‘साडी नित दिवाली’ के यूट्यूब पर हुए 10 मिलियन से अधिक व्यूज

Sadi Nit Diwali Song

साध-संगत ने पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को दी कांग्रेचुलेशन एमएसजी कहकर दी बधाई

  • भजन का मैसेज जितना दूर तक जाएगा, उतना ही हमारे समाज में बुराईयों और नशे का नाश होगा: पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां
  • खत्म होते रिश्ते-नातों पर जताई चिंता, बोले स्वार्थ से दूर नहीं दुनियावी रिश्ता

बरनावा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने वीरवार को वीडियो भजन ‘साडी नित दिवाली’ के यूट्यूब पर एक करोड़ यानी 10 मिलियन व्यूज होने पर आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से जुड़ी देश-विदेश की साध-संगत को बधाई दी। वहीं शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा उत्तर प्रदेश से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से पूज्य गुरु जी के साथ जुड़ी साध-संगत ने भी साडी नित दिवाली 10 मिलियन व्यूज कांग्रेचुलेशन, कांग्रेचुलेशन एमएसजी, कांग्रेचुलेशन गुरु जी बैनर पर लिखकर बधाई दी। वहीं भजन ‘साडी नित दिवाली’ के यूट्यूब पर एक करोड़ यानी 10 मिलियन व्यूज होने पर केक काटकर भी खुशियां मनाई गई।

पूज्य गुरु जी ने भजन साडी नित दिवाली के 10 मिलियन व्यूज होने पर सभी को मुबारकबाद देते हुए कहा कि भजन का मैसेज जितना दूर तक जाएगा, उतना ही हमारे समाज में बुराईयों का नाश हो और नशे का नाश हो, ये भगवान से प्रार्थना करते हैं। सत्संग के दौरान पंजाबी भजन तेरे प्यार बिना कोई शब्द नहीं आउंदा, तेरे इश्क बिना कोई शब्द नहीं आउंदा पर व्याख्या करते हुए पूज्य गुरु जी ने खत्म होते रिश्ते-नातों पर चिंता जाहिर की।

पूज्य गुरु जी ने कहा कि मालिक के प्यार में और दुनियावी प्यार में अंतर बताते हुए कहा कि दुनियावी रिश्ता शायद ही कोई ऐसा हो, जो स्वार्थ के बिना हो और दुनियावी प्यार में मालिक से प्यार नहीं करते कभी भी और मालिक के प्यार में कभी भी नेगेटिविटी नहीं पालते अपने दिलो-दिमाग के अंदर और जो दुनियावी प्यार है उसमें पता नहीं कब तकरार हो जाए तथा कब से क्या हो जाए। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि हमने अनुभव किया, महसूस किया है कि आज का युग तेजी से बदल रहा है। पहले कहते थे कि माता कुमाता नहीं हो सकती, वो भी अब होने लग गया है।

कई जगहों पर ऐसी-ऐसी बच्चियां देखी, जिन्होंने अपने पूरे परिवार को खत्म कर दिया। बड़ा दर्द हुआ सुनके कि उन्होंने अपने छोटे-छोटे बच्चों को खत्म किया, अपने बहन-भाईयों को खत्म किया, अपने मां-बाप को खत्म किया बड़ा दर्द हुआ ऐसा सुनके। इसी तरह से लड़कों का भी सुना हमने। रिश्ते-नातों का प्यार बेहद स्वार्थी होता चला जा रहा है। पूज्य गुरु जी ने कहा कि कभी बिना स्वार्थ के प्यार के किसे-कहानियां हम सुना करते थे।

सूफियत में क्यंू हीर-रांझा का जिक्र आता है, के बारे में बताते हुए पूज्य गुरु जी ने कहा कि उनका शारीरिक नहीं आत्मिक प्यार ज्यादा था, उसे रूहानी प्यार कह देते है, वो ज्यादा था। इसलिए उनका जिक्र कहीं न कहीं आ जाता है रूहानियत और सूफियत में। पूज्य गुरु जी ने कहा कि उनको जो लिखने वाले है, उन्होंने भी कई जगह सूफियत की बात शामिल की हुई है।

