भारी-भरकम रिक्शा खींच गली-गली कूड़ा बीनकर पेट पाल रही पढ़ाई कर रही इस अनाथ बेटी को देख रो उठेगा हर दिल | Sach Kahoon Exclusive
- पढ़ना चाहती है, इसलिए स्कूल जाने से पहले रिक्शे पर कूड़ा बीनती है यह मासूम
सच कहूँ एक्सक्लूसिव/लोकेश कुमार/यमुनानगर। भोर होते ही भारी-भरकम रिक्शा पर एक कट्टे का बड़ा सा थैला लेकर वह सड़कों पर निकल पड़ती है। इतना उसका खुद का वजन नहीं जितना कि भारी वह रिक्शा है। (Sach Kahoon Exclusive) गली-गली रिक्शा दौड़ाकर वह तब तक कूड़े-कचरे से सामान बीनती है जब तक कि थैला भर नहीं जाता। थैला भरते ही वह दौड़ पड़ती है उस कबाड़ी के पास जो उसका कूड़ा-कचरा खरीदकर 20-25 रूपए दे देता है और सुबह के नाश्ते भर का जुगाड़ हो जाता है।
सुबह के खाने के बाद वह स्कूल बैग उठाकर दौड़ पड़ती है स्क्ूल की ओर व दिनभर वहां मन लगाकर पढ़ाई करती है। उसे पढ़ने का जुनून तो है लेकिन वक्त व हालात ने उसे ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि वह पापी पेट की आग बुझाए या पढ़ाई का खर्च चलाए। आज हम आपको एक ऐसी ही बदनसीब अनाथ बेटी के दर्द की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे जानकर आपके भी रौंगटे खड़े हो जाएंगे।
‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ की हकीकत देख लीजिए सरकार
तस्वीर में दिखाई दे रही यह यमुनानगर के आजाद नगर में रहने वाली वही 8 वर्षीय मासूम है जिसके साथ न तो कुदरत ही इंसाफ नहीं कर पाई और न ही तमाशबीन समाज और न ही ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारे देने वाली सरकारें। बचपन में ही मां-बाप का साया चले जाने के बाद जब समाज ने कोई रहमदिली नहीं दिखाई तो इस बेटी ने ठान लिया कि वह खुद ही अपने पैरों पर खड़ा होकर दिखाएगी।
पढ़ने में बेहद ज्यादा रूचि रखने वाली मासूम ने रिक्शा थामा व शुरू कर दिया घर-घर कूड़ा बीनना क्योंकि दो वक्त की रोटी के साथ-साथ कॉपी-किताब खरीदने के लिए भी तो पैसा चाहिए ही ना। जिस रिक्शे को लेकर आम आदमी चंद कदम भी चला नहीं सकता, उसे आठ साल की ये मासूम सिर्फ इस लिए चला रही है ताकि वह अपने पेट की आग को ठंडा कर सके हालांकि रिक्शे पर यह किसी सवारी को नहीं बिठा सकती, पर लोगों के घरों के आगे पड़े कू ड़े से जरूर अपनी जीवन का ढूढने में लगी है।
दोपहर को मिड-डे-मील से भरता है पेट | Sach Kahoon Exclusive
- आजाद नगर में रहने वाली इस मासूम के सिर से मां-बाप का साया उठ गया।
- लेकिन उसे पढ़ाई का बहुत शौक है, पढ़ने के लिए उसके पास पैसे नहीं है।
- पढ़ाई के खर्च व पेट के लिए यह बच्ची रिक्शा में कूड़ा-ढोती है।
- आठ साल की यह मासूम सुबह के समय तो स्कूल जाती है।
- दोपहर के समय वहां पर वह मिड-डे-मील का तो खाना खा लेती है,
- लेकिन रात के खाने के लिए वह कड़कड़ाती धूप में उन जगहों को ढूंढने के लिए निकल पड़ती है,
- जहां उसे गंदगी से कुछ ऐसी बेकार वस्तुएं मिले जिन्हें बेचकर वह चार पैसे इक्ट्ठा कर सके ताकि अपने पेट की आग को बुझा सके।
