार से उनसे कहा कि जब आप यहां कभी आए ही नहीं, कभी सत्संग सुना ही नहीं तो आप को क्या पता कि यहां पाखण्ड हैं? पूजनीय दातार ने उनको समझाया, ‘‘भाई! हमें चाहे आप कुछ भी कहो लेकिन जीवन में हर बात हमेशा सोच समझकर बोलनी चाहिए। बिना देखे-परखे किसी को भी बुरा नहीं कहना चाहिए। तुम्हारा भी कोई कसूर नहीं। यह सब मन का काम है, जो सबको गुमराह करता है और संतों की बातें सुनने नहीं देता। न हम कोई चोर हैं और न ही ठग हैं। Shah Mastana Ji
हम तो अंदर वाले जिंदाराम की बात बताते हैं कि तुम्हारा सतगुरू तुम्हारे अंदर ही बैठा है, उसको पकड़ो। उसने ही यह दुर्लभ मनुष्य जन्म दिया है। उसका शुक्राना अदा करो व उसे हमेशा याद करो।’’ इसके बाद पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज ने सभी को बूंदी का प्रशाद दिया। प्रशाद रूपी अमृत जैसे ही उनके अंदर गया तो वह अर्ज करने लगे कि बाबा जी! बड़ा आनंद आया, बहुत शांति मिली है। हमारा तो यहां जाने का दिल ही नहीं कर रहा है। आप जी ने फरमाया, ‘‘पुट्टर! सत्संग पर आना फिर तुम्हें नाम-शब्द देंगे। जिसका जाप सुखों की खान है।’’ रूहानी संत से भरपूर प्यार पाकर उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने बहुत ही पश्चाताप किया कि हम ईश्वरीय स्वरूप गुरू को पहचान न सके। ये तो स्वयं ही भगवान के अवतार हैं।
एक दिन आप जी ने सत् ब्रह्मचारी सेवादार दादू बागड़ी को अपने पास बुलाकर फरमाया कि वैसे तो पुट्टर! हमें सरसा का ये एक ही आश्रम काफी है लेकिन जहां आश्रम बनाया जाता है वहां सतगुरू का कोई न कोई राज जरूर होता है। इसरार सबकुछ जानता है। वहां पुरानी संस्कारी रूहें होती हैं और उनको ईश्वर अल्लाह से जोड़ना होता है इसीलिए वहां डेरा बनाया जाता है। इसके साथ ही पूजनीय बेपरवाह जी ने दादू जी व एक अन्य भक्त जो नेजिया में राम नाम की चर्चा करने, भजनों शब्दों आदि द्वारा मालिक का यश गाने के लिए भेज दिया। Shah Mastana Ji
अपने मुर्शिद-कामिल का आशीर्वाद लेकर नेजिया खेड़ा गांव में पहले दिन उन्होंने नंबरदार जोत राम के घर नामचर्चा द्वारा मालिक का गुणगान गाया और दूसरे दिन की नामचर्चा तेजा राम नंबरदार के घर की। लोग मालिक के नाम की चर्चा से बहुत ही प्रभावित हुए। उन्होंने आपस में राय बनाकर अपने गांव में आश्रम बनाने की इच्छा जाहिर की। अगले ही दिन गांव के कुछ मुखिया लोग डेरा सच्चा सौदा सरसा में आप जी से मिले। आप जी ने संगत को आशीर्वाद देते हुए वचन फरमाया,‘‘वरी! सतगुरू स्वयं तुम्हें यहां लेकर आया है और तुमसे धन धन सतगुरू तेरा ही आसरा का नारा बुलवाया है।’’
आप जी ने नेजिया की संगत को अपने अमृतमयी वचनों द्वारा खूब प्यार दिया। सतगुरू के प्यार ने ऐसा रंग दिखाया कि जो कभी आश्रम की तरफ से मुंह फेरकर निकलते थे, वो भी मस्ती में नाच रहे थे। साध-संगत ने पूजनीय गुरु जी के पवित्र चरणों में अपने गांव में आश्रम बनाने के लिए अर्ज की। पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘‘वरी! पहले आप जगह तलाशो वहीं सत्संग करेंगे।’’ साध-संगत ने समस्त गांव की रजामंदी से 10 कनाल जगह डेरा सच्चा सौदा के लिए चुन ली। Shah Mastana Ji
पूज्य बेपरवाह जी की आज्ञा पाकर आश्रम का निर्माण कार्य शुरू कर दिया। मात्र 8-10 दिनों में कच्ची ईटों से तेरावास, दो कमरे व कांटेदार झाड़ियां लगाकर आश्रम की चारदीवारी बनाई गई। आश्रम का निर्माण निश्चित होने के उपरांत पूजनीय बेपरवाह जी ने इस आश्रम का नाम ‘डेरा सच्चा सौदा सतलोकपुर धाम’ रखा और साथ ही 28-29 दिसंबर का सत्संग कर कई नामाभिलाषी जीवों को नाम-दान प्रदान किया।
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