जब तीसरी बॉडी ने पहली बॉडी का अहसास करवाया

shah mastana ji
शाह मस्ताना जी महाराज

साई बेपरवाह शाह मस्ताना जी (Shah Mastana Ji) महाराज ने बनाया सर्वधर्म संगम

हरियाणा के जिला कैथल, ब्लॉक चीका मंडी निवासी जसवंत सिंह बेपरवाह शाह मस्ताना जी (Shah Mastana Ji) महाराज के समय दो तीन महीने आश्रम में रहकर सेवा करता। पूज्य सार्इं जी उसे हमेशा ‘जालन्धरिया बेटा!’’कहकर बुलाते। पूज्य सार्इं जी के अलावा कोई भी उसे ‘जालन्धरिया’ नहीं कहता था। जब बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपना नूरी शरीर बदला तो जसवंत सिंह को पश्चात्ताप हुआ कि अब उसे ‘जालन्धरिया’’ कौन कहेगा? भक्त जसवंत सिंह वैद्यगिरी करता था।

सन् 2001 की बात है जब वह पीलिये की दवा बनाकर डेरा सच्चा सौदा में सत् ब्रह्मचारी सेवादार आत्मा सिंह जी के पास पहुंचा। सत् ब्रह्मचारी सेवादार उसे पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी के पास ले गए और उसका परिचय भक्त जसवंत सिंह के रूप में दिया। इस दौरान जब जसवंत सिंह ने पूज्य गुरु जी को बताया कि मैंने शहनशाह मस्ताना जी से नाम दात ली है।

इस पर पूज्य गुरु जी ने फरमाया ‘‘बेटा! तेरे सामने तो बैठे हैं’’? ये सुनकर जसवंत सिंह के मन में भ्रम पड़ गया कि पूज्य गुरु जी शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज कैसे हो सकते हैं? अभी मन में जसवंत सिंह ये सोच ही रहा था कि पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया ‘‘जालन्धरिया बेटा! ठीक हो’’। ये सुनकर भक्त जसवंत सिंह की रूह धन्य-धन्य कर उठी। अब उसे विश्वास हो चुका था पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां कोई और नहीं बल्कि शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज स्वयं हैं।

‘मौके पर फकीर की कद्र नहीं होती

सरसा शहर के बूटाराम जिसकी जमीन आश्रम के साथ लगती थी वह अकसर पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी (Shah Mastana Ji) महाराज के पास आया करता था। एक बार की बात है कोई आदमी आश्रम में रखे पानी के घड़े चुराकर ले गया। बूटाराम ने पूज्य मस्ताना जी से प्रार्थना की कि हम यहां नहीं रहेंगे। कहीं और जाकर अपनी कुटिया बनाएंगे। यहां तो चोर रहते हैं जो पानी के घड़े भी उठा लेते हैं। यह बात सुनकर शहनशाह जी हँस पड़े और फरमाया ‘‘पुट्टर! पानी के घड़े किस लिए रखे थे। ’’ भक्त ने कहा, पानी पीने के लिए।

फिर पूज्य सार्इं जी ने फरमाया ‘‘ये उनकी मर्जी पानी यहां पीये या घड़े घर ले जाकर। बूटा राम पुट्टर! आज की बात को गाँठ बाँध ले, सच्चे सौदे में खुटने वाली कोई चीज नहीं है। वो नाम खजाना दोनों जहानों में कभी खत्म होने वाला नहीं है। तू बोलता है कि इस धरती को छड्ड के चलें जाए, डेरा कहीं और बनाएं। याद रखना! इस धरती पर लैंहदा झुकेगा, चढ़दा झुकेगा, झुकेगी दुनिया सारी। कुल आलम इस धरती पर झुके गा। मौके पर फकीर की कद्र नहीं होती। श्री गुरु नानक देव जी को भी लोगों ने पत्थर मारे थे।

यहाँ भी कुछ मनमते लोगों ने बहुत जोर लगाया कि ‘‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’’ नहीं बोलने देंगे, यहाँ डेरा नहीं बनने देंगे, परन्तु आखिर अंदर वाले जिन्दाराम ने डेरा बनाकर दुनिया को दिखा दिया। अभी तो सच्चे सौदे की दुकान बनी है, इसमें राम-नाम का सौदा डलेगा, फिर दुकान चलेगी और दुनिया को पता चलेगा। अभी तो रिमझिम-रिमझिम बंूदा-बांदी होती है जब मूसलाधार बरसात होगी तो पता चलेगा। सावण शाही मौज की कृपा से जब मस्तानी मौज काम करेगी तो सबको मस्त कर देगी’’

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