President Rule in India: भारत के संविधान में राष्ट्रपति शासन, जो कि अनुच्छेद 356 के तहत आता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो राज्यों में शासकीय व्यवस्था को अस्थिरता या संकट की स्थिति में स्थिर करने के लिए लागू किया जाता है। जब एक राज्य में संवैधानिक मशीनरी काम करने में असमर्थ हो जाती है या वहां की सरकार अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहती है, तो केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को भारत के संविधान ने विशेष रूप से परिभाषित किया है और इसके पीछे के नियम और शर्तें इस लेख में विस्तार से समझे जाएंगे।
1. राष्ट्रपति शासन की परिभाषा और आवश्यकता
राष्ट्रपति शासन वह स्थिति है जब राज्य में राष्ट्रपति को संविधान के अनुसार कार्य करने का अधिकार दिया जाता है, और राज्य की सरकार के अधिकार केंद्रीय सरकार के तहत आते हैं। इसे “केन्द्रीय शासन” या “राष्ट्रपति शासन” भी कहा जाता है। यह तब लागू किया जाता है जब राज्य सरकार संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ होती है।
2. राष्ट्रपति शासन के लागू होने के कारण | President Rule in India
संविधान के अनुच्छेद 356 में वर्णित कारण
1. संविधान का उल्लंघन: अगर किसी राज्य में संवैधानिक शासन का पालन नहीं हो रहा है या राज्य में संवैधानिक शासन टूटने का खतरा होता है, तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
2. सत्ता हस्तक्षेप की स्थिति: जब राज्य सरकार अपने कर्तव्यों का पालन करने में असफल हो जाती है, जैसे कि यदि विधानसभा का चुनाव समय पर नहीं होता या राज्य सरकार किसी अवैध स्थिति को बढ़ावा देती है।
3. राज्य के अराजकता में वृद्धि: जब राज्य में अराजकता, हिंसा, या विद्रोह के कारण शासन चलाना संभव नहीं होता, तब राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है।
3. राष्ट्रपति शासन लागू करने की प्रक्रिया
संविधान में राष्ट्रपति शासन लागू करने का तरीका
1. सुप्रीम कोर्ट की सलाह: राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति को राज्यपाल के माध्यम से रिपोर्ट मिलती है, और इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति इसे लागू कर सकते हैं। हालांकि, इसे लागू करने से पहले राष्ट्रपति को राज्य की स्थिति और राज्यपाल की रिपोर्ट को ध्यान से जांचना आवश्यक होता है।
2. केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश: राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा लिया जाता है। यह मंत्रिमंडल राष्ट्रपति से सिफारिश करता है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
3. आधिकारिक घोषणा: जब राष्ट्रपति इस सिफारिश को स्वीकार कर लेते हैं, तो वे राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर देते हैं और राज्य की सरकार को केंद्र सरकार के अधीन कर दिया जाता है। President Rule in India
4. राष्ट्रपति शासन के प्रभाव
केंद्रीय नियंत्रण में बदलाव
राज्य विधानसभा का निलंबन: राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य विधानसभा को निलंबित किया जा सकता है। इसके साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल को भी हटा दिया जाता है।
केंद्रीय नियुक्ति: राज्य में राज्यपाल को प्रशासन की जिम्मेदारी दी जाती है। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार राज्य के प्रशासन के विभिन्न विभागों की जिम्मेदारी संभालती है।
राज्य की आंतरिक स्वायत्तता पर असर
राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य के मामलों में केंद्रीय सरकार का हस्तक्षेप बढ़ जाता है, और राज्य को अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक स्वायत्तता से वंचित होना पड़ता है।
राज्य में किसी भी चुनाव की प्रक्रिया भी केंद्रीय सरकार के अधीन हो सकती है।
5. राष्ट्रपति शासन की वैधता और न्यायिक समीक्षा
संविधान के तहत न्यायिक नियंत्रण
भारत के संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति शासन की वैधता पर न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। यदि कोई राज्य या विपक्षी पार्टी यह दावा करती है कि राष्ट्रपति शासन संवैधानिक रूप से गलत तरीके से लागू किया गया है, तो इसे चुनौती दी जा सकती है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस विषय पर फैसले दिए हैं, जिनमें इस बात की पुष्टि की गई है कि राष्ट्रपति शासन को न्यायिक समीक्षा के तहत लाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
1. S.R. Bommai केस (1994): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू करने के निर्णय को अदालत के सामने चुनौती दी जा सकती है और यदि यह संविधान के विरुद्ध पाया गया तो इसे खारिज किया जा सकता है।
2. Bihar Assembly Case (1989): इस केस में भी कोर्ट ने यह माना था कि राष्ट्रपति शासन का निर्णय केवल तब सही हो सकता है जब यह संविधान के अनुरूप हो।
6. राष्ट्रपति शासन के विपक्षी दृष्टिकोण और आलोचना
राजनीतिक दृष्टिकोण
राष्ट्रपति शासन को लेकर कई आलोचनाएं होती हैं, विशेष रूप से जब इसे राजनीतिक कारणों से लागू किया जाता है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह एक माध्यम हो सकता है जिसके द्वारा केंद्र सरकार राज्यों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को कम कर सकती है। कई बार यह आरोप भी लगता है कि राष्ट्रपति शासन का इस्तेमाल विपक्षी सरकारों को अस्थिर करने या उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए किया जा सकता है।
लोकतंत्र और स्वतंत्रता पर प्रभाव
राष्ट्रपति शासन के लागू होने से राज्य की लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं बाधित होती हैं, जैसे कि विधानसभा चुनावों का स्थगन। इससे नागरिकों को अपने अधिकारों का उपयोग करने में भी कठिनाई होती है।
7. राष्ट्रपति शासन के लिए वैकल्पिक उपाय
संविधान के अनुसार अन्य विकल्प
1. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले अन्य विकल्प: संविधान में कुछ अन्य उपाय भी दिए गए हैं, जैसे राज्य में चुनाव कराना, राज्यपाल द्वारा विशेष कार्यवाही, या किसी अन्य माध्यम से संकट को हल करना।
2. संविधान संशोधन: राष्ट्रपति शासन की अवधारणा में कोई प्रमुख बदलाव की आवश्यकता महसूस होने पर संविधान में संशोधन भी किया जा सकता है।
भारत के संविधान में राष्ट्रपति शासन एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो राज्यों में संवैधानिक संकट या अराजकता के समय लागू किया जाता है। हालांकि इसका उद्देश्य राज्य की शासन व्यवस्था को स्थिर करना है, परंतु इसके दुरुपयोग के आरोप भी लगते हैं। संविधान के तहत इसके लागू होने की प्रक्रिया स्पष्ट है, और न्यायिक समीक्षा के माध्यम से इसकी वैधता की जांच की जा सकती है। यह आवश्यक है कि राष्ट्रपति शासन का उपयोग संवैधानिक उद्देश्यों के तहत किया जाए, ताकि लोकतंत्र और राज्यों की स्वायत्तता की रक्षा हो सके। President Rule in India
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