पूज्य गुरु जी ने कहा कि ऐसा प्यार होना असंभव तो नहीं है, लेकिन इस युग में बड़ा मुशिकल है। दुनिया में हर किसी को गर्ज है, हर रिश्ते के लिए गर्ज निश्चित है। भाई-बहन में रिश्ता है, मां-बेटे में रिश्ता है, बाप-बेटे में रिश्ता है, कहीं न कहीं यार-दोस्त है या दुनियादारी से जो आप मिलते हैं वो रिश्ते हैं, उनमें कहीं-न-कहीं गर्ज तो छुपी ही रहती है।

कहते है कि ये बड़ा आदमी है, इससे मैं ये काम ले लूंगा, इसलिए हाथ मिला लेना चाहिए और छोटा आदमी है तो कहते है कि कन्नी कतरा लेनी चाहिए। यानी पहले गर्ज रिश्ता बाद में है। अगर मां-बाप अच्छा खिलाता- पिलाता है तो उसके गीत गाते हैं। अगर लगा कि अब मां-बाप के पास कुछ नहीं है तो इन्सान उनसे कन्नी कतरा जाता है। रिश्ते पल-पल बदलते जा रहे है और आज तो रिश्ते-नातों को बुरा हाल है।

पूज्य गुरु जी ने कहा कि हमने जो 800 शब्द लिखे है उनमें एक शब्द में लिखा है कि रिश्ते जल गए बिन शमशान। शमशानों में मुर्दे जलते है, पर आज हमारे कल्चर के, हमारी सभ्यता के, हमारी संस्कृति के जो रिश्ते बने हुए थे, वो बिना शमशान के जलते जा रहे है और बुरा हाल होता जा रहा है। पूज्य गुरु जी ने कहा कि आज पुरुष चाहते हैं उनके लिए कल्चर फोरन यानी विदेश का होना चाहिए, ताकि उन्हें कोई रोके-टोके ना।

लेकिन जब उनके मां-बहन बेटी पर बात आती है तो कहते है हमारा (इंडिया) कल्चर होना चाहिए। कहते है कि इंडिया का कल्चर अच्छा है। पुरुष चाहता है मैं खुला खेलूं और महिलाओं की तरफ कहता है, जिनमें उनकी पत्नी हो, बेटी हो, बहन हो, मां हो दोगली नीति अपनाते है। पूज्य गुरु जी ने कहा कि जब इन्सान दूसरों का बुरा ताकते हैं तो वह क्यंू भूल जाते है कि उन्हें जन्म देने वाली मां भी एक औरत है, क्यंू भूल जाते हैं कि तेरे घर में भी एक बहन है।

उसको यानी अपनी बहन,बेटी को कोई गलत बोलता है तो उसे गलत लगता है और पुरुष खुद दूसरे को गलत नजर से देखता है तो उसे ये गलत नहीं लगता। ये कौन सा कल्चर है ?। इंडियन कल्चर, हमारी संस्कृति को पुरुष अपनाना नहीं चाहते और विदेशी संस्कृति यहां फिट नहीं बैठ रही। क्योंकि पुरुष चाहते हैं कि उनके लिए विदेशी संस्कृति हो और औरतों के लिए चाहते हैं कि इंडियन कल्चर हो। अब बीच में लटके हुए है। इस कारण हमारी संस्कृति, हमारे कल्चर का सत्यानाश करने पर तुले हुए हैं ऐसे बच्चे।

पूज्य गुरु जी ने कहा कि बुरा ना मानना बच्चो, हमारे मुंह से सच ही निकलेगा, झूठ कभी नहीं निकलेगा, ये हकीकत है। पूज्य गुरु जी ने कहा कि हम विदेशी कल्चर को बुरा नहीं कह रहे, वो उनका अपना कल्चर है। लेकिन हम तो अपनी सभ्यता का पहरा देने वाले एक पहरेदार है। पूज्य गुरु जी ने कहा कि कई सोचते है कि हम हिंदु धर्म का नाम पहले क्यंू लेते है, तो बता दें कि सबसे पहले पाक-पवित्र ग्रंथ इस धरती पर उतरे तो वो थे वेद। पवित्र वेदों का यहां पर सबसे पहले अवतरण हुआ या प्रगट हुए या यूं कह लिजिएगा कि उन्हें लिखा गया।

