जब बात विदेशी आतंकवाद की होती है, तब इसे रोकने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता एकजुटता है। इस एकजुटता में सभी नागरिक शामिल हैं, वह कश्मीरी भी हैं। पुलवामा हमले से देश के विभिन्न हिस्सों में शिक्षा ग्रहण कर रहे या कार्यरत कश्मीरी नागरिकों में भय का माहौल है, और वह वापस अपने राज्य को लौटने के लिए एकजुट हो रहे हैं। मोहाली में 100 से अधिक विद्यार्थी वापिसी के लिए एकत्रित हुए थे और कुछ संस्थाओं ने उनका सहयोग भी किया। यह अब हम सबका कर्तव्य बनता है कि कश्मीरी विद्यार्थियों में अलग-थलग व भय का माहौल न पैदा होने दें। भारत बहुत बड़ा देश है, जहां धर्म-जाति, खान-पान, पहनने व भाषा की विभिन्नताएं बुरे हालातों में मुश्किल पैदा कर जाती हैं। राज्य सरकारों को इसके प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है कि कश्मीरी विद्यार्थियों की सुरक्षा व सहयोग किया जाए। पुलवामा हमले का जवाब केवल सैनिक हमला ही नहीं बल्कि यह लड़ाई विचारधारा के स्तर पर भी है। यदि आज पाकिस्तान या आतंकवादियों को हिंसा का सहारा लेना पड़ रहा है तो उसका एकमात्र कारण है कि आम कश्मीरी आवाम अमन चाहती है।
आतंकवादियों को यह बात भी हजम नहीं कि कश्मीर के नागरिक लोकसभा या विधानसभा चुनावों में लम्बी कतारों में लगकर वोट डालें। आतंकवादियों को कश्मीरी नागरिकों का सेना, अर्ध सुरक्षा बलों, पुलिस व नागरिक सेवाओं में भर्ती होना भी सहन नहीं हो रहा है। सेना व पुलिस भारतीय कश्मीरी आतंकवाद के खिलाफ लड़ते शहादत दे चुके हैं। आतंकवाद से लोहा लेने वाले कश्मीरियों के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। कश्मीरियों को भटकाने के लिए आतंकवादी एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, लेकिन भटकने वाले कश्मीरी नागरिक दोबारा वापिस मुख्य धारा में आकर सरकारी नौकरियां कर रहे हैं।
यह सभी तथ्य साबित करते हैं कि यदि आतंकवादी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुए तो वह हैं कश्मीरी नागरिकों की संवैधानिक संस्थाओं में भरोसा व आस्था। यदि कश्मीरी नागरिकों का देश के किसी राज्य में भी नुक्सान होता है तब इससे आतंकवादियों के इरादों मजबूत होंगे। आतंकवादी हमले के खिलाफ जिस प्रकार पूरे देश में रोष था, धरने दिए जा रहे थे उसी प्रकार का जोश सभी को एकजुट करने, भाईचारा बनाकर रखने में दिखाना भी होगा। हमारी एकता व भाईचारा ही आतंकवाद के लिए बड़ी चुनौती है।
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