सबरीमाला।
भगवान अय्यपा के दर्शन के लिए सबरीमाला मंदिर आने वाले भक्तों के लिए कुछ नियम तय हैं। उन्हें सिर पर इरुमुडी (एक खास पोटली) रखकर मुख्य द्वार की अठारह सीढ़ियां चढ़ना पड़ती हैं। इससे पहले उन्हें 41 दिन व्रत रखना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मंदिर में 10 साल की लड़की से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश की हाल ही में अनुमति दी है। हालांकि, बुधवार को मंदिर के पट खुलने के बाद से अभी तक विरोध की वजह से यहां इस उम्र वर्ग की कोई भी लड़की या महिला प्रवेश नहीं कर पाई है। सबरीमाला मंदिर के मुख्य द्वार की 18 सीढ़ियों से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार पहली पांच सीढ़ियां पांच इंद्रियों का प्रतीक हैं। अगली आठ मनुष्य के आठ भावों के प्रतीक हैं।
इसके बाद तीन सीढ़ियां तीन गुणों को दर्शाती हैं और आखिरी दो सीढ़ियां विद्या और अविद्या की प्रतीक हैं। इन सीढ़ियों को 18 पुराणों, सबरीमाला के आसपास के 18 पहाड़ों, अयप्पा के 18 शस्त्रों, 18 सिद्ध पुरुषों, 18 देवताओं और 18 गुणों से भी जोड़ा जाता है। इन पर चढ़ने के नियम भी कठिन हैं। 18 सीढ़ियों को पतिनेत्तामपदी कहा जाता है। ये ग्रेनाइट से बनी हैं। 1985 में इन्हें सोना, चांदी, तांबा, लोहा और टिन के मिश्रण से ढंक दिया गया। ये सीढ़ियां सबरीमाला मंदिर को बाकी के स्वामी अयप्पा मंदिरों से अलग बनाती हैं।
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