होडिंग पर खर्च किए जा रहे करोड़ों, जमीनी हकीकत कुछ नहीं
सरकार ने हर शहर में बड़े बड़े होडिंग लगा कर करोड़ो रुपये सिर्फ इस लिए खर्च कर दिए है ताकि लोग जागरूक हो और बेटियों का पेट ही कत्ल न हो। लेकिन आज तक किसी ने इन बेटियों के बारे में नहीं सोचा पैदा होने के बाद यह अपनी जिंदगी को लोगों के घरों से बाहर फेंके कूडे कर्कट से ढूंढती है लेकिन यह छात्रा ऐसी है जो पढती तो तीसरी कक्षा में है लेकिन उसके हौंसले इसे कभी न कभी मुकाम पर जरूर लेकर जाएंगे।
नहीं मांगती किसी से भीख | Sach Kahoon Exclusive
यह छात्रा लोगों से भीख तो नहीं मांगती लेकिन पढ़ाई खर्च व अपने पेट को भरने के लिए कूड़ा-कर्कट जरूर बिनती है उसे बाद मे रिक्शे पर लोड कर कबाड़ी के पास बेच कर बीस से तीस रुपये कमा लेती है। लेकिन सवाल उठता है कि ऐसी योजनाओं का क्या फायदा जो किसी बेटी तक न पहुंच पाए
जबकि इस बेटी को जब हम लोगों ने अपने कैमरे में कैद किया तो तभी चाइल्ड हेल्प लाइन भी मौके पर पहुंची और इस छात्रा को अच्छी परवरिश और शिक्षा देने की बात तो कही पर सवाल अभी भी वह कायम है कि कहां है वह संस्थाएं जो बड़े-बड़े दावे करती है। कहा है सरकार के एक इशारे पर बड़े-बड़े होडिंग लगाकर लोगों को जागरूक करने का काम करते हैं। क्या कभी किसी की नजर इस बेटी पर नहीं पड़ी होगी।
पांव में अलग-अलग चप्पल डाल जाती है स्कूल | Sach Kahoon Exclusive
- आजाद नगर के सरकारी स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली इस मासूम को शुरू से पढ़ाई का बहुत शोक है।
- पढाई का शौक मन में है तभी यह सुबह होती ही उस हालात में स्कूल निकलती है
- यहां लोग भी इसे देख कर मजाक उड़ा देते हैं
- क्योंकि लोगों के घरों से उठाई चप्पल जो एक पांव में दूसरी तो दूसरे पांव में दूसरी होती है।
- लोग चाहे किसी भी प्रकार का मजाक करें,
- लेकिन बच्ची किसी की परवाह किए बिन अपना ध्यान दोपहर तक पढ़ाई में लगाती है
- स्कूल से लौटते वक्त उसकी निगाहे वहां होती है
- जहां से उसे कुछ समान मिले और उसे बेचकर वह दो वक्त की रोटी के लिए पैसे इक्ट्ठा कर सके।
आर्थिक मद्द के लिए किए जा रहे प्रयास
हम बच्ची की काउंसलिंग कर रहे हंै, लेकिन वह बाल सेंटर में नहीं रहना चाहती। हम उसके साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते और उसकी काउंसलिंग जारी रखेंगे। आर्थिक मद्द के भी प्रयास किए जा रहे हैं।
-अंजू बाजपेयी, निदेशिका, चाइल्ड लाइन, यमुनानगर
संबंधित स्कूल से ली जाएगी रिपोर्ट
कमजोर आर्थिक स्थिति के बच्चों की पढ़ाई का खर्च सरकार वहन करती है। इस बारे में मैं संबंधित स्कूल से रिपोर्ट लूंगा कि इस बच्ची को वन टाइम और क्वार्टरली धनराशि और कापी किताबें व ड्रेस मिलती है या नहीं। बच्ची की हरसंभव मदद के लिए सरकार को लेटर भेजा जाएगा।
– आनंद चौधरी, डीइओ।
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