डॉ. संदीप सिंहमार (सच कहूँ न्यूज़)। Rust Disease: गेहूं की फसल, जो विश्व में अनाज की एक प्रमुख उपज है, मानव आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, इसकी उत्पादन क्षमता को प्रभावित करने वाले अनेक रोग और कीट हैं। इनमें से एक खतरनाक रोग है “रतुआ रोग”, जिसे अंग्रेजी में “Rust Disease” के नाम से जाना जाता है। यह रोग विशेष रूप से गेहूं पर प्रभाव डालता है और इसे विभिन्न प्रकारों में वगीर्कृत किया जाता है: पीला रतुआ, भूरा रतुआ, काला रतुआ, गेहूं की पत्तीयों की जंग, और ब्लैक स्टेम रस्ट। Wheat Crop
रतुआ रोग के प्रकार
रतुआ रोग के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें पीला रतुआ सबसे सामान्य और विध्वंसकारी है। यह रोग “पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस” नामक फफूंद द्वारा उत्पन्न होता है। इसके अलावा भूरा रतुआ और काला रतुआ भी महत्वपूर्ण हैं। भूरा रतुआ गेहूं की फसल के लिए गंभीर खतरे का कारण बनता है, जबकि काला रतुआ गेहूं की पत्तियों और तनों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। इन रोगों के कारण फसल की पैदावार में कमी आती है और यह पूरी उपज को नष्ट कर सकती है।
रतुआ रोग के लक्षण | Wheat Crop
रतुआ रोग के लक्षण प्रारंभ में धीरे-धीरे दिखाई देते हैं। रोग का प्रभाव गेहूँ के पौधों की पत्तियों, तनों और कलियों पर पड़ता है। इसके लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:
पत्तियों पर पीले धब्बे: इस रोग के कारण गेहूँ की पत्तियों पर पीले धब्बे या हलके भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं और पूरे पत्ते को प्रभावित करते हैं।
पत्तियों का मुरझाना: संक्रमित पत्तियाँ मुरझाकर सूखने लगती हैं। इस कारण पौधे की समग्र विकास प्रक्रिया प्रभावित होती है।
तनों का सड़ना: रोग के कारण गेहूँ के तने में सड़न होती है, जिससे पौधा कमजोर पड़ जाता है और गिर जाता है। इससे फसल का उत्पादन भी घट जाता है। Wheat Crop
सिरों में काले धब्बे: गेहूँ के अनाज में भी इस रोग के कारण काले धब्बे दिखाई दे सकते हैं, जो पूरी फसल को नष्ट कर सकते हैं।
कमजोर वृद्धि: गेहूँ के पौधे की वृद्धि रुक जाती है और पौधा सामान्य रूप से बढ़ने के बजाय धीमा हो जाता है।
रतुआ रोग से बचाव के उपाय
1. रोगमुक्त बीज का उपयोग: रतुआ रोग से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है रोगमुक्त बीज का उपयोग। बीज को अच्छी तरह से उपचारित करना चाहिए, जिससे कि किसी प्रकार के रोगजनक का असर न हो।
2. उचित जल निकासी: ऐसी मिट्टी में खेती करें जहां जल निकासी का उचित प्रबंध हो, जिससे पौधों की जड़ें सूखी और स्वस्थ रह सकें।
3. रासायनिक उपचार: इस रोग का नियंत्रण रासायनिक उपचार से भी किया जा सकता है। फफूंदी नाशक दवाओं जैसे “कार्बेन्डाजिम” या “मैनकोजेब” का छिड़काव रोग के फैलाव को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है। ये दवाएँ फफूंदी को नष्ट करने और पौधों को स्वस्थ रखने में मदद करती हैं।
4. खरपतवारों को हटाना: यह सुनिश्चित करें कि खेत में कोई भी खरपतवार न हो, क्योंकि ये रोग के वाहक हो सकते हैं। समय-समय पर खरपतवारों को निकालने से भी रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।
5. फसल चक्र: गेहूँ के बाद अन्य फसलें जैसे दालें या तिलहन लगाना, फसल चक्र का पालन करना और भूमि में पोषक तत्वों की कमी को दूर करना, इससे इस रोग के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
6. अच्छा वेंटिलेशन: फसल में पर्याप्त वेंटिलेशन सुनिश्चित करें ताकि नमी का स्तर नियंत्रित रहे और फफूंदी का विकास न हो।
7. समय पर सिंचाई: सिंचाई का ध्यान रखें, परंतु अत्यधिक पानी से बचें। पानी की अधिकता से फफूंदी का विकास बढ़ सकता है।
ये हो सकता है प्रभावी उपाय
गोमूत्र और नीम का तेल मिलाकर तैयार किया गया मिश्रण भी एक प्रभावी उपाय है। इसे 10 लीटर गोमूत्र, 2 किलो नीम की पत्तियों, और 250 ग्राम लहसुन के काढ़े के साथ प्रति एकड़ छिड़कना चाहिए। ये प्राकृतिक समाधान न केवल फफूंद से लड़ने में मदद करते हैं बल्कि पौधों की वृद्धि को भी बढ़ावा देते हैं।
सावधानी से बचाव संभव | Wheat Crop
रतुआ रोग गेहूं की फसल के लिए एक गंभीर चुनौती है। यदि इसे समय पर नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह पूरी फसल के लिए विनाशकारी हो सकता है। इसलिए, किसान भाईयों को चाहिए कि वे अपने खेत में नियमित रूप से निरीक्षण करें, लक्षणों को पहचानें और उचित उपाय करें। रतुआ रोग के खिलाफ चेतावनी, नियंत्रण और उपचार के उपायों का पालन करके, हम गेहूं की उपज को बढ़ा सकते हैं और खाद्य सुरक्षा के लिए एक स्थिर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। कृषि में नवाचार और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने से यह रोग प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है, और इस प्रकार कृषि विकास को आगे बढ़ाया जा सकता है।
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