पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां विगत 8 नवंबर को सुनारिया में पंजाब पुलिस की एसआईटी जांच में शामिल हुए। पंजाब पुलिस की स्पैशल जांच टीम (एसआईटी) ने पूज्य गुरू जी से 9 घंटों तक सवाल किए। सबसे दुख:द और निराशाजनक बात यह है कि मीडिया के एक हिस्से में पूज्य गुरू जी द्वारा जांच में सहयोग न करने सहित कई मनघढ़त खबरें पेश की गई, जो तथ्यहीन हैं। मीडिया कर्मियों ने ‘सूत्र’ की आड़ में अपनी-अपनी बातों को बेवजह एसआईटी जांच के साथ जोड़ने की कोई कसर नहीं छोड़ी।
इस बात को दिखाने की कोशिश की गई कि एसआईटी कह रही है कि पूज्य गुरू जी ने जांच में सहयोग नहीं किया, जबकि वास्तविक्ता यह है कि एसआईटी प्रमुख ने कई पत्रकारों के साथ हर एक बात करते हुए कई सवालों के स्पष्ट जवाब दिए। एसआईटी प्रमुख एसपीएस परमार ने पत्रकारों के इस सवाल कि ‘क्या गुरू जी से जांच में पूरा सहयोग मिला है’ के जवाब में स्पष्ट कहा था कि इस संबंधी कोई भी बात कहना हाईकोर्ट द्वारा जांच संबंधी दिए निर्देशों से बाहर जाना है। फिर पता नहीं मीडिया कर्मियों को यह कहां से पता चला कि पूज्य गुरू जी ने पूरा सहयोग नहीं दिया या सवालों के जवाब को टाला।
जहां तक पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के संविधान, न्यायालय या कानून के सम्मान का संबंध है, पूज्य गुरू जी ने संविधान और अदालतों के निर्देश की पालना ही नहीं की बल्कि सम्मान भी किया है। 9 घंटों के करीब जांच के लिए बैठे रहना जांच में पूरा सहयोग नहीं तो ओर क्या है? कोई मीडिया कर्मी कहता है कि पूज्य गुरू जी ने जांच में पानी पिया, मीडिया कर्मियों को बताना चाहिए कि क्या दुनिया में कोई ऐसा मनुष्य है जो 9 घंटों में या सारा दिन ही पानी न पीता हो? क्या जांच में बैठे एसआईटी सदस्यों ने दिन भर पानी न पिया होगा? क्या दिन में एक बार पानी पीना किसी घबराहट की निशानी है? आम आदमी दिन में 6-7 बार पानी पी लेता है, जो कि साधारण है।
वास्तव में ‘सूत्र’ शब्द मीडिया में कुछ कानूनी सुरक्षा या पहलुओं के लिए होता है, लेकिन मीडिया कर्मियों ने ‘सूत्र’ तकनीक का मजाक बनाया, अपनी गलतियों और अनाड़ीपन को छुपाने के लिए इसका जी भरकर दुरूपयोग कर रहे हैं। दरअसल कुछ मीडिया कर्मियों पर कोई विशेष या अलग समाचार देने का इतना भूत सवार हो रखा है कि उनके सवाल बड़े बेतुके और हास्यप्रद होते हैं। सामने खड़ा अधिकारी भी उन्हें समझाता है कि यह सवाल, सवाल ही नहीं है। कहा जाता है कि पुलिस स्वतंत्र होनी चाहिए जिस पर सरकारी दखल नहीं होना चाहिए, निष्पक्ष जांच जरूरी है लेकिन यहां हाल यह है कि मीडिया और स्वार्थी तत्व पुलिस की जांच को अपने हिसाब का रंग दे रहे हैं।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कुछ मीडिया कर्मियों का अपना ही सवाल और अपना ही जवाब होता है। बस जवाब संबंधित अधिकारी के मुंह में ही डालना होता है, इस तरह की रेडीमेड पत्रकारिता अशुद्ध और गैर-पेशेवर है। ऐसी पत्रकारिता समाज के हित में नहीं। कुछ मीडिया कर्मी यह भी सोचते हैं कि पुलिस यह कहे कि पूज्य गुरू जी मामले में शामिल हैं फिर वह (पत्रकार) जांच को सही और मुकम्मल मानते हैं। यदि पहले ही यह मान कर चलना है कि मामला पूज्य गुरू जी पर ही थोपना है तब स्वतंत्र जांच का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
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