इसलिए हमने जब पवित्र ग्रंथों को पढ़ा तो सभी एक-दूसरे से लगभग मिलते-जुलते है। इसलिए उसका जिक्र करते है। हिंदु धर्म में जो हमारी संस्कृति है, सभ्यता है वो गजब है। पहले उस समय में (पुराने) हर कोई सौ साल को होता था, जो हमने ग्रंथों में पढ़ा। हमे गुरु जी ने बोला था कि विज्ञान के नजरिये से धर्मो को पढ़ना, इसलिए हम कई दिनों से खुलकर बता रहे हैं कि हम विज्ञान के नजरिये से धर्म को पढ़ रहे है। धर्मों में आयु को चार वर्गों में बांटा हुआ था। 25 साल को ब्रह्मचर्य आश्रम का समय बताया गया था। 25 से 50 को गृहस्थ आश्रम और फिर वानप्रस्थ और फिर संन्यास आश्रम आते थे। ये चार आश्रम इन्सान को छोटी सी बात लगते हैं।

लेकिन हमने इन चार आश्रमों को वैज्ञानिक तौर पर प्ररूव किया और देखा। जब उन बच्चों को उस वातावरण में भेजा जाता था उन्हें गुरुकुल कहा जाता था यानी वहां जो कुछ सिखाया जाता था उसमें कुल यानी सबकुछ उन्हें गुरु सिखाता था। वहां स्वच्छ वातावरण होता था। पूज्य गुरु जी ने कहा कि जहां बहुत सारा कचरा पड़ा हो, गंदगी पड़ी हो, वहां पॉजिटिविटी नहीं आती। गुरुकुल में कर्मों के अनुसार विद्यार्थी का चयन किया जाता था। जो क्षत्रिय है तथा सहने के लायक है, उन्हें आर्मी में भेजा जाता था। इसी प्रकार जो हिसाब-किताब में अच्छे है वो दुकानदारी।

जो ज्ञान-विद्वान, ज्ञान को पकड़ते है वो ज्ञानी विद्ववान कहलाए गए। जो कमजोर होते थे या जो ध्यान नहीं रखते थे, उनका एक अलग वर्ण बना दिया जाता था। पूज्य गुरु जी ने कहा कि हमने धर्मों को पढ़ा और उन्हें अपने स्कूलों में शुरू किया। जब हम स्कूल कॉलेज में आॅफसीजन खेल कैंप में जाते थे और बच्चों को भगाकर व एक्टीविटी कराकर देखते थे कि किस बच्चे का इंटरेस्ट किस खेल में है। फिर उनको उनकी इंटरेस्ट का गेम उन्हें देते थे।

पूज्य गुरु जी ने कहा कि देश में एक बार ऐसी स्थिति आ गई थी कि एशिया में जितने मेडल आते थे, उनका 10 प्रतिशत मेडल हमारे स्कूलों वाले ही ले आते थे इंडिया के लिए। हमने अपने स्कूल कॉलेजों में बच्चों को गुरुकुल की शिक्षा दी हुई है। पूज्य गुरु जी ने कहा कि हमारे वशंज इसी दुनिया में जीते थे। लेकिन अब हम उस संस्कृति को छोड़ते जा रहे है। दुनिया की जो नंबर वन संस्कृति है हमारी उसे हम क्यूं छोड़ते जा रहे है। आज हम अपनी संस्कृति से बहुत दूर हो चुके है। आम कहावत है कि दो घोड़ों पर सवार गिरता ही गिरता है। आज हमारा समाज दो घोड़ों पर सवार है।

एक हमारी संस्कृति और एक विदेशी संस्कृति। हमारी संस्कृति पूरे वर्ल्ड में नंबर वन है। बाकी संस्कृति के बारे में हम कभी बुरा नहीं बोलते। लेकिन इतना जरूर कह सकते है हमारी संस्कृति महान थी, महान है और महान ही रहेगी। उसका कोई मुकाबला नहीं। ब्रह्मचर्य का मतलब होता है आपके विचारों, ख्यालों का शुद्धिकरण करना।

 

